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जिनविजय जीवन-कथा
बना हुआ था। उसके ऊपर पक्की छत थी। मकान के आगे दस बारह फुट खुला आँगन था। मुख्य दालान के अगल बगल में छोटे दो कमरे थे, जिनमें से एक कमरा रसोई बनाने के काम आता था। छोटा सा एक बन्द कमरा था, जिसमें गुरु महाराज के बक्से आदि रखे रहते थे और ओढ़ने बिछौने का सामान भी उसमें रखा रहता था। उसके मुकाबले में धनचन्द यति का यह मिट्टी का कच्चा घर बिल्कुल निकम्मा सा लगता था । परन्तु अब कोई उपाय नहीं था। जिससे गुरु महाराज कहीं और जगह जाने का विचार कर सकते । यद्यपि धनचन्द यति बड़ी भक्ति पूर्वक उनकी सेवा सुश्रूषा करने में व्यस्त रहता था।
धनचन्द यति का एक छोटा सा परिवार था। उसकी एक वृद्धा माता थी और उसकी एक प्रोढ़ उम्र वाली बहिन भी थी, जो किसी अन्य गांव में ब्याही गई थी। उसके दस ग्यारह वर्ष की एक लडकी भी थी, जो प्रायः उसकी नानी के पास ही रहती थी। धनचन्द यति के एक रक्षिता स्त्री भी थी, जो शरीर में सुडोल और गौर वर्ण की थी। वह स्त्री छप्पन के दुष्काल में अपने एक आठ दस वर्षीय बच्चे को साथ लेकर धनचन्द के पास आकर रही थी। वह स्त्री चित्तौड़ के किसी ब्राह्मण के घर की थी । जिसका पति मर जाने से वह विधवा होगई थी। धनचन्द यति की उम्र उस समय कोई ४५ वर्ष के आस पास थी। . उसका लम्बा कद था और बड़ी बड़ी मूछे थीं। यति के वेष में वह रहता था, उसके घर के पास ही एक छोटा सा शिखरबन्द जैन मंदिर बना हुआ था । जो शायद धनचन्द यति के किन्ही पूर्वज यतिओं द्वारा बनवाया गया था। बानेण गांव में जैन धर्मानुयायी ओसवाल जाति के महाजनों के बीस-पच्चीस घर थे । कुछ माहेश्वरी जाति के महाजनों के भी घर थे। - गुरु महाराज की सेवा सुश्रूषा की दृष्टि से धनचन्द कुछ लेप आदि का उपयोग किया करते थे। जिससे धीरे धीरे गुरु महाराज का दर्द कम हो गया था, परन्तु वह-पग सर्वथा निकम्मा हो जाने से वे स्वयं उसको
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