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जिन विजय जीवन-कथा
गया एक दूसरे ऊँट पर खाखी महाराज की पूजा करने का सब सामान जिसमें महादेव जी आदि की मूर्तियां और उनका सिंहासन तथा भारती आदि की सब सामग्री रखी गयी। हाथी पर बैठने का लकड़ी का बना हुआ एक ठीक ढंग का हौदा था। उस पर भगवे रंग का मजबूत रेशमी कपड़े का बड़ा सा छाता लगा हुआ था। बाकी के ऊंट और घोड़े-घोड़ी सवारी के लिए थे । गाड़ियों में तम्बू-डेरे, बैठने की चौकी और खानेपीने के काम के बर्तन आदि रखे गये ।
जब चलने की सब तैयारी हो गई तो खाखी महाराज हाथी पर सवार हो गये। हाथी को चलाने वाला भभूत धारी खाखी शिष्य था जो काफी बड़ी उमर का तथा अच्छा हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला था। उसके एक हाथ में त्रिशूल था और दूसरे हाथ में हाथी को चलाने और बस में रखने के लिए लोहे का मजबूत अंकुश था। नगारे वाले तथा पूजा सामग्री वाले ऊंटों के सवार भी खाखी वेष धारी दीक्षित शिष्य थे । उस समय उस काफिले में हमेशा खाखी महाराज के साथ रहने वाले दीक्षित साधुओं के सिवाय उस मेले में आने वाले दस, बारह और भी बाबा, जोगी, साधु, बैरागी आदि साथ में हो लिये। इनमें चार पांच स्त्रियां भी थी जिनमें दो तो बिलकुल नव जवान सी लड़कियां थी और दो तीन प्रौढ़ और बड़ी उमर की थी। स्त्रियों के सिर मुंडे हुए थे। कपाल और मुंह पर भस्म लगी रहती थी। गले में सबके रुद्राक्ष मालाएं पड़ी हुई थी बदन पर लम्बी भगवे रंग की कफनी पहने हुए थी । बगल में एक छोटा-सा बीटा लटकाये हुए और हाथ में पीतल का कमंडल लिए हुए आगे पीछे चल रही थी। चलने की सूचना के निमित नगारे वाले . ऊंट पर बैठे हुए खाखी साधु ने सबसे पहले शंख बजाया और फिर नगारों पर डंके की चोटें लगायी, यह ऊंट सबसे आगे था, इसके पीछे खाखी महाराज का हाथी था, और उसके पीछे पूजा की सामग्री वाला ऊंट था । खाखी महाराज ने मेरे बैठने के लिए एक घोड़ी निश्चित की थी। एक घोड़ी पर रुद्र भैरव चलते थे, खाखी महाराज का जो कीमती सामान और रुपैया पैसा था उसमें से कुछ तो दो तीन छोटे संदूकों में
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