Book Title: Jindutta Kathanakam
Author(s): Omkarshreeji
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ प्रस्तावना पूज्यपाद आगम प्रभाकर श्रुत-शीलवारिधि दिवंगत मुनिभगवंत श्री पुण्यविजयजी महाराज साहेबे पोताना कार्यकाळमां नाना-मोटा अनेक प्राचीन ग्रंथभंडारोन अवलोकन करीने पोताना मुख्य कर्तव्यरूप जैनआगमप्रकाशन अंगेनी सामग्री तो मुख्यतया एकत्रित करी हती । आ उपरांत तेमना अन्वेषणमां कोई पण विषयनो नानो के मोटो जैन के अजैन अज्ञात ग्रंथ, जो तेमना जोवामां आवतो, तो शक्य होय तो तेओ तेनी नकल करावी. लेता, अने जो ते प्रकारनी अनुकूळता न होय तो तेनी फोटो कॉपी तो करावी ज लेता । वळी प्रकाशित थयेला कोई पण विषयना ग्रंथो पैकी पण जो कोई ग्रंथनी विशिष्ट हाथ प्रत तेमना जीवामां आवती तो तेनी साथे मुद्रित नकलने अक्षरशः मेळवावी लेता, अने ते पण जो शक्य न होय तो तेवा विशिष्ट ग्रंथनी पण फोटो कापी करावी लेता। उपर जणाव्या प्रमाणे प्रस्तुत जिनदत्तकथानकनी, सं.० १६६७ मां लखायेली कोई प्रति उपरथी पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए कोईनी पासे नकल करावेली हती । आ केवल नकल ज हती तेथी जेना आधारे मुद्रण थई शके तेवी पदच्छेदवाळी कोपी न हती। आ पछीनां वर्षामां तेमने कोईक स्थळेथी आनुं प्रत्यन्तर मळेलं तेनी साथे उक्त नकलने कोईनी पासे मेळवावेली पण खरी, आना पाठभेदनी नेांधना पाछळ 'प्रत्यन्तरे' संज्ञा लखेली हती, जुओ पृ. १८, टि. १ तथा टि० ४, पृ० ३५ टि० २-३, पृ० ३६ टि. २-३ । आ उपरांत शान्तमूर्ति मनिभगवंत श्री हंसविजयजी महाराजना संग्रहनी प्रतिनी साथे प्रस्तुत नकलने मेळवेली लागे छे. नकलना छेडे हं०' संज्ञा लखीने लेखकनो पुषिका नेांधेलो हती तेथी आ निर्णय थई शक्यों छे । वळी नकलना अंतर्मा 'उ १६' लखेलं हतं आथी कल्पी शकाय छे के छत्रीस पानांवाळी आ प्रति कदाच ऊंझाना ग्रंथभंडारनी होय. जेना उपरथी अहीं जणावेली प्राथमिक नकल थई होय ।। कोईने प्रकाशित करवा माटे उपयोगी थई शके तेवा, केवळ नकल लेवराववाना आशयथी आ नकल करावेली लागे छे, अने जे कोईने आ काम सोंप्यु हशे तेमणे सामान्य संकेत पूरती नेांध लखेली तेना आधारे अहीं आटलं जणावी शकायु छे । प्रतिपरिचय 'पु०' प्रति--पूज्यपाद आगम भाकरजीए लखावेली उपर जणावेली प्राथमिक नकलनी 'पु०' संज्ञा आपी छे। । ई.' प्रति--श्री आत्मारामजी जैन ज्ञानमंदिर (बडोदरा) मां सुरक्षित श्री हंसविजयजी जैन ज्ञानभंडारनी । ३३ पानामां लखायेलो आ प्रति छे । प्रत्येक पत्रनी पृष्ठिमा १३ पंक्तिओ अने प्रत्येक पंक्तिमा ४० अक्षर छ। स्थिति सारी अने लिपि सुवाच्य छ । प्रतिनी लंबाई-पहोळाई १०x४। इंच प्रमाण छे । अंतमा लेखकनी पुष्पिका आ प्रमाणे छे--"सं० १६६३ वर्षे मागसीर वदि ५ बुधवासरे सारंगपुरनगरे लिखित सा. मेघा । शुभं भवतु ॥" उपर जणावेली सामग्रीना आधारे परमपूज्य साध्वीजी श्री ओंकारश्रीजीए पोते मुद्रणयोग्य नकल लखीने प्रस्तुत ग्रंथनु संशोधन-संपादन कर्यु छे ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 132