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श्री सुखानन्द जी का प्रवास
और
भैरवी-दीक्षा वैशाख महिने की पूर्णिमा के आसपास जावद गांव के निकट जो सुखानन्द जी नामक महादेव का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है । वहाँ पर मेला लगा करता है । उस मेले के अवसर पर बानेण के वह सेवक जी जाना चाहते थे। ऐसे स्थानों को देखने की मेरी इच्छा अब धीरे धीरे बढ़ रही थी । अतः मैं वहाँ जाने को तैयार हुआ। बानेण से मैं और सेवक जी दोनों ही पैदल चले और निम्बाहेड़ा होकर अठाणा होते हुए सुखानन्द जी पहुंचे। ___ सुखानन्द जी के उस मेले के अवसर पर आसपास के सैकड़ों लोग आये हुए थे। कुछ साधु, सन्त, बाबा, वैरागी आदि लोग भी वहाँ पर जमा हुए थे। उनमें से एक बड़े खाखी बाबा का भी अच्छा काफिला था। उन खाखी बाबा के साथ एक हाथी, दो चार घोड़े, दो चार ऊंट आदि सवारी का भी लवाजमा था। मेले में सबसे अधिक आकर्षण योग्य खाखी बाबा का दर्शन करने वाली बात थी । एक खुले मैदान में खाखी बाबा का तम्बु लगा हुआ था। और उसके आसपास कुछ छोटी बड़ी छोलदारियां लगी हुई थी खाखी बाबा का निवास उस बड़े तम्बू में था। एक अच्छे पलंग पर बहुत बड़ा व्याघ्र चर्म बिछाकर उस पर वे बैठे रहते थे। उनके सामने ५, ७ हाथ की दूरी पर एक बड़ी सी धूनी जला करती थी। जिसमें भक्त लोग लकड़ी के उपरान्त घी का हवन किया करते थे । लोग,जो दर्शन करने आते थे अपने हाथ में नारीयल
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