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श्री सुखानन्द जी का-प्रवास और भैरवी-दीक्षा [१२३ है, और कौन क्या पढ़ता है, इस विषय में वे कभी कोई जानकारी नहीं करते थे। उनका खयाल केवल लोगों को यह बतलाने का रहता था कि खाखी महाराज के पास वहुत से चेले हैं, और वे कुछ विद्याएं पढ़ते रहते हैं। यों खाखी महाराज स्वयं भी कुछ अधिक पढ़े हुए नहीं थे हिन्दी और संस्कृत कुछ सामान्य रूप से जानते थे। उनके संस्कृत उच्चारण भी शुद्ध और स्पष्ट नहीं होते थे। वे अपनी सम्प्रदायानुरूप कुछ क्रिया विधियां और पूजा पद्धति आदि ठीक जानते थे। इसके सिवाय साहित्य, काव्य, व्याकरण आदि का उन्हें कोई परिज्ञान नहीं था । पूर्वावस्था में उन्होंने कुछ प्राणायाम और आसन वगैरह का अभ्यास किया होगा। ऐसा उनके बोलने चालने से लगता था। परन्तु उनकी मुखाकृति सौम्य और प्रभावशाली थी। इस समय उम्र भी पैंसठ और सत्तर के बीच की लगती थी। यूं तो जैसा कि ऐसे महन्त और सन्त माने जाने वाले व्यक्तियों का रिवाज होता है वे अपनी उम्र का खास परिचय नहीं देते । सामान्यतया बहुत बड़ी उम्र अर्थात् सौं बरस के ऊपर की प्रायु लोग समझे, ऐसा उनका अभिप्राय रहा करता है। इन खाखी महाराज के विषय में भी लोगों की वैसी ही धारणा बनी हुई थी।
रुद्र भैरवजी के कहने से मालूम पड़ता था कि खाखी महाराज का स्वास्थ्य अब अच्छा नहीं रहता है। उनको रात में नींद नहीं आती है
और मन में अपने उत्तराधिकारी तथा खास मठ कि सम्पत्ति आदि की चिन्ता बनी रहती है।
उनका एक मुख्य शिष्य है जो कई वर्षों से खाखी महाराज से नाराज रहता है । उस शिष्य को इन्होंने बचपन ही से अपने पास रखा था । और उसे दीक्षित बना दिया था। वह काशी के एक पंडे का अनाथ बच्चा था । उसको कुछ अच्छी तरह इन्होंने पढ़ाया था और उस पर इनका अधिक स्नेह था । पर वह स्वभाव का दुष्ट क्रोधी प्रकृति का और चालाक वृत्ति वाला था। ज्यों २ वह बड़ा होता गया, त्यों-त्यों
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