Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 110
________________ खन्ड ४ जिनआंपां सिग॥ सुणो० ॥ ४ ॥ सु-० वसुधर जसधर और । आठ जणा सह चाली- ५३ या ॥ सुणो ॥ सुणो० करी साकट तैयार ॥ भोजन भंड सज घालीया ॥ सुणो ॥ ५॥ सणों० जिहां २ होवे मुकाम । तिहां २ कार्य निवृत थाइ । सुणो ॥सुणो० वसुधर करे उपदेश । धर्म सत्य दाखे गेह गही ॥ सुणो ॥ ६ ॥ सुणो० सच्चा देव गुरु धर्म । तेहना। मन में उस गयो ॥ सुणो ॥ ७ ॥ सुणो० वीजा साथी छे जेह । टट्ठा में कहाडे उपदेश ॥ सणो भारी कर्म पसाय । स्यू जाणे धर्म रेशने ॥ सुणो ॥ ८॥ उलटा निंदे तेह । मेलो धर्म के एहनो ॥ सुणो ॥ सुणो० ॥ ज्यादा न पीवे नीर । जतन नहीं करे देहनो ॥ सुणो ॥ ॥ ९॥ सुणा० वसुधर जसोधर दोय । समता धर समजावइ । सुणो ॥1 सणो० ते कहे करो दूजी बात । यह हम दाय न आवइ ॥ सुणो ॥ १०॥ सुणो० तब ते धर रहे मून । दोनों धर्म चरचा करे । सुणो ॥ सुणो०सुखे २ मार्ग मांहे । यत्ना कर। के संचारे ॥ सुणो ॥ ११ ॥ सुणो० एकदा एक वन माय । आठों ही यह भेला मिल १ वाटी करी सुणो ॥ सुणो० उदर पूर्ण ने काज । चान्द्रका दधी की घी भरी ॥ सुणो ॥ १२ ॥ Nसुणो० वासण धोया जेह । ते जल थाली मा धर्यो ॥ सुणो ॥ सुणो० जीमवा बेठ पहे-N/ ला मन सूबो वसुधर कर्यो । सुणो ॥ १३ ॥ सुणो० धन्य २ ते देश । जिहां २ मुनीवर ५३

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