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विशेष टिप्पणी
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मूर्ति गिरधर गोपाल जी को भी स्थापित कर वहाँ पर सतत् भजन कीर्तन किया करती थी। इन्हीं वर्षों में महाराणा उदयसिंह जी ने जब अपनी नई राजधानी उदयपुर बसाई तब अपने बड़े भाई भोजराज जी की विधवा पत्नी, जो कि अपनी भक्ति और उपासना के कारण सारे भारतवर्ष में बहुत बड़ी भक्तिमती महासाध्वी के रुप में प्रसिद्ध हो गई थी और जिनके कारण मेवाड़ का राजघराना भी लोगों की दृष्टि में अधिक आदरणीय और सम्मानीय हो रहा था, महाराणा ने मीरांबाई को अपनी नवीन राजधानी में पधारने का बहुत आग्रह पूर्वक आमन्त्रण भेजा। कई दिनों तक बड़े दरबारी लोग उनके लिये द्वारका में डेरा डाले रहे और बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक मीराबाई को आग्रह करते रहे कि अब आप वृद्धावस्था के इन अन्तिम दिनों में मेवाड़ के राजकुल को अलंकृत करने के लिये उदयपुर पधारें, परंतु मीराबाई को कुछ आभास हो रहा था कि अब यह पार्थिव शरीर अधिक दिनों तक नहीं रहने वाला है इसलिये श्री रणछोड़राय जी की शरण में ही विलीन होना अभिष्ट है । कुछ ही समय बाद मीराबाई रणछोड़राय जी के मंदिर में जहाँ पर उनके सदैव उपासनीय गिरधर गोपाल विराजमान थे, भगवान की उपासना करते करते अन्तर्ध्यान हो गई।
इसके समाचार जब महागणा ने सुने तो उन्हें बड़ा खेद हुआ और कई दिन राजघराने में शोक मनाया गया । बाद में महाराणा साहब ने अपने जिन दरबारियों को मीराबाई को लेने द्वारका भेजा था, उन्हें आदेश दिया कि वे अब मीराबाई द्वारा पूजित गिरधर गोपाल को बड़े राजकीय लवाजमें के साथ उदयपुर ले आवें । तब आदेशानुसार भगवान गिरधर गोपाल की वह मूर्ति उदयपुर लाई गई पौर महाराणा ने विधि पूर्वक गिरधर गोपाल को अपने राजघराने के मुख्य देवता पिताम्बरराय जी के सानिध्य में स्थापित करवाया।
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