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श्री सुखानन्द जी का-प्रवास और भैरवी-दीक्षा
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तकलीफ तो नहीं हुई ? मैंने तेरे लिए कामदार जी से कह दिया है कि वह तेरी पूरी तरह देखभाल करते रहें । अभी तू नया २ इस जमात में शामिल हुआ है, इसलिए दो चार दिन कुछ अटपटा सा लगेगा। फिर सबके साथ जान पहचान हो जाने पर तथा हमारी रीत-भात जान लेने पर कोई अड़चन नहीं मालूम देगी । तुम्हारी विद्या पढ़ने की व्यवस्था हम आज से ही शुरू कर देना चाहते हैं। हमारे साथ एक ब्राह्मण पंडित है वह हमारे और शिष्यों को भी कुछ पढ़ाते रहते हैं वे ही पंडित तुमको भी पढ़ाना शुरू कर देंगे इत्यादि । मैंने खाखी महाराज की बातों को जो हुकम कह कर सिर पर चढ़ाली। फिर स्नान आदि कर लेने पर रूद्र भैरव जी ने रोज किस तरह स्नान आदि से निवृत हो जाना, किस तरह भभूत आदि शरीर पर लगा लेना, किस तरह आरती पूजा आदि में भाग लेना, इत्यादि बातें संक्षेप से समझायी तथा किस समय पंडित के पास पढ़ते रहना इसकी भी सूचना दी।
मेरे उठने बैठने तथा सोने के लिए एक छोटी सी छोलदारी नीयत कर दी। उसमें और कोई उठता बैठता नहीं था। उसी दिन दस ग्यारह बजे उन पंडित जी को लेकर कामदार जी मेरे पास आये और बोले कि चेलाजी महाराज ये पंडित जी आपको हमेशा पढ़ाते रहेंगे। खाखी महाराज के और शिष्यों को भी ये पढ़ाते रहते हैं । यह कहकर वे कामदार जी तो चले गये और पंडित जी मेरे पास बैठकर पूछने लगे कि चेलाजी महाराज आप पहले किसी स्कूल में या पाठशाला में कुछ पढ़े हैं ? आपको कुछ लिखना बांचना आता है ? मैंने जवाब में कहा कि मैं किसी पाठशाला आदि में कुछ नहीं पढ़ा हूँ हां, मैं छपी हुई बच्चों की छोटी किताबें कुछ बांच लेता हूँ। लिखने का मुझे कोई अभ्यास नहीं है । यह सुनकर वे पंडित जी उठकर चले गये। थोड़ी देर बाद अपने हाथ में दो तीन छोटी पुस्तकें लेकर आये। जिसमें एक तो उस जमाने में पढ़ाई जाने वाली वर्णमाला और बारहखड़ी की पुस्किका थी जिसमें पीछे के दो चार पन्नों में अंक और पट्टी-पहाड़े छपे हुए थे। एक दूसरी वैसी छोटी पुस्तक थी जिसमें पहली किताब के से छोटे-छोटे
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