Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 12
________________ जि०म० | चरण करण गुण धाम । णघा शिष्य परवरा । होसु० । घणा०॥ आया महेन्द्र पुर मांय। खण्ड ? स्थानक जाची करी । होसु० । स्थान० ॥ तिहां रह्या सहु संत। नगरमें फैली चरी || होसु०। नगर०॥ ५॥ भव्य सुणी हर्षाय । दरसण भणी आवीया । होस० । दर०॥ IN| सवेसख दाइ उपदेश । गुरुजी फरमावीया । होसु०। गुरु०॥सणी हा सहजन । विनं-1॥ नाती इमकरे। होस। विनं०॥ वयस्थैवरथइ महाराज। मानो इण आवसरे । होसु० । मा- 11 नो०॥६॥ हमपर कृपाकर । स्थिरवासे रीजीये । होसु० । स्थिर०॥ धर्मतणी होसीबृद्दी।।।। बचन म्हाने दीजीये। होसु० । बच०॥ अवसरजाणी ऋषिराज । कहेजाणी जसे । होसु० । कहे ॥ खुशी हुवा सह भव्यधर्म बृद्धिथसे। होसु०। धर्म०॥ ७॥ श्रीपतनिजघरमांही। कहे परिवारने । होसु० । कहे.॥ पहलां करी मुनीदर्श । करणों फिर आहारने। होसु० । कर०॥ सीखणोनित नवो ज्ञान । विनय भक्ती करी । होसु० । विन० ॥ क्षिण लाखीणी एवक्त ॥ आइ पुन्यसिरी ॥ होसु०। आइ॥ ८॥ इम सुण सेठ बचन । घरजन राजी भया ! ४ । होसु ० ॥ घर ॥ कहे धन्य २ हम भाग्य । आपसा धणी भया । हासु । आप . ॥ कुमार्ग घालण हार । सज्जन घरमे घणा । होसु ० । सज्ज ॥ पर उपकारी आप सम । त्तरण तारण गणा । होसु . । तर • ॥ ९ ॥सेठ तणो सहु कुटम्ब । नित्य उमंग ।

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