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मेरे दादा और पिताजी के जीवन की कथायें [४७ स्नेह प्रपूर्ण स्वर से शुभाशीष के सुमधुर शब्दों को मन में स्मरण करता हुआ इस स्टेशन से रवाना हुआ था, और आज उस माता के मृत्यु के दुःखद समाचारों का उद्वेगजनक स्मरण करता हुआ अन्य मनस्क होकर फिर उसी तरह अपने लक्ष्य हीन जीवन को भविष्य के अज्ञात मार्ग की प्रोर ले जा रहा हूँ।
अजमेर से अहमदाबाद की गाड़ी में बैठकर दूसरे दिन अपने स्थान गुजरात पुरातत्व मंदिर में पहुंचा वह दिन माघ शुक्ला १४ था, मेरी वह जन्म तिथी थी, उस दिन मेरे जीवन ने आयु के ३५ वें वर्ष में प्रवेश किया था।
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