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श्री सुखानन्द जी का प्रवास और भैरवी-दीक्षा [. महादेव जी के मन्दिर में जब हम पहुंचे तो वहाँ चौकी पर खाखी । बाबा बैठे हुए नजर आये, तब मुझे दोनों हाथ जोड़कर उन्हें मुख तथा कपाल से लगाकर और दोनों घुटने जमीन पर टेक कर पंचांग प्रणिपात करने को कहा गया । वैसा करने पर खाखी बाबा ने अपने दाहिने हाथ में भभूती लेकर मेरे मस्तक पर तीन बार मल दी और कुछ मंत्र मन में बोलते हुए मेरे सारे शरीर पर भी उसी तरह भभूत लगाई फिर मेरे कान में उन्होंने कहा- 'मैं शिवानन्द भैरव तेरा गुरू हूँ और मैं अब तुझे भैरवी दीक्षा देकर अपना शिष्य बना रहा हूँ, तेरा नाम मैं किशन भैरव स्थापित करता हूँ।- इसी प्रकार के पाँच सात वाक्य उन्होंने संस्कृत भाषा में कहे । बाद में 'ओं नमः शिवायः' का जय घोष किया-जिसका वहाँ उपस्थित खाखी बाबा के शिष्य और परिजन आदि सबने मिलकर उच्चारण किया। बाद में महादेव जी की आरती उतारी गई और कुछ भजन गाये गये। उस समय उस मंदिर में बाहर के अन्य किसी जन को नहीं आने दिया गया था। ___ यह दीक्षा विधि पूरी करके खाखी बाबा मुझे अपने साथ लेते हुए सभी साथी एवम् परिजनों को जुलूस के रूप में अपने डेरे पर लाये । ___ डेरे पर पहुंचते ही शंख बजाया गया और खाखी महाराज की निज की पूजा उपासना का जो इष्टदेव की मूर्ति आदि रखने का चांदी,तांबा, पीतल आदि धातुओं से बना हुआ अच्छा बड़ा-सा सिंहासन था उसके सन्मुख आरती एवम् धूप दीप आदि पूजा विधि पूरी की गई, फिर मुझे एक चौकी पर प्रासन लगाकर बैठ जाने का आदेश हुआ । वह मध्याह्न कालीन आरती और पूजा विधि देखने के लिये बहुत से नर नारी वहाँ एकत्रित हो गये उनके सामने खाखी बाबा ने अपने नव दीक्षित शिष्य का कुछ बयान किया और सबको नमस्कार आदि करने की सूचना दी।
मैं एक छोटा-सा नव दीक्षित खाखी बाबा के स्वांग में वहां बैठा हुआ मुस्करा रहा था। पुरुष, स्त्रियां और बच्चे आश्चर्य के रूप में
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