Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 175
________________ १५२) जिनविजय जीवन-कथा दूसरे दिन मैं उस ओसवाल महाजन के साथ बदनावर जाने को निकला तो ज्ञानचन्दजी ने कहा कि तुम वहां पर मन्दिर में दर्शन करने जो भाई-बहिन आवें उनको मांगलिक सुनाते रहना । पyषणा के दिनों में कल्प-सूत्र जो तुमने पढ़ लिया है उसको सुना देना । बीच में मैं कभी तुम्हारी खबर लेने के लिए आ जाऊंगा। जो महाजन तुमको ले जा रहा है, वह अच्छा भला आदमी है। इसलिए तुमको वहाँ किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होगी। और प'षणा में दस-बीस रुपयों की प्राप्ति हो जायगी। पर्युषणा बाद हम मिल लेंगे और आने पर तुम्हारी पढ़ाई आदि की बातें सोचेंगे । मैं फिर वहां से उस महाजन के साथ बदनावर चला गया। उस महाजन ने रास्ते में मुझसे कई बातें पूछी-ताछी, मैंने संक्षेप में स्व० यतिवर श्री देवीहंसजी का कुछ परिचय दिया। और बानेगण में किस तरह ज्ञानचंदजी यति के साथ परिचय हुआ वह बताया। बदनावर में उस समय एक नया जैन मंदिर बन रहा था। उसका नीचे का काम प्रायः तैयार हो चुका था और ऊपर शिखिर का काम बाकी था । उस मंदिर के पास ही एक पुराना मकान था, जिसमें मंदिर में विराजमान करने के लिए लाई गई तीन चार जिन मूर्तियां रखी हुई थी। उसी मकान में मुझे ठहरने को कहा। उस मकान से तीन चार मकान बाद उस महाजन का रहने का घर था। ज्ञानचंदजी ने उस महाजन से कह दिया था कि यह किसन भाई गोचरी नहीं करेगा। इसके पास पात्रा वगैरह नहीं हैं । इसके भोजन के लिए आप लोग पारी पारी से एक थाली में रोटियां और कुछ साग सब्जी रखकर इसके पास पहुंचा दिया करना। ___ मैं जिस दिन बदनावर पहुंचा उस दिन तो शाम के वक्त उस महाजन ने अपने घर ले जाकर भोजन कराया। संध्या के समय मंदिर में पुजारी आरती करने आया तब उस महाजन ने पुजारी को भेजकर चार पांच मुख्य श्रावकों को बुलाया और वहीं बैठकर उनसे कहा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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