Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 199
________________ १७६] जिनविजय जीवन-कथा ज्वर हो गया था । दस दिन उपरान्त स्वास्थ्य ठीक हुआ । मेरा अस्सी (५०) वर्ष का वृद्ध शरीर है और ६६ वर्षों से इस ठिकाना रूपाहेली का अधिकारी माना जाता हूँ अतः अनुमान है और पूर्ण आशा है कि उत्तर लिखने के इस विलम्ब को क्षमा प्रदान करेंगे। इस वृद्ध शरीर को मंदाग्नि हो जाने से २४ वर्षों से सात्विक लघु भोजन अर्थात् ३) रुपयों भर तंदुल मुग्दयूष में मिलाकर ग्रहण करता हूँ । और ऊपर से ४० ) रु० भर गो दुग्ध पीता हूँ । बस यही मेरा प्रातः और संध्या का भोजन है । और कुछ भी ग्रहण नहीं करता बस यही दिनचर्या है । उक्त क्रिया से शरीर स्वास्थ्य सम्पन्न बना रहता है । अब आगे आपके कृपा पत्र का संक्षिप्त रूप से उत्तर निवेदन किया जाता है । पहले आप अहमदाबाद में पुरातत्व मंदिर का निर्माण करके वहां पर अधिक विराजते थे तब तो परस्पर पत्र व्यवहार होता ही था । फिर समाचार पत्रों आदि से विदित हुआ कि आप योरोप आदि देशों में यात्रार्थ पधार गये हैं । बहुत काल उपरान्त जब आप पीछे पधारे तो काँग्रेस में सम्मिलित होकर देश सेवा में लग गये । और भिन्न भिन्न स्थानों में भ्रमण करने से आपका स्थायी पता भी नहीं मिलता था । इन कारणों से पत्र व्यवहार बन्द हो गया था । अब आप भारतीय विद्या भवन " बम्बई" में अधिक विराजते हैं तो अब मैं उक्त पते पर कभी कभी निवेदन पत्र भेंट करता रहूँगा । एक साग्रह निवेदन है कि आप अनेक प्रकार के देशोपकारी कार्यों में लगे रहते हैं परन्तु कभी अवकाश प्राप्त करके दो दिन के लिये अवश्य पधारें, और इस वृद्ध शरीर को अन्तिम दर्शन प्रदान करें तो बड़ी बात होवे और आप अपनी जन्म भूमि को भी दर्शन देकर उसका भी गौरव बढ़ावें क्योंकि, आपके समान महापुरुषों के जन्म लेने से इस भूमि का महत्व बढ़ गया है । फिर आपके शुभागमन से इस भूमि का गौरव बहुत बढ़ जावेगा । यद्यपि यह वृद्ध मनुष्य आयु में आप से अधिक बड़ा अवश्य है परन्तु विद्या बुद्धि, अनेक शास्त्रों का ज्ञान, इतिहास संशोधन, ईश्वर चिन्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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