Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 120
________________ जि.सु. खड४ क सेट मझार ॥ धर्म ॥ २२ ॥ चतुर्मास आणंदमें । रह्या टॉव्या की जागा माय ॥धी र वर्ष चोवीस इकतीसे । विजय दशमी पूर्ण थाय ॥ धर्म ॥ २२ ॥ जिनदास सुगुणी च H/रित्रयह । दया कल्म वल्ली जाण । भणे सुणे सुणावइ । तासहोवे परम कल्याण ॥ धर्म : NI॥ २४ ॥ जय २ सदा जैन धर्म की । हीं श्रीं सुखदाय ॥ चतुर्थ खन्ड ढाल दश यह ।।। आमोलख ऋषि गाय ॥ धर्म ॥ २५ ॥॥ चतुर्थं खन्ड सारांस । इन्द्र विजय ॥ दा N नसे इच्छिस ऋद्धि मिले । अरु दुःख दुर्भाग्य सौ भय विरलावे ॥ दुशमण को सज्जन का। रे दानही । मान नरिन्द्र सुरिन्द्र सेपावे ॥ सर्व तरह उच्चलावे दानयो । संघमादी देइ । मोक्ष पठावे ॥ महिमा अमोल अथागहे दानकी । तेह स्वरूप यह ढाल दर्शावे ॥१॥ ग्रन्थसारांश । हरीगीत ॥ दया कल्प वल्ली तणी चारों शाखा चउ खन्डमें । धर्म सम्य सत्य दान बहू गुण । पत्र छांहा भू मन्डमें || सूकीर्ती कुसम महकाय अश्रित पाय फल। शिव पिन्डम ॥ अमोल नित्यानन्द अर्पे चरीत्र यह. जग चन्डमें परम पुज्य श्री कहानजीऋषिजी महाराज के स्मप्रदाय के महंत मुनी श्री खुवाऋषि जी तस्य शिष्य आर्य मुनी श्री चेना ऋषिजी तस्य शिष्य बालब्रह्मचरि मुनी श्री अमोलख ऋषिजी रचित दया कल्प वल्ली जिनदास सुगुणी चरित समाप्तम् ॥

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