Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 74
________________ जि० सु० ३५ १ शुक्ल पक्ष का चंद्र २ नोकर बेकर जोडी हो सुगुणी वीनवे । कहो अर्ध राज की बात | मीठी माजी हो आ बेठी कने । जिनदास दरशात ॥ १ ॥ सुणीयो शाणा हो आलस छोडने ॥ आं ॥ रहो सुख दुःख में एकसार ॥ तो सुख पाम सो हो अर्ध राजा परे । भोडा काल मझार ॥ सुणी ॥ | २ || कुस्थल पुरथों हो अतिही सुहा मणो । तिहां रहे श्रीधर सेठ ॥ धन घर बहू लोहो नारी रूपणी । पण नहीं खूल्यो तस पेट || सुणी ॥ ३ ॥ निश दिन चिन्ता हो सेठ ने अति घणी । कीधा बहूला उपाय ॥ वृद्ववय पाया हो ईम करतां थका । तब अंतराय विरलाय ॥ सुणी ॥ ४ गर्भ तस रहीयो हो सुखे वृद्धी हुवे । डोहला सारा पूरे शाह || ठाटे पाटे हो नव मांस वही गया । जन्म्या कुँवर ओछाह ॥ सुणी ॥ ५ ॥ वि वहार साचवीहो गुण जिम नीपनो । सुखदत्त नाम तस ठाय ॥ पांच ते धायथी हो सुखे मोटो हुवे । सुक्केंद्रे चंपक की लतांय ॥ सुणी ॥ ६ ॥ अति घणो प्यारो हो तात ने मात ने। पूरे सर्व तस चहाय ॥ शांजे सेठजीं हो नित्य घोडो सजी। हवा खवाने जाय ॥ सुणी | ॥७॥ सुखदत्तने नित्य हो पास बैठावइ । शेहर मांही फिराय ॥ घणा दिन ज हो इमवी त्या तदा । लाग्यो विश्नए सवाय || सुणी ॥ ८ ॥ कोइ कारण थी हो सेठ जावे नहीं । तो सुखदत्त रोवंत ॥ एकलो जावेहो कर्म कर ने संगे । तुरी खेलावे हर्षत ॥ सुणी ॥ ९ खण्ड ३

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