Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 88
________________ जी.सु. गर्मी ॥ ३ ॥ पर सुख देवा घर छोडी आया जी । संग खरचण कवडी न लाया जी। खण्ट पष्टम तपे आज रहाया ॥ धर्मी ॥ ४ ॥ ऐसा नर ने साता उपजावे जी। तो बहू पुण्य ! ही थावे जी । इस धारी उपयोग लगावे ॥धर्मी॥५॥ दोसो सोले कंकर हरीया नी।। हू माल रत्ना तिहां धरीयाजी। यक्ष आगे मार्ग संचरीया ॥धर्मी॥६॥प्रतिक्रमण बेला आइ जी। तब दंपती जाग्रत थाइजीनित्य नियम करी समाइ॥धर्मी॥७॥ कंकर पल्ले बान्धीलीधा भी। प्रति क्रमण शुद्ध चित कीधाजी। पारी समायिक चलण चित दीधा ॥ धर्म ॥ माजीने जागा भोलाइ जी । पालास पूरके मार्गे जाइजी । ग्राम बाहिर बसिामा लीधा । इ॥ धर्मी ॥ ९ ॥ बुढी जागा झाडन आइजी । रत्न पड्यो दीठो तिण ठाइजी । ते चिं ते धर्मी भूल्याइ ॥ धर्मी ॥ १० ॥ लेइ रत्न ने भागी लारेजी । देखी ऊभीरही हेला मारंजी । ते सुणी चमक्या तिणवारे ॥ धर्मी ॥ ११ ॥ अरे मांजी क्यों भग आइ जी । ४२ काइ खोवा यो इणरो देखाइ जी । रखे चोरी सिर पर ठाइ ॥ धर्मी ॥१२॥ पण आपण । काइ न लीधो जी । इम चितने स्थिर तब कीधो जी । देखा होवे हे कांइ बीधो । धर्मी ॥ १३ ॥ इतरे डोसी नेडी आइ जी। पूछे तुम तिहां कांइ भूल्याइ जी । माल लेवो संभाली भाइ ॥ धर्मी ॥ १४ ॥ जिनदास के पास हमारे जी । भूलवा को नहीं

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