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जिनविजय जीवन-कथा
मुझे देखने को दौड़ आये । कई लोगों ने मेरे सामने कुछ पैसे टके रखे मौर हाथ जोड़कर नमस्कार करने लगे । बाबाजी के शिष्य ने सबको किशन भैरव के नाम की जय पुकारने को कहा, साथ में अपने गुरु खाखी महाराज शिवानन्द भैरव की भी जय बोलने को कहा, इसके बाद भोजन का समारंभ शुरू हुआ ।
यूंतो खाखी महाराज के डेरे पर हमेशा ही माल ताल उड़ा करता है, पर उस दिन कुछ विशेष रूप से भोजन सामग्री बनाई गई थी । सब जनों को भोजन करवाने के पहले एक थाल भरकर तो देवता के भोग के लिये लाया जाता था और दूसरा थाल खाखी महाराज के भोजन के लिये लाया जाता था, उस दिन एक तीसरा थाल भी लाया गया जो नये शिष्य के खाने के लिये था खाखी महाराज ने अपने ही तम्बु में एक तरफ मुझे बिठाकर अपने हाथ से मेरे दाहिने हाथ में कुछ खाने की चीज रखकर मुझे 'ओं नमः शिवायः' इस वाक्य के साथ उसे खाने का आदेश दिया ।
उस मेले में और भी अनेक बाबा, साधु, संत, सन्यासी, वैरागी आदि आये हुए थे । उन सबको आज खाखी बाबा की ओर से भोजन देना निश्चित हुआ था । इसलिए उन सबको भी भोजन के समय बुलाया गया । खाखी बाबा के तम्बू के सामने मैदान में पांच सात अच्छे बड़े वृक्ष लगे हुए थे । उन्हीं के नीचे सबको भोजन करने बिठाया गया । कुल मिलाकर कोई सौ - सवासी भोजनार्थी थे । इनमें कुछ स्त्रियां भी थीं जो साधु, बैरागी का सा भेष पहने हुई थीं । अनेक तरह की बोलियां बोलने वाले उनमें शामिल थे। कई जनों की बोली तो मेरी समझ में भी नहीं आती थी । पर उस भोजन के समय सभी की बातचीत का मुख्य विषय प्राज होने वाले बाबाजी के नव दीक्षित बटुक भैरव का था और इसीलिए बाबाजी ने आज यह भोजन समारंभ करवाया था । भोजन कर लेने के बाद वे सभी भोजनार्थी उठ उठकर खाखी महाराज को बड़े आदर के साथ नमस्कार करने आये, खाखी बाबा ने उन सबको
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