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मंडप्या निवास-जैन यतिवेश धारण [१४३ अच्छे हैं । मंगलिक आदि अच्छी सुनाना जानते हैं । सुनकर सेठानी ने हाथ जोड़े मैंने झोली में से लकड़ी के दो तीन पात्र निकाल कर नीचे जमीन पर रख दिये । किसी कारणवश उस दिन उस घर में विशेष रूप से भोजन बना था। जिसमें मुख्यता खीर-पुड़ी की थी। कुछ सब्जियां चने आदि की दाल सी थी। सेठानी ने एक छोटे पात्र में खीर डाली, दूसरे पात्र में शाक-दाल डाले और तीसरे बड़े पात्र को पुड़ियों से भर दिया । हम उस उपाश्रय में तीन चार जन ही खाने वाले थे, जिनमें वहां के जो स्थानिक यति थे वे तो हमेशा की तरह बनियों के यहां से अपनी बंधी हुई रोटियां आदि ले आते थे। मैं अपनी झोली उठाकर अपने डेरे पर गया और ज्ञानचंद जी के सामने वह भिक्षा रख दी। ज्ञानचन्द जी उसे देखकर बोले कि किसन भैया तू तो बड़ा नसीब दार मालूम देता है । पहली ही दफे आज इस प्रकार गोचरी लेने गया और खीर तथा पूड़ियों से पात्र भर लाया। किसके यहाँ गोचरी गया था। वहां पास ही में बैठे हुए स्थानिक यतिजी ने कहा कि अमुक सेठजी इसको अपने घर ले गये थे । आज उनके यहां कोई शुभप्रसंग है इसलिए कई कुटुम्बी जनों को जीमने के लिए बुलाया है इसलिए उनके. वहां खीर-पुड़ी बनाई गई है।
तीनों चारों जनों ने एक साथ बैठकर भोजन किया । स्थानिक यति जी जो गोचरी लाये थे उसका भी हमने कुछ हिस्सा लिया और मैं जो कुछ लाया था उसको भी सभी ने यथा योग्य बांट लिया।
धीरे २ उस प्रतिष्ठा महोत्सव की तैयारी होने लगी। ज्ञानचन्द जी उसके लिए आवश्यक सभी सामग्री बनियों से मंगवाने लगे। निश्चित तिथि के पांच सात दिन पहले ज्ञानचन्द जी ने अपने खास परिचित चार पांच और भी यतियों को बुला लिया। उनमें बानेण वाले धनचन्दजी भी एक थे। इन सब यतियों के भोजन की व्यवस्था स्वतन्त्र रूप से गांव के बनियों ने कर दी थी। फिर मेरा गोचरी के लिए जाना बन्द हो गया। परन्तु उसके पहले गांव के मुख्य २ प्रोसवालों के घर भिक्षा निमित मैंने देख लिए थे। और वहां पर चेला जी महाराज के नाम से
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