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श्री चतुरसिंह जी राठौड़ के कुछ पत्र
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पत्रांक ५
रूपाहेली मेवाड़ संवत् 1996 मिति पौष सुद 9
ता: 19-1-1940 परम् पूज्य गुरुवर्य पुरातन वृत्तपयोनिधि
मुनि महाराज श्री श्री जिनविजय जी की पुनीत सेवा में सादर प्रणाम ।
अत्रशम् तत्रास्तु । इस वृद्ध शिष्य ने आपकी पवित्र सेवा में निवेदन पत्र लिखा 6-7 दिन के उपरान्त ही "अनेकान्त बिहार" शान्ति नगर पो० सावरमती अहमदाबाद से एक बड़ा रेल्वे पारसल आया। जिसमें बड़ी छोटी 9 पुस्तकें थी। हमने केवल दो या तीन पुस्तकें वी. पी. द्वारा भेजने के लिये निवेदन लिखा था। परन्तु आपने कृपा करके 9 पुस्तकें भेज दी। इस अनुग्रह के निमित्त आपकी सेवा में अनेक धन्यवाद हैं। पुस्तकें मिलने के चार पाँच दिन उपरान्त अब रसीद भेजता हूँ, क्योंकि, मेरा विचार था कि कुछ पुस्तकों को पढ़कर फिर पत्र लिखेगा परन्तु इसमें अधिक विलम्ब होने के भय से आज ही सेवा में पत्र भेजा है ।
अब तक हमने "प्राचीन गुजरात नी सांस्कृतिक इतिहास नी साधन सामग्री, गुजरातनी इतिहास संशोधन प्रवृत्ति नो इतिहासावलोकन और कुछ भाग प्रबन्ध चिन्तामणि का, अवलोकन किया है। इसमें आपकी रचि हुई उपर्युक्त दोनों गुजराती भाषा की छोटी पुस्तिकाओं की जहां तक प्रशंसा की जावे न्यून है । पुरातत्व संबन्धि ज्ञान की वृद्धि करने वाली ऐसी पुस्तकें हमारे देखने में नहीं आई। प्रत्नवृत्त के प्रकाण्ड पण्डित पूज्यवर अोझा जी आदि 3-4 विद्वानों की "प्राचीन भारत के इतिहास की सामग्री" नामक छोटी पुस्तकें देखने में आई हैं। परन्तु आपकी इन दोनों प्रतियों की समानता करने वाली एक भी नहीं है।
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