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मेरे दादा और पिताजी
जीवन की घटनायें उक्त संग्रामसिंह का परिवार जो श्रीनगर के पास वाले ठिकाने में रहता था, मेरे दादा तखतसिंह जी भी अधिकतर वहीं रहते थे। मेरे पिता का जन्म वहीं हुआ था।
जब संवत् १९१४ अर्थात् ईस्वी सन् १८५७ में उत्तर भारत के बहुत से स्थानों में अंग्रेजी सेना के भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध बलवे का रूप धारण किया तब राजस्थान के अजमेर मेरवाड़ा की नसीराबाद की सैनिक छावनी में भी कुछ भारतीय सैनिकों द्वारा मारकाट के कुछ प्रसंग बने । उन भारतीय सैनिकों में राजपूत जाति के भी बहुत से सैनिक थे। उनमें हमारे परिवार के कुछ रिश्तेदार जवान भी शामिल थे। उनमें के दो चार रिश्तेदार जवानों ने नसीराबाद की छावनी से मारकाट के बाद भागकर संग्रामसिंह की ढाणी में आकर आश्रय लिया।
इसका पता नसीराबाद के अंग्रेज अफसरों को लगा तो उन्होंने कुछ सैनिकों का दल उस ढाणी का घेरा डालने के लिये भेजा। ढ़ाणी के मालिक संग्रामसिंह तथा उनके भाई सूरत सिंह व लड़का नाहरसिंह आदि ने उनका सामना किया और काफी मारकाट हुई । इसमें संग्राम सिंह आदि परिवार के तीन चार मुख्य व्यक्ति मारे गये । मेरे दादा तखतसिंह तथा मेरे पिता वृद्धिसिंह ने भी इस मारकाट में पूरा भाग लिया।
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