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श्री चतुरसिंह जी राठौड़ के कुछ पत्र .
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निबन्धों को तो सर्वोत्तम कहना चाहिये । उनको बार २ पढ़ने पर भी तृप्ति नहीं होती है। उक्त लेखों की समालोचना तो कोई प्रकाण्ड पण्डित और असाधारण इतिहास मर्मज्ञ ही कर सकता है ।
हमारे समान अल्पज्ञों की तो यही बड़ी बात होगी की उक्त निबंधों के आशय को पूर्ण रूप से समझ लिया जाय । आप तो भारतवर्ष के महान् विद्वानों में अग्रणी है । और संसार भर के ऐतिहासिक विद्वान आपके पुनीत नाम से परिचित है। फिर भी अपनी जन्मभूमि रूपाहेली के साथ मेरा तुच्छ नाम भी आपने भूमण्डल के साक्षर विद्वानों में प्रसिद्ध कर दिया । अतःएव आपके चरणाम्बुजों में कोटिशः धन्यवाद अर्पण किये जाते हैं । आपके अपूर्व निम्बन्धों में सम्पादकीय अग्र वचन, जिसमें अमृत शब्द की श्रुतिशास्त्र सम्मत असाधारण विवेचन है । राजस्थान की समालोचना और चामुण्ड राज चौलुक्यनु ताम्र पत्र (गुजराती) में आदि लेख सर्वोत्तम है । विस्तार भय से अधिक नहीं लिख सकता । इसी प्रकार हेमचन्द्राचार्य की प्रमाण मीमांसा भी उत्तमनिम्बन्ध है क्यों कि इस छोटे से लेख में अनेक प्रकार के दर्शन शास्त्रों का परिचय मिल जाता है । इसी प्रकार चामुण्ड राज के ताम्र पट का विवेचन भिन्नभिन्न प्रकार से आपने बड़ी योग्यता से किया है। और गुप्त संवत् अने विक्रम संवत संबन्धी नवीन समस्या भी अपूर्व है । परन्तु हमारी तुच्छ बुद्धि के विचार से ऐसा लगता है कि ताम्र लेख निर्माता ने भूल या प्रमाद से विक्रम संवत् के स्थान में शक संवत् का नाम 17 वें पद्य में रख दिया होगा। क्योंकि इस एक प्रमाण द्वारा उक्त दोनों संवतों का अनेक प्रमाणों से निश्चित किये हुये, काल क्रम में किस प्रकार परिवर्तन हो सकता है । तथापि पुरावृत्त वेत्ताओं के विवाद करने की सामग्री इस लेख में अवश्य है।
मेरे चार पुत्र थे जिनमें से जेष्ठ पुत्र कुँवर लक्ष्मण सिंह और उससे कनिष्ठ गजसिंह दोनों क्रमशः 57 और 46 वर्ष की अवस्था में परलोक
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