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जैन सम्प्रदाय के स्थानक वासी आम्नाय में दीक्षित होना. [१६३
बड़े २ विद्धान हैं। अभी तुमने उन यातियों के कोई बड़े ठिकाने नहीं देखे हैं । और ना ही शत्रुजय आदि तीर्थों की यात्रा ही की है । इन तीर्थ स्थानों में तथा अहमदाबाद आदि शहरों में सैकड़ों मंदिर हैं, अनेक पाठशालाए हैं जहां यतियों के शिष्य भी पढ़ते रहते हैं। बड़े २ मालदार जैनी लोक हैं जो तीर्थयात्रा के लिए सैंकड़ों हजारों आदमियों को साथ लेकर संघ निकालते हैं, उनमें अच्छे २ विद्धान यतियों को बुलाते हैं। श्री पूज्यों को भी बुलाते हैं और बड़े ठाठ से उनकी पधरामणी आदि करते हैं सैकड़ों रुपये तथा शाल-दुशाले आदि उनको भेंट करते हैं। तुम्हारे बारे में तो मैं ऐसे किसी बड़े ठिकाने वाले यति जी के वहां रखवाकर तुमको अच्छी तरह विद्याभ्यास करने की व्यवस्था करवा देना चाहता हूँ । यहाँ से हम अभी रतलाम चलें और फिर वहां से आगे का ऐसा कोई कार्यक्रम बनावें । मेरी इच्छा एक दफे तुमको शयुंजय तीर्थ की यात्रा भी करा देने की हो रही है । फिर वहां से अहमदाबाद शहर चलेंगे । जहाँ कई बड़े २ श्रावकों के उपाश्रय हैं वहां कई अच्छे यति भी रहते हैं। इसी तरह इन्दौर में भी एक यति जी का बहुत बड़ा उपाश्रय तथा जागीरी का ठिकाना है वहां पर कई यतियों के शिष्य आदि रहते हैं । जिनकी पढ़ाई का प्रबन्ध उस ठिकाने की ओर से होता है । रतलाम जाकर एक दफे अपन इन्दौर भी चलें।
इन साधुजी के पास दीक्षा लेने से तुम्हारा कोई विशेष भला न होगा । यति पने में रहने से तुम अच्छी विद्या भी पढ़ सकोगे और वैद्य करने वाले किसी अच्छे नामी यतिजी के पास रहकर तुम वैद्यक का ज्ञान अच्छा प्राप्त कर लोगे तो तुम हजारों रुपये भविष्य में कमा सकोगे । जैसे तुम्हारे स्व० गुरू देवीहंसजी महाराज का बड़ा नाम था
और बड़े २ जागीरदार सेठ साहूकार आदि उनके भक्त थे वैसा ही नाम तुम भी कमा सकोगे । इस सम्प्रदाय का साधु बन जाने से तुम्हारे जीवन का कुछ भी विकास नहीं होगा । ये लोग हमेशा पैदल चलते हैं अपना सामान आप उठाते हैं। ६.६ महिनों में सिर के केश अपने हाथ से उखाड़ते हैं। केवल कुछ ही जैन सूत्रों को ये पढ़ते रहते हैं और
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