Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

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Page 115
________________ सुण आणन्या कहे नमी । करी जक्त विवहार ॥ दिक्षांलं पाछो अइ । वंदी चाल्यो ते बार ॥ ५॥ ॥ ढाल ९ नवमी ॥ दया धर्म दिल माहे धारोरे ॥ यह ॥ धन्य २ तस अवतारो हो । करे निज परनो सारोहो ॥ ७ ॥ जिनदास का सजन सह जी । सुणीर मुनीवर का बखाण । बंदी आया निज घरे । वैरागे रंग्या प्राण ॥ धन्य ॥ १॥ तिण |वला जिनदासजी ए। बोलायो सहू परिवार ॥ सह आइ बेठा तिहां। हियडा मां हर्ष अपार , धन्य॥२॥ जिनदास कहे इण अवसरै । हूं ले स्यू संयम भार॥ना कोइ बोलो मती। कहो निजी हृदयका विचार ॥धन्य॥३॥ सुगणी कहे हूं मांगतीथी।आज्ञाआपके पास॥जोडीथी संयम ले *वस्यां । इम सुण ने हर्ष्या जिनदास ॥ धन्य ॥४॥ पूछे भाइ भोजाइथी । कहोतोदूं चही । येसो धन ॥ नही तो रहो इणही घरे । हूँ करदे, सर्व जतन ॥ धन्य ॥५॥भाइ भोजा-2 इ इम कहे । हम भोगव्या पूर्व कर्म ॥ इण अवसर नहीं चेतस्यां तो । किहां करस्यां फि र धर्म ॥ धन्य ॥ ६ ॥ भवांतरी सुणी हम जबथी । हुवो दिक्षा को विचार ॥ रहस्यां न । ही कोइ के कहे । हम लेस्यां संयम भार ॥ धन्य ॥ ७॥ सुण हा जिन दासजी। त। ब धर्मोदय से केय ॥ आज्ञा अर्षी सर्वको । यह लाभ अपूर्व लेय ॥ धर्म ॥ ८॥ नय नां । श्रुत कँवर कहे । खाली करवा पार्यों सहू घर ॥ महारे आधार हिवे कोण को । वली वा

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