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मेरे दादा और पिताजी के जीवन की घटनायें
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सामने जिन महाजन की दुकान है उसके मालिक कौन है ? उनका क्या नाम है । ये प्रश्न सुन कर वह पुजारी कुछ विचारों में पड़ गया। फिर उसने पूछा कि क्या पहले कभी यहाँ आये हो ? मैंने कहा कोई २२-२३ वर्ष पहले यहाँ एक जैन यति महाराज रहते थे जो बहुत वृद्ध और बड़े नामी वैद्य थे। उनके पास कुछ दिन रहा था, उसके बाद फिर कभी आना नहीं हुआ। यह सुनकर उस ब्राह्मण को कुछ विशेष जिज्ञासा उत्पन्न हुई, और बह पूछने लगा कि तो अभी यहाँ किसलिए आना हुआ है। मैंने कहा कि मेरे कोई पुराने रिश्तेदार इधर कहीं किसी गाँव में रहते हैं और उनका कुछ पता लगाना हैं।
यह बात हो ही रही थी कि एक नौकर सा व्यक्ति वहाँ आ खड़ा हुआ और तेज आवाज से बोला कि-पुजारी जी, यह अजनबी आदमी कहीं से आया है और इसकी खबर रावले में पहुँची है, सो कुवर साहब ने हुक्म दिया है कि इसको तुरंत रावले मैं हाजिर करो । सुनकर पुजारी चुप हो गया और मैं भी चकित-सा हो कर उस नौकर के सामने देखने लगा तथा सोचने लगा कि बात क्या है ? मैं उससे कुछ पूर्वी कि भाई बात क्या है ? पर उसने तो तुरन्त हुक्म किया चलिये और कोई बात न करिये ठाकुर साहब का हुक्म है कि अभी जो आदमी स्टेशन से गाँव में आया है उसे तुरन्त यहाँ ले आओ।
बात यह थी कि उन दिनों महात्मा गाँधी जी ने भारत को स्वतन्त्र बनाने के लिये अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिये देशव्यापी जो असहकार आन्दोलन शुरू किया था उसकी प्रतिध्वनि देशी राज्यों में भी गूंजने लगी थी। राजस्थान के प्रजाजनों में भी इधर-उधर कुछ आन्दोलन की हवा बहने लगी थी। देशी राज्यों की स्थिति तो गुलामों के भी गुलाम जैसी थी, इसलिए अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ कोई भी हलचल देशी राज्यों में न होने पावे इसकी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सूचनाएँ सभी देशी राज्यों में अंग्रेज शासकों द्वारा प्रसारित
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