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जिनविजय जीवन-कथा
ठिकाने पर रहोगे तो तुम अच्छे विद्वान बन जाओगे और अच्छी प्रतिष्ठा पाओगे । यह बानेण का ठिकाना तुम्हारे लायक नहीं है । यहाँ न तुमको कोई विद्या पढ़ने का योग मिलेगा और न किसी अच्छे ठिकाने का लाभ मिलेगा। उनमें से किसी एक ने कहा कि तुम हमारे वहाँ आ जाओ, हमारी बहुत बड़ी जागीर है, बहुत बड़ा ठिकाना है। किसी ने कहा कि हम तुमको किसी अच्छी पाठशाला या विद्यालय में पढ़ने के लिये भेज देंगे और खूब पढ़ाएंगे। इन यतियों की इस प्रकार की बातें सुनकर मेरे मन में गुरु महाराज के उस अन्तिम वाक्य का स्मरण होता रहा, जिसमें उन्होंने कहा था-"बेटा रिणमल, तू विद्या पढ़ने का प्रयत्न करना, तू बड़ा विद्वान होगा और भाग्यशाली बनेगा।" - मेरे मन में यह भाव जागृत हुए कि गुरु महाराज ने जो बात मुझे कही है उसी वात की याद ये यति जन दिला रहे हैं। मैंने बानेण में रहते हुए उतने दिनों में अनुभव कर लिया था कि यति धनचन्द एक बहुत सामान्य व्यक्ति है, वह न कुछ पढ़ा लिखा है, न कोई प्रतिष्ठा प्राप्त है और न उनके स्थान में किसी प्रकार का विशेष साधन है । इस लिये मेरे मन में यह बात जमने लगी कि मैं किसी ऐसे ही अच्छे विद्वान
और अच्छे ठिकाने वाले यति के पास जाकर रहूं तो मुझे विद्या पढ़ने का अवसर मिलेगा । परन्तु उस समय तो गुरु महाराज का स्वर्गवास तुरन्त ही हुआ था। और मेरी माता का स्मरण मुझे बारम्बार हो रहा था। में कुछ मन ही मन खिन्न रहता था और यति धनचन्द जी तथा उनके परिवार के साथ मेरा कोई तालमेल नहीं बैठ रहा था।
यति धनचन्द जी के अधिकार में कुछ खेती बाड़ी की जमीन थी। गांव के पास ही किन्ही पूर्व यतिजनों द्वारा बनवाई हुई एक मजबूत और अच्छी बावड़ी थी। उस समय वहां पर १०,१२ बीघा जितनी जमीन में खेती की गई थी। मैं, धनचन्द जी और उनके परिवार की स्त्रीजनों के साथ खेत में जाता रहता था और बड़े शौक से मैं भी खेती का काम करता था। इसके पहले मुझे रूपाहेली में कोई खेती का काम करने का
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