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जिनविजय जीवन-कथा
के पिताजी वापस अपनी सिरोही राज्य की नौकरी पर चले गये। मेरी माता के साथ उनके पिता ने एक विश्वस्त खानदान सेवक को डायजे के रूप में दे दिया था, जो सदा मेरी माता के पास रहता था । - एक दो वर्ष के भीतर ही मेरी माता के पिता का स्वर्गवास हो गया। पिताजी अपनी नौकरी से अवसर पा कर बीच-बीच में रूपाहेली चले आते थे । मेरी माता अपने पिता की मृत्यु के बाद शायद एक ही बार अपने जन्म गांव गई थीं। उनके पिता के ठिकाने में जो घरबार आदि थे वे सब भाई बेटों ने कब्जे में कर लिये थे और जागीर पर भी अपना अधिकार कर लिया था। इसलिए माता की इच्छा अपने पीहर में जाने की कभी न हुई।
वि. सं. १९४४ में मेरा जन्म हुआ पाँच वर्ष बाद मेरे छोटे भाई का जन्म हुआ। जिसका नाम बहादुरसिंह रखा गया। मां उसे बादल के नाम से पुकारा करती थी। मेरी माँ ने मेरे पहले एक पुत्री को जन्म दिया था जो दो तीन वर्ष की होकर मर गई थी। __ जैसा कि आगे के प्रकरण में बताया जायगा मैं जब १०-११ वर्ष का था तब मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई। चूकि पिताजी की नौकरी दूर प्रदेश सिरोही राज्य में थी और माता प्रायः रूपाहेली में ही रहा करती थी, इसलिए पिताजी के साथ मेरा अधिक रहना नहीं हुआ। मैं प्रायः माता के साथ रहा।
उस युग में रूपाहेली में कोई स्कूल या पाठशाला नहीं थी, जिससे ११-१२ वर्ष की उम्र तक मुझे किसी प्रकार का अक्षर बोध तक नहीं हुप्रा । ___ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती गई खेल कूद में मेरा समय व्यतीत होता गया मुझे तालाब बावड़ी में गंठे लगाना तथा नहाने-तैरने का बड़ा शौक था । अन्यान्य समवयस्क बड़कों के साथ मुल्ली डन्डा गेडीदड़ा आदि
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