Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 119
________________ तायां परीवार ॥ तित वैर विरोधने उपसमी । रक्षा करो सब सार ॥ धर्म ॥ १२ ॥ पूर्व भवे छेइ जीवडे । दी दान की अंतराय । तिम अंतराय कोइ मत करो। वणो जसोधर सा। Nउदार ध ॥ १३ ॥ आखीर अवसर देख के । देइ पुत्र ने घरवार ॥ सयंम लेइ शिव सुख वर्या । तिम अवसर चेतो नर नार ॥ धर्म ॥ १४ ॥ इत्यादी सारांश यह ॥धारो श्रोता निज हित ॥ तोही सार सुणीयां तणो । बणो निजात्म मित ॥ धर्म ॥ १५॥ N भेटजो करो वक्ता भणी । तो करोकुछ त्याग ॥ ए भेट उभय ने सुखदाता । सुधारो नर अवतार ॥ धर्म ॥ १६ ॥ श्रीतिलोक ऋषि जी रचित पाढथे । धर्म बुद्धी चरीत्र ॥ तिणथी कथा यह उद्धरी । रची वृद्धी होण पवित्र ॥ धर्म ॥ १७॥ इण विप्रति जो कथ्यो । तो गुरु ज्ञानीकी साख ॥ मि थ्या दुकृत उच्चरी । करुंहूँ आत्म को पाक ॥ धर्म ॥ १८ ॥ श्री महावीर स्वामी थकी । छप्पनमें पाट पुज्य ॥ श्री काहानजी ऋषि महाराजकी।स। सम्प्रदाय शुक्ल दूज ॥ धर्म ॥ १९ ॥ तास चतुर्थे पाट । धनजी ऋषी महाराज ॥ तास । शिष्य खुबा ऋषिजी । ज्ञान क्रिया की झाज॥ धर्म ॥ २० ॥ तस्यशिष्य श्री चेनाऋषि । मम गुरूजी कृपाल ॥ रत्न ऋषिजी मुज भणी । ज्ञान दीयोहो मयाल ॥ धर्म ॥ २१ ॥ संसारीतात तपश्वी गुणी । केवल ऋषिजी सहाचर ॥ विचरत आया इगत पुरी । नाशी

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