Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 193
________________ १७०] जिनविजय जीवन-कथा उस दृष्टि से भारत में आने पर रूपाहेली में यदि वैसा कोई बाल शिक्षा केन्द्र स्थापित करने की संभावना है या नहीं? सो जानने की इच्छा से मैंने रूपाहेली जाने की सोची थी और उस विषय में ठाकुर साहब को किंचित् संकेत भी किया था, परन्तु भारत में आने के बाद तत्काल ही महात्मा गांधीजी से मुलाकात हुई और लाहौर की कांग्रेस में स्वराज्य प्राप्ति के निश्चय का जो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और तद्नुसार महात्मा जी ने जब देश के सम्मुख नमक सत्याग्रह का अद्भुत आन्दोलन चलाने का कार्यक्रम उपस्थित किया, तब मैं भी उस आन्दोलन में शामिल हो गया और अन्यान्य हजारों देश बन्धुओं के साथ मैं भी अंग्रेजी शासन के कारागार का आनन्द लेने चला गया। ___ उसके बाद जेल में से निकलने पर गुरुदेव रवीन्द्र नाथ के आमंत्रण से उनके स्थापित विश्व विख्यात विद्या केन्द्र, "शान्ति निकेतन" के "विश्व भारती" नामक विद्या पीठ में चला गया। कोई तीन चार वर्ष तक "शान्ति निकेतन' में साहित्यिक और शक्षाणिक कार्य में व्यस्त रहने से रूपाहेली जाने का उक्त मनोरथ सफल नहीं हुआ। सन् १६३६ में उदयपुर में सर्व प्रथम "राजस्थान हिन्दी साहित्य सम्मेलन" का विशिष्ठ अधिवेशन हुआ, तब उसके अध्यक्ष के रूप में मेरा उदयपुर आना हुआ। उस अधिवेशन में ठाकुर साहब स्वयं उपस्थित होना चाहते थे, परन्तु शारीरिक अस्वस्थता के कारण जब उनको वहां आना संभव नहीं लगा तो उन्होंने अपने एक पोश श्रीमान् रघुवीर सिंह जी को अपने प्रतिनिधि के रूप में वहाँ भेजा और मुझे उदयपुर से लौटते हुये रूपाहेली आने का आग्रह पूर्वक आमंत्रण दिया। तद्नुसार मैं उदयपुर सम्मेलन से लौटता हुआ, अपने साथी कुछ भाई बहिनों के साथ रूपाहेली ऐक दिन ठहरा और ठाकुर साहब से अच्छी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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