Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 200
________________ श्री चतुरसिंह जी राठौड़ के कुछ पत्र [ १७७ आदि अनेक प्रकार की विद्याओं तथा गुणों की तुलना में आपसे मेरी लघुता सहस्त्रांश से भी न्यून है । इसलिये आप हमारे परम् पूज्य गुरूदेव हैं । और तीन चार पाँच वर्ष पहले उदयपुर आपका पधारना हुआ चार मास पर्यन्त वहां पर बिराजे थे। उसी समय प्राचीन स्थानों के निरीक्षण के निमित्त मेरा भी चित्तौड़ जाना अवश्य हुआ था परन्तु आपके पधारने का मुझको संकेत भी नहीं था । यदि आपका एक भी पत्र मिल जाता तो दर्शनार्थ उदयपुर अवश्य आता । अथवा रूपाली स्टेशन पर ही आपके चरण स्पर्श करता परन्तु ईश्वरेच्छा बलवान है । आगे आपने पत्र में लिखा है कि "गुजरात के जैन भण्डारों में अपार ऐतिहासिक सामग्री दबी पड़ी है । उसको शोध कर प्रकाश में ला रहा हूँ । बहुत से लेख, व्याख्यान, निबन्ध और हमारी रची हुई अनेक पुस्तकें आदि प्रकाशनों को तुमने देखा ही होगा । उक्त समस्त पुस्तकों में एक संस्कृत प्रशस्ति छपी हुई है । जिसमें हमारी जन्मभूमि रूपाहेली आदि का वर्णन है । वह तुमने देखा ही होगा आदि आदि" इस पर निवेदन है कि बम्बई गुजरात आदि का साहित्य और समाचार पत्र हमारे यहां नही आते हैं । हमारे ठिकाने में केवल देहली, आगरा, अजमेर तथा उदयपुर के ही दैनिक और साप्ताहिक पत्र प्रायः आते हैं, इनके अतिरिक्त "काशी नागरी प्रचारिणी त्रैमासिक पत्रिका" उसके उत्पत्ति काल से ही आती है । जिसका मैं आजीवन सदस्य हूँ । हमारे आने वाले पत्रों में कभी कभी आपके व्याख्यान तथा पुरावृत्त शोध संबन्धि महान् प्रसंशा आ जाती है । परन्तु हमारे दुर्भाग्य से आपकी रचि हुई कोई भी पुस्तक आज पर्यन्त देखने में नहीं आई और न ही उक्त संस्कृत प्रशस्ति को ही देखा । इसलिये साग्रह निवेदन है कि आपकी रचि हुई 2-3 ऐतिहासिक पुस्तकें जिनको आप भेजना उचित समझें उनकी एक एक प्रति बी. पी. द्वारा शीघ्र भेजने की कृपा करें । यदि कोई ग्रंथ गुजराती में होगा तो वह भी अवश्य पढ़ लिया जायगा १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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