Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 201
________________ १७८] जिनविजय जीवन कथा परन्तु अपरिचित गुजराती शब्द कहीं कही पर समझ में नहीं आता है । हिन्दी भाषा की पुस्तकें हो तो बहुत उत्तम होगा । उक्त पुस्तकों के साथ स्वरचित ग्रंथों की सूची हो तो वह भी अवश्य भेजें यथावकाश वह भी अबश्य मैंगवाता रहूँगा । भारतीय विद्या ग्रंथावली की सूची तो इसी त्रैमासिक पत्रिका के अन्तिम पृष्ठ पर छपी हुई है। उसकी आवश्यकता नहीं । आप बम्बई गुजरात आदि जैन भण्डारों की शोध कर रहे हैं जो आपका इस अमूल्य निधि के लिये भागीरथ प्रयत्न है। इसी प्रकार पूज्यवर ओझाजी के कथानानुसार बीकानेर और जैसलमेर के जैन भण्डारों में भी अपार पुरातन साहित्य भरा पड़ा है । जिसको जैन मतावलम्बी के अतिरिक्त किसी को दिखाते भी नहीं हैं। कभी उक्त भंडारों का निरीक्षण करना चाहिये । मेरा इतिहास प्रेम जब कि मैं 18 वर्ष की अवस्था में मेयो कोलेज अजमेर में पढ़ता था हो गया जो दिन दिन बढ़ता गया । और राजस्थान तथा अन्य प्रान्तों के बीसों प्रकाण्ड सुप्रसिद्ध पुरावृत्तवेत्ताओं से पूर्ण मैत्री हो गई थी अर्थात् स्व. काशी प्रसाद जी जायसवाल (पटना) बाबू हीरालाल जी, अनेक विरुद्ध प्राप्त पूज्य वर पं. गौरी शंकर जी ओझा, हरविलास जी शारदा, (अजमेर) स्व. मुंशी देवी प्रशाद जी, पं. विश्वेश्वर नाथ जी रेऊ, पं. रामकरण जी आसोपा, जगदीश सिंह जी गहलोत (जोधपुर), रामनारायण जी दूघड़ आदि आदि इन महानुभावों में से 5-6 विद्वान तो पूज्य ओझा जी, मंशी देवी प्रसाद जी, जगदीश सिंह गहलोत आदि तो कई बार रूपाहेली भी आते रहे हैं और पत्र व्यवहार होता रहा । मेरी क्षुद्र बुद्धि के अनुसार काशी ना. प्र. पत्रिका सरस्वती, माधुरी, आदि पत्रिकाओं में कई ऐतिहासिक लेख, निबन्ध आदि भी प्रकाशित कराये हैं। हमारे संग्रह में लगभग 150 ऐतिहासिक ग्रंथ होंगे। प्रापने भारतीय विद्या नामक पत्रिका का प्रथम अङ्क प्रदान किया। उसको साद्यन्त 2-3 बार पढ़ा। इसकी प्रशंसा कहाँ तक निवेदन की जावें । आपके तीन लेख हिन्दी के और दो गुजराती में हैं । उक्त पाँचों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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