________________
१९६]
जिनविजय जीवन-कथा
होगा तब उनका अवलोकन करके, जिसकी आज्ञा देंगे उसी को साथ ही भेज दिया जावेगा । ये सब आपकी ही सन्तान हैं। ____ आपने लिखा है कि जन्मभूमि में हनको पहचान ने वाला कोई रहा नहीं होगा ? इस पर निवेदन है कि कम से कम 8-10 पुरुष और इतनी ही स्त्रीयां अब तक भी अवश्य हैं जो आप से परिचित हैं। ___मेरी सन्तानों में से दोनों बड़े पुत्र जिन्होंने आपकी सेवा की थी, वे दोनों पर लोक वासी हो गये अब हमारा जेष्ठ पौत्र (उत्तराधिकारी) आयुष्मान प्रताप सिंह है । और हमारा तीसरा पुत्र विजय सिंह चौथा अमर सिंह नाम का है। इन चारों पुत्रों की सन्तान श्रेष्ठ है वे सब जब कि आपका शुभागमन होगा तब चरण स्पर्श करके जीवन को सफल करेंगे।
अधिक वृत्तांत आपकी समस्त पुस्तकों को पढ़कर इसके पश्चात् लिखूगा । यहां पर जब आपका शुभागमन हो तब चार पांच दिन पहले पत्र द्वार। सूचित करें। ताकि सवारी ( मोटर ) आदि का प्रबन्ध किया जावे।
विनित निवेदक श्री मानों का सेवक
ठाः चतुर सिंह वर्मा
रूपाहेली (मेवाड़) पत्रांक ७
ठि. रूपाहेली
(मेवाड़)
ताः 2-10-40 ई. परम् श्रद्धास्पद गुरुवर्य
मुनि महाराज श्री श्री जिनविजय जी के चरणाम्बुजों में सादर प्रणाम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org