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गुरु के सर्व प्रथम दर्शन
[७५ बानेण गांव में पहले जो यति लोग रहा करते थे उनकी दाहक्रिया एक खास स्थान में हुआ करती थी, जो स्थान यतियों की ही मालिकी का था। उस जमीन में एक अच्छी पक्की बावड़ी बनी हुई थी । जो किन्ही पूर्व के यतियों ने बनवाई थी । उसी बावड़ी के साथ दो तीन पुरानी छत्रियां बनी हुई थीं। उन्हीं के पास गुरु महाराज की भी चिता लगाई गई और वहीं पर उनके शरीर को अग्निदेव को समर्पण कर दिया था। __इस प्रकार मेरे पिता और मेरे गुरु के पार्थिव शरीर को मैंने अपने हाथों से अग्निदेव को समर्पण कर दिया। मैं एक प्रकार से सर्वथा अनाथ बन गया।
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