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मेरे दादा और पिताजी के जीवन की घटनायें
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मुझे उन्होंने कुछ जेवर दिये जिनकी कीमत ४००-५०० रुपये जितनी थी, कुछ समय तो मैं इन्दा जी के पास रहा, इन्दा जी की एक बेटी, जिसका नाम बाई प्रताप कुवर है और वह आगूचे ब्याही है, इन्दाजी के पास कुछ गायें आदि थी, उनकी पत्नि मर गई तो वे बाद में अपनी गायें वगैरह लेकर आगूचा चले गये, माता जी के यहाँ से चले जाने के बाद फिर उनके कोई समाचार नहीं मिले इत्यादि । ____ मैंने उस भाई से कहा कि तुम एकलसींगा या उसके पास जो खेड़ा है वहाँ जाकर माताजी के बारे में पता लगाओ मैं रुपये देता हूँ। ठाकुर साहब को भी यह बात सूचित की तो उन्होंने उसको उसी समय ऊँट की सवारी कर वहाँ जाने का हुक्म दिया। खर्चे के लिये मैंने उसे १०) रुपये दिये, अजिता जी के मुख से माता की उस दशा का वर्णन सुनकर मेरा हृदय विदीर्ण सा हो गया ।
उस दिन फिर मैंने ठाकुर साहब से विशेष बात चीत नहीं की, मैं मन ही मन अन्तर की अव्यक्त वेदना का दुःखानुभव कर रहा था, कि विधाता ने क्यों हम माता पुत्र को ऐसे क्रूर विधान का कष्ट भोगी बनाया, इसका कोई समाधान नहीं मिल रहा था, २०-२२ वर्षों से मैं इस दुनिया में इधर उधर भटक रहा हूँ । हजारों मनुष्यों के सम्पर्क में आता रहा हूँ। सैकड़ों स्त्री पुरुष मेरे पैरों पड़ रहे हैं, अनेक बड़े २ विद्वान और धनवान मेरा सम्मान करते रहे हैं। कई विशिष्ट स्त्रीयां श्रद्धापूर्वक मेरी भक्ति आदि करती रही है। अनेक विद्यार्थी और शरणार्थी जनों को मैं आर्थिक सहायता देता रहा हूँ, कई संस्थायें और कार्यालयों का संस्थापन और संचालन करता रहा हूँ। पत्र, पत्रिकायें छपवा रहा हूँ, पुस्तकें लिख रहा हूँ, जगह २ सभाओं में जा रहा हूँ। लम्बे चौड़े व्याख्यानादि दे रहा हूँ, लोगों को धर्म, समाज और देश की सेवा का उपदेश दे रहा हूँ, परन्तु जिस जननी ने मुझे यह मानव जीवन प्रदान किया और अपने रुधिर से उत्पन्न दूध का पान कराकर मेरा पालन-पोषण करती हुई, मुझे बड़ा किया, ११-१२ वर्ष तक मुझे अपनी
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