Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 152
________________ गुरु महाराज के स्वर्गवास के बाद [१२६ रख छोड़े हैं। हमने सुना कि इसके लिए वह भी कुछ कड़ी तैयारी कर रहा है । इसलिए शीघ्र ही यहां से रवाना हो जाना अच्छा है । सायंकाल की आरती के समय खाखी महाराज के पास नमस्कार करने गया तो उन्होंने मेरे सिर पर बड़े स्नेह से हाथ फेरा और बोले कि वह दुष्ट यहां आया हुआ है और कुछ झगड़ा, तूफान आदि मचाना चाहता है, इसलिए मैंने सेवक जी से कहा है कि वे तुमको हमारे मथुरा वाले मठ में रख आवें । सो तुम वहां चले जाओ बाद में ठीक ठाक हो जाने पर हम तुमको अपने पास बुला लेंगे हमारी तुम पर बड़ी आशा है हमने उस दुष्ट को बड़ी अच्छी तरह रखा, पढ़ाया और सब तरह से तैयार किया परन्तु वह दुराचारी निकला । इसलिए हमने उसको अपनी जमात से बाहर निकाल दिया है । परन्तु कुछ बदमाशों के साथ मिलकर वह हमारे साथ लड़ाई झगड़ा करना चाहता है। हम इसके लिए अब कुछ कानुनी कारवाई करना चाहते हैं । वह यहां मठ में आकर कुछ तूफ़ान भी मचाना चाहता है इसलिए अभी तुम्हारा यहाँ रहना ठीक नहीं समझकर हमने सेवक जी को वैसा करने को कहा है । तुम घबराना मत और किसी प्रकार की चिन्ता नहीं करना । शंकर भगवान की कृपा हुई तो तुम्हारा सब तरह से भला होगा। मैंने हाथ जोड़कर उनसे कहा कि, महाराज जैसी आपकी आज्ञा हो । उस रात को मठ की ऊपर वाली कोठड़ी में जाकर अपना कम्बल बिछा कर लेट गया, सेवक जी तो बहुत देर तक खाखी महाराज से कुछ इधर-उधर की बातें करते रहे और फिर अन्य साधुओं के साथ बैठकर गप्पे हांकते रहे । मुझे सारी रात नीद नहीं आई और सुखानंद जी से लेकर उज्जैन की आज तक की परिस्थिति के विचारों में मन उद्धेलित होता रहा । बाद में पिछली रात को सेवक जी जब मेरे पास आये तो मैंने उनसे कहा कि सुबह जल्दी यहां से उठकर क्षिप्रा नदी में स्नान करना चाहता हूँ। और शरीर पर लगी हुई इस भभूत को धोकर और लंगोट को उतार कर क्षिप्रा में बहा देना चाहता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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