Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 117
________________ धर्म ॥ १९ ॥ पंच मुष्टी लोचन करी । लियो संत सती को भेष पेहर । मुनीर। सन्मुख ऊभा रद्या । कहे तारो हिवे करी मेहर ॥ धने ॥ २० आज्ञा लेह परिवार की। दीया सावध जोग पञ्चखाय ॥ आरज्यांजी सतीयां विषे । मुनी वेठा मुनी फक्ते आय ॥ धर्म ॥ २१ ॥ सह परिवार वंदणा करी । करी शक्ती प्रमाणे पच्चखाण ॥ गुण, संभारी आर्त करता। आया निज ठिकाण ॥ धर्मी ॥ २२ ॥ धन्य २ जे छत्ती तजे जी 16 ढाल नवमी के मांय ॥ ऋषि अमोलख नित्य प्रते जी । प्रण में तेहना पाय ॥ धर्म ॥ दुहा ॥ विनय भक्त कर गुरुतणी । सीख्या सिक्षा दोय ॥ असेवना ग्रही ज्ञानकी । गृहना चारीत्र की होय ॥१॥ आठही क्षयोशम जिस्यो । पहीलां सीख्या ज्ञान ॥ पाछे कर्म क्षपाव वा । तप मांडयो प्रधान ॥ २ ॥ जैन शासन उन्नती करी । तारी घणा । भव्य जन ॥ सलेषणा अंत अवसरे । करी कियो अणसण ॥ ३॥ आयुष्य अंत जिनदा-1 स जी । पहोंता विजय विमाण ॥ सुगुणी नारी लिंग हरी । अचुत स्वर्गे अहेठाण ॥ ॥ और सह करणी समां । पाम्या देव स्थान । थोडा भवन अंतरे । पामसी सह निर्वाण' N॥ ५॥ ७ ॥ ढाल १० दशमी ॥ धमो मंगल महीमा नीलो ॥ यह ॥ धर्म आराधो भवी भाव स्यूं । धर्म सदा सुखदाय ॥ धर्मे दुःख दोहग टले । धर्मे शिव मुख पाय ॥ धर्म ॥

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