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मेरे दादा और पिताजी के जीवन की घटनायें
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कौन रहता होगा ? मेरी माता के साथ जो एक चाकर रूप परिजन था वह भी मौजूद होगा या नहीं ? ऐसे ही अनेक प्रकार के विचारों में मैं निमग्न था कि गाड़ी रूपाहेली के स्टेशन पर रुकी ।
मैं तुरन्त ही नीचे उतर पड़ा । इधर उधर देखा तो स्टेशन पर कोई नजर नहीं आया । परन्तु २१-२२ वर्ष पहले, १३ वर्ष की उम्र में, इस स्टेशन पर से गाड़ी में बैठकर जब गुरु देवी हंसजी यतिवर के साथ चित्तौड़ की ओर चलना हुआ था, उस समय की याद दिलाने वाला स्टेशन का मकान ठीक उसी रूप में और उसी तरह अचल भाव से खड़ा हुआ दिखाई दिया । ५ मिनिट तक अनिमेष भाव से मैं स्टेशन की तरफ देखता रहा, इसी स्टेशन पर से मैंने अपना जीवन प्रवास शुरू किया और पिछले २१-२२ वर्षों तक कहाँ कहाँ घूमा फिरा और कैसे विचित्र स्वरूप धारण कर क्या २ करता रहा और आज फिर इसी विचित्र वेष में, एकाकी अपरिचित असंग और अलक्षित रूप में यहाँ उपस्थित हो रहा हूँ । मन कुछ उत्कंठा, कुछ उद्विग्नता और कुछ कुतूहल भाव से भरा हुआ था ।
स्टेशन मास्टर ने टिकिट लिया फिर वह मेरी ओर कुछ क्षण तक विस्मित भाव से नीचे से ऊपर तक देखता रहा । बाद मंन्द स्वर से पूछा, आप कहाँ से आ रहे हैं ? मैंने मुस्कराते हुए कहा, अहमदाबाद से । उसने फिर पूछा, वहाँ क्या करते हैं ? जवाब में मैंने कहा, कुछ लिखने पढ़ने का और कुछ विद्यार्थियों को पढ़ाने का काम करता रहता हूँ । उसने कहा, कहाँ जा रहे हैं ? मैंने उत्तर दिया- रूपाहेली । वहाँ क्या काम है ? उत्तर मैं मैंने कहा — किसी रिश्तेदार से मिलना है । इतने में ही तार की घंटी बजी और वह अपने कमरे में चला गया। मैं गाँव के रास्ते चल पड़ा ।
रूपाहेली स्टेशन से गाँव दो ढाई मील की दूरी पर है । रास्ता कच्चा और धूल भरा हुआ था । ज्यों ज्यों गाँव नजदीक आता गया त्यों त्यों मेरे बचपन के अनेक स्मरण उभरते गये, गाँव से आधा मील कुब एक लम्बा चौड़ा मैदान है जिसमें गाँव के बहुत से समवयस्क
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