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जिनविजय जीवन-कथा
जवाब में मैंने अपना नाम बताया और निवास स्थान फिलहाल गुजरात में अहमदाबाद है ऐसा कहा । मेरा नाम मुनि जिनविजय सुनकर, पहले तो उनको कुछ अटपटा लगा-दो-तीन बार उन्होंने नाम पूछा__कुवर साहब के कमरे के पास ही एक और कमरा था जिसमें उस समय ठाकुर साहब चतुरसिंह जी आकर बैठे हुए थे। कुंवर साहब मुझसे जो बातें तेज आवाज में पूछ रहे थे वे ठाकुर साहब के कानों में भी पहुंची, तो उनको खयाल हुआ कि कुवर जी किन से बात कर रहे हैं ? उन्होंने उस नौकर को अपने पास बुलाया और पूछा कि कुंवर जी किस से बात कर रहे हैं । कोई बाहर का आदमी आया हुआ है क्या ? तब उस नौकर ने मेरा जिक्र किया। सुनकर ठाकूर साहब को मेरे बारे में जिज्ञासा हुई। और नौकर को कहा कि जो बाहर से आये हैं उनको यहाँ बुला ला । नौकर ने कुवर जी से कहा, कि दाता इनको वहां बुला रहे हैं।
कुवर जी ने कहा ले जाओ। मैं उनको नमस्ते कहकर पास वाले ठाकुर साहब के कमरे में प्रविष्ट हुआ। ठाकुर साहब एक ऊँचे-से झरोखे के चोंतरे पर गादी तकिया डालकर बैठे हए थे। और दो-एक पुस्तकें भी उनके पास पड़ी थी। मैंने उनको देखते ही हाथ जोड़कर प्रणाम किया। उनकी शकल व आवाज से मैं यों परिचित तो था ही पर वे मुझे पहचान सकें ऐसी मेरी अवस्था आदि नहीं थी। उन्होंने मेरे प्रणाम को स्वयं हाथ जोड़ कर स्वीकार किया, और पास में चोंतरे पर पड़ी हुई दरी पर बैठने को कहा ।
ठाकुर साहब चतुरसिंह जी कुवर साहब से अधिक संस्कारी और अनुभवी थे। उदयपुर में महाराणा की सेवा में रहने के कारण उनको अनेक व्यक्तियों से मिलने करने का तथा उनसे यथोचित संपर्क आदि रखने का अनुभव था। वे स्वयं बड़े विद्यानुरागी तथा विद्वानों का समागम करने में रुचि रखते थे । इतिहास का उनको अच्छा शौक था।
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