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श्री सुखानन्द जी का-प्रवास और भैरवी-दीक्षा
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उस्तरा मेरे सिर पर फेरने लगा और मुझसे तरह तरह के प्रश्न पूछने लगा, बोला-"कवर साहब कहाँ के हो ? क्या खाखी महाराज के चेले बन रहे हो, साथ में आपके कौन है? किस जाति के हो? खाखी महाराज के पास कितने दिन से रह रहे हो ?"
ऐसे कई प्रश्न वह करता जाता था और उस्तरे से मेरे सिर के बाल साफ किये जा रहा था। मैं उसकी बातों का कोई खास उत्तर नहीं देता था, तब वह फिर बोला--घर से लड़ झगड़ कर भाग आये मालूम देते हो, इस तरह अच्छी खानदान वाले घर के लोगों से चुपचाप भाग आना और ऐसे बाबा जोगटों की जमात में आ मिलना कोई अच्छी बात नहीं है । ये जोगटे न जाने कहाँ के, किस कोम के, किस खानदान के होते हैं। इनमें बहुत से बुरी आदत वाले, गांजा भांग पीने वाले, रंडी बाजी करने वाले होते हैं। आपको इनकी जमात में मिल जाने की किसने सलाह दी "
ऐसी अनेक बातें वह नाई बिना पूछे ही कहता जाता था। उसकी बातें सुनकर मेरे मन में कुछ विचार भी उठ रहे थे। सिरका मुंडन पूरा होते ही मैं उठ खड़ा हुआ इतने में कामदारजी आ गये और उन्होंने एक रुपया नाई को बख्शीश दिया फिर वे मुझसे बोले-'चलो भैया अब कुंड पर जाकर अच्छी तरह स्नान करलो, वहीं पर चेलाजी महाराज तुम्हारे शरीर पर भभूत लगावेंगे, तिलक आदि बनावेंगे । ___ मैं शीध्र उत्साह के साथ कुंड पर पहुंच गया। और पहना हुआ कुरता तथा मैली सी धोती थी उसे उतारकर साथ में जो एक मात्र पुराना गमछा था उसे कमर में लपेट लिया और कुंड में कूद पड़ाअच्छी तरह शरीर खूब मलकर और सिर को खूब हाथों से रगड़ कर धोया--तब सेवकजी और कामदारजी के कहने से बाहर आया और महादेव जी के मंदिर के पास वहाँ के बाबाजी की जो कुटिया थीहम सब उसमें गये । वहाँ पर खाखी बाबा के दो या तीन चेले बैठे हुए थे तथा सुखानन्द जी के खाखी बाबा भी एक मृगछाला बिछा कर उस
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