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बाल ब्रह्मचारी मुना श्री अमोलख ऋषिजी महाराज रचित
स्वदया और परदया का स्वरूप दशोने वाला
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अथ जिनदास सुगुणी चरित्र.
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SAMSONALE
प्रसिद्ध कर्ता-नवलमलजी सुरजमलजी धोका, यादगारी (हैद्राबाद ) श्री वीर संवत्सर २४३७, विक्रमार्क १९६७. मुल्य "शुद्धाचार" प्रन ५००, सर्व १०००
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अविका प्रिंटिंग प्रेस.-गवळीगुडा हैद्राबाद दक्षिण,
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॥ प्रस्तावना ॥ ___ कल्लाण कोड जरणी, दुरीत दूर ठवणी ।
संसार जल तारणी, एगंत होइ जीव दया ॥
गाथा
अथात्-श्रीजिनेश्वर भगवंतने फरमाया है कि-क्रोडौं कल्याण को जन्म देने वाली, दुरित (पाप) को दूर रखने वाली, और भवोध रुप दुस्तर संसार समुद्रसे तार के अनंत, अक्षय, अव्यायाध, सुख रुप मोक्षस्थान में पहोंचाने वाली, एक श्री जीव दया ही है. शास्त्र में मुख्यता से दया के दो भेद किये हैं-१ स्वदया, और २ परदया. अपणी आत्मा का रक्षण करना उसका नाम स्वदया है, परन्तु इसका अर्थ ऐसा नहीं समझना कि-विषय (इन्द्रियों के) भोग, कषाय (उच्चता की गरुरी) आदिके पोषणसे आत्मा को मशगुल लुब्ध बनाके मजा मानना सो स्वदया है, क्योंकि विषय आदि के पोषणके जो मान ने रुप सुख हैं, वो “क्षिण मित सुख्खा, बह काल दुःख्खा;" अर्थात् क्षिणमात्र सुख जैसे मालुम पड के, फिर इस भव में और पर भवमें अनंत दुःख दाता हो जातहै. इसलिये स्वदया उसीका नाम है कि-विषय कषाय आदि कू कृत्यों से आत्मा को बचा के, ज्ञान, ध्यान, तप, संयम आदि सुकृत्योम आस्मा को संलग्न करना-जोडना, सो पथ्य औषधी की तरह दोनो भवमें सुख दाता हो. और दूसरी पर दया सों, छह काय (पृथ्वी, पाणी, अग्नी, वायु, विनाशपति और त्रस [हलते चलते जीव] इन) की रक्षा करनी सो पर दया. इन दोनो प्रकार की दया का पालन सर्व प्रकार से श्री साधुजी महाराज करते हैं, सो तो सब जानते हैं, परन्तु गृहस्थ को इनका आराधन किसतरह
* मराठी भाषेत आर्या-हित भजन इश्वरा चे,धन सुत दारादिलितही मात्र हि न.पार पारीणाम दुःख प्रद,मग त्या का ह्मणु न. ये आहेत. -मोरोपंत.
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स करना जिसका हूबहू दर्श इस "जिनदास श्रावक और सुगुणी श्राविका के चरीत्र" में किया गया है. इसलिये इस चरात्रको श्रवण, पठन, मनन, और यथा शक्त प्रवृतन सर्व धर्मार्थियों को अवश्यही करने योग्य जान, भारकस त्रिमलगिरी (दक्षिण हैद्राबाद. निवासी भाइजी बुद्धमलजी जवारमलजी के सुपुत्र भाइजी मानमलजी दूगड, नागोर (मारवाड) वाले और यादगीरी (दक्षिण हैद्राबाद) निवासी भाइजी नवलमलजी सुरजमलजी धोका इसकी १००० प्रत छपवा के श्री सिंघको अमुल्य अर्पण करते हैझान वृद्धी जैसे अत्युत्तम कार्य में जो महाशय बुद्धिका और धन का सदव्यय करते हैं वो धन्य वाद के पात्र हैं. जब से मुनीराज महाराज तपस्वीजी श्री केवल ऋषिजी, और बाल ब्रह्मचारी श्री अमोलख ऋषिजी (इस चरीत्र के रचिता) का इस हैद्राबाद शेहर मे आगम हुवा है, तब से यहां धर्म बृद्धी और ज्ञान बृद्धी के जो जो कार्य हुवे हैं, वो आम तरह से रोशन है. मुनी राज श्री के सद्वौध से लालाजी नेतराम जी राम नारायण जी आदि सद ग्रहस्थो की तरफ से आजतक बडे छोटे १३५०० पुस्त को सर्व सिंघको अमुल्य भेट दिये गये हैं, यह अनुकर्ण अन्य भी मुनीराजों व सद् गृहस्थों करके धर्म ज्ञान का प्रसार व पुनरोदार करेंगे तो धर्म रुप महा लाभ उपारजन कर दोनो लोकमे अखन्ड यशः सुख के भुक्ता बेनेंगे!
विज्ञेषु किं विशेष. श्री वीर संवत २४३७
ज्ञानवृद्धी का कांक्षी विक्रमार्क १६६७
रामलाल पन्नालाल कीमती. पोष शुक पूर्णीमा.
रामपूरा वाला, दक्षिण हैद्राबाद.
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। उँ ॥ श्री परमात्मायनमः ॥ श्रीगुरूभ्योनमः ॥ अथ दया कल्प वल्ली श्री जिनदास सुगुणी पारत्र प्रारंभ ॥दुहा॥ परम ज्योती परमात्मा।चिन्मय स्वयंप्रकाश। निज संपद दे ध्यानी | को। पूरे इच्छित आस॥१॥जिनेन्द्र मुनिन्द्र शिवेन्द्र जे।सुत्रधार अणगार । परमेष्टी पंच पद नमे । वारम्वार नमस्कार ॥२॥ सत्तस्वरूप दर्शक गुरू । अनेकान्त साद्वाद । शुद्ध पंथ, ८ वह मुज दीयो । प्रणमु गृही समाद ॥३॥ भारती वाणी वीरकी । माता दाता ज्ञान । सहाकारक हो सिद्धी करो । नम्र भाव धरूं ध्यान ॥४॥ दया मूल है धर्मका । सर्व समयका
सार । सहु गुरू येही वखाणता । सुयगडांग अधीकार ॥ ५७॥ गाथा ॥ एवं खुणाणी गो सारं, जं न हिंसाइ किंचणं । अहिंसा समयं चेव । एताव तं विधाणी ॥१७॥ दुहा ॥ पर दुःख देख निज तन दहे । सहे कष्ट दे सुख । क्षमा सील द्रढता धरे । तसर | गुण शुद्ध करे मुख ॥ ६॥ दान सील तपीभावमें । सबसे मोठा तप । अघ हर शिव दे|
आगले । प्रगटें रिद्ध विन खप ॥७॥ दयाल क्षमी तपी गुण गृही ।सुगणी और जिनदास। जन मन गुण ठसाक्वा । करूं चरित्र प्रकाश ॥८॥ पहले निज परको कहूं । गृहो गुण
*अर्थात्-ज्ञान प्राप्त करनेका येही सार है की किंचित मात्र किसीकी भी हिंशा नहीं करना, सर्व धर्मावलन्चियोंका येही
फरमान है.
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| धर ध्यान | तज विखवाद प्रमाद को । तो प्रयास प्रमाण ॥ ९॥७॥ ढाल १ ली॥नव | घांटी मांहें भटकत आयो । यह देशी ॥ मध्य लोके मध्य द्विप जंबु मध्य । क्षेत्र भरत
सुखकार । देश बत्तीस हजारमें सोभे । मगध मालव सिरदार । सुणीयो चरित्र रसाल। के भविक जन । सुणियो० ॥ आंकडी ॥१॥ महेन्द्रपुर तिण माहे शिरोमण। ऋद्धि सिद्धी
भरपूर । गढ दरवाजा राज पंथ शोहे । दो चक्री भय दूर । ॥भ॥ २॥ पुष्प पत्र फल बृक्षे भर्यो वन । सरोवर विविध प्रकार ॥ सर्व शोभाथी शोहे स्वर्ग ज्यों । सहु जनने सु | खकार ॥ भ ॥ ३ ॥ राजे राजा अराजय नामें ॥ धर्म कर्म में निपुण । रूप तेज दिव्य | | न्यादी नरेश्वर ॥ परजा तात बहु गुण ॥ भ ॥ ४॥ रूपे रूप श्री पट्टराणी।सील विनय |
गुणधाम । दान दया लज्जा करी सोहे । पती बल्लभ अभीराम ॥॥ ५॥ नगर माहें ब. | हू जन पुण्य वंता ॥ दानी गुणी दयाल ॥ चार वरण छत्तीस कोमथी ॥ सोहे घर बजार ॥भ॥ ६॥ तिहां सेठ एक सोहन शाहा वर ॥ वितवंत गुण विख्यात ॥ दाता भुक्ता अजाग | धर्मको ॥ धंदे पचे दिनरात ॥भ ||७॥ तस घरणी सौभाग्यवतीवर ॥ सीलरूप सोभाय ॥ पुग्य थी नित्य नवला सुख भोगे ॥ पुत्र विना विलखाय ॥भ॥ ८॥ संसारी सुख भोगत | एकदा । रह्यो मर्भे जीव आय ॥ इम जाणी ने दम्पती हर्ष्या । औछब अगरणी कराय"भ
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||९|| जीव जक्तका धन पुत्र जोगे । जाणे पामां सुख ॥ पण पुण्य विन पूरा सुख मिले न हीं | उलटो हो दुःख ॥ ॥ १०॥ पापी प्राणी आयो उदरमें । तिथी ऋद्ध विरलाय ॥ कोटी द्रव्यका वाहण डूज्या । सेठ खबर ते पाय ॥ भ ॥ ११ ॥ सुतका हर्षथी दुःख न
aur | सोचे ने घणो माल । वैपार कर और धन कमास्यूं । पोषं पुत्रने हाल | ॥१२॥ जिम गर्भ ते मोटो होवे । तिमर हाणी थाय । सेठ तो गिणे नही तेहने | नव मा से कुंवर जनमाय ॥ ४ ॥ १३ ॥ जन्म मौछव कर न्यान जिमाइ । सज्जन सन्मुख जाम ! बहू आप से कुंवर थयो । आवड कुंवर नाम ॥ ॥ १४ ॥ सुखे २ ते सोटो होने । वी कित्तो काल || गर्भवती हुइ फिर सेठाणी । सेठ भया खुशाल || || १५ ॥ दीवा लोनको दूकान को | गुमास्ता खायो धन्न । लेणदार लीवी जागा खोली । तोही से ठ ॥ ॥ १६ ॥ पूत्र मोटा होइ द्रव्य कमाली । आपण होशा वृव । चाकरी कर सी दोनो आपणी । बहू होते समृध ॥ भ ॥ १७ ॥ गडीयो धन घणो छे आपणे । इम चिं त्ती खोयो तेइ । कोयला माटी पाणी दीसे । तो पण पुत्र से नेह ॥ भ ॥ १८ ॥ धन गयो जागी जावड नाम दे । तीजो गर्भवली रहाय । लाय लागी घर वस्त्र जली या । तब से ठजी विलखाय ॥ ॥ १९ ॥ नत्र सांसे ते जनम्यो बालक | बुलायो परिवार । धन खाया
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जि०सु०
२
छाछ
॥
था खावड नाम दे । तीनी हुवा हुसीयार ॥ भ ॥ २० ॥ पुण्य पापको जोडो सदाइ | दुःख सुव कर्मै पाय । ढाल पहली कही 'ऋषि अमोलख' । धर्म सदा सुखदाय ॥ ॥ २९०॥ ॥ दुइ ॥ कुटुम्ब तो वयो तदा । धन तणी हुइ हाण || सोहन शाहा दुःखीया हुया |पले न पांचो प्राण ॥१॥ जब थी संपदा घर विषे । तब देता सहू मान ॥ स्वार्थका जन सहू | अब नहीं देवे धान ||२|| देणहार बदली गया । लेणदार लग्या लार । रह्यो माल लिलान कर । तस कीधा निरधार || ३ || ग्रामके बाहिर झोंपडी । करी फुसकी तैयार ॥ पांचही आइ तिहा रहे । करे तुच्छ वैपार ॥४॥ इण परे काल अतिक्रमें । वर्ष वीत्या हे दोय || हवे पुण्य किस प्रगटे | सुण जो श्रोता सोय ॥५॥७॥ ढाल २ री ॥ थारो गयो रे | जोवन पाछो नहीं आवे || यह देशी || तिण अवसर धर्मोदय ऋषि || बहू मूनी संग तप संयमें खुबी । जन पदे फिरी धर्म दीपावे || धर्म करणी कियाथी जीव सुख पावे ॥ आंकडी || १ | उन्हाले चन्टू परचन्ड तपे || मुनी जग तारण बिहारे खपे ॥ सीस पग उभराणे | जीव घबरावे ॥ धर्म|| २ || तृषा व्यापी तिहां ऊभा आइ ॥ करे जल जाचन सोहन शाहा तांइ ॥ तब तक शाहजी वेहरावे ॥धर्म ॥ ३ ॥ मुनी छाछ लेइने छांया माइ ॥ विसामो लेइ लीवी चुकाई । सोहन शाह मुनी कने आवे || धर्म ॥ ४ ॥ कर जोडी कहे शाहा नर
खण्ड १
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माइ । श्वामी मुज दिशा माठी किम आइ । वीती हकीगत दर्शावे ॥ धर्म ॥ ५ ॥ ऋषि कहे कर्म की विचित्र गती । नरिन्द्र सुरिन्द्र की बीगडी रती । बीजा की कांइ कहवा वे ॥धर्म ॥ ६ ॥ पूर्व भवमें जे करणी करी । ते भुक्तो इहां खोटी खरी । अब आर्त ध्याइ | क्यों नवा बंधावे ॥ धर्म ॥ ७ ॥ चिंता कीया थी दुःख नहीं मिटे । जैन धर्म किया थी पाप घटे । सुख गयो तिम दुःख विरलावे ॥धर्म ॥ ८ ॥इम सुणी मुनीवर की वाणी । हर्ष्या घणा दोनो प्राणी । नित्य नियम करण ते चित्त ठावे ॥धर्म ॥ ९ ॥ साधूजी तो विहार का । दम्पती धर्म मे चित्तदीनो । नित्य त्रिकाल धर्म ध्यान ध्यावे ॥ धर्म ॥ १० ॥ धर्म थी कूकर्म भश्म थया । एकदा सेठाणी ने गर्भरह्या । पुण्यवंत प्राणी कुंखे आवे ॥ धर्म ॥ ११ ॥ दीठा कुम्भतणो स्वपनो । सुणतां सेठने हर्ष उपनो । नित्यधर्म ध्यानने बधावे ॥ धर्म ॥ १२ ॥ ॥वैपारमें होनेलगी कमाइ । देणदार गयासहू नरमाइ । इमधन्न तणी वृद्धी थावे ॥ धर्म ॥१३॥ जिसने जागा लीनीथी माल । वो आइबोले मीठा बोल । मुज कुटम्ब तिणमेंनही खटावे ॥धर्म॥१४॥ लिया दाम मुजने दीजे । पाछेा तुमारो घरलीजे । तेद्रव्य चुकाइ पाछा ठाम आवे ॥धर्म ॥ १५॥ तीजेमासे उपनो डाहला । दानधर्म करीने लावाला । चारोंसिंघ की भक्ता सुहावे ॥धर्म॥१६॥ पुण्याथी सहूं इच्छा होवे पूरी । पाले गर्भ रही दोषे दूरी | नव
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पण्ड १
जिसमास गयां पुत्र प्रसावे॥धर्म॥ १७ ॥ जन्म मोछब रुडो काना । स्वजन परजन ने सुख
बीनो । नालो गाडवा भूमी खोदीवे ॥धर्म ॥१८॥ध्यान निकलीयो ते जागा। तिणथी । सहू का दुःख भागा। द्रव्य देखके हर्षावे ॥ धर्म ॥ १९ ॥ दान पूण्य घणो कीनो। ।। न्याती गोतीने भोजन दीनो। फिर सर्व सन्मुख नाम ठावे ॥ धर्म ॥ २० ॥ जैन धर्मके | पसाये। आइ पुण्यवंत उपनाये । जिनदास नाम सोभाव ॥ धर्म ॥२१॥ सुणी सज्जन सहखुशी भया । तंबाल लेइ निज घरेगया । शुक्ल शी ज्यों मौटा थावे ॥ धर्म ॥२२॥ पहला थीघणी हुइ ऋद्ध बृद्धी । यश : बध्यो होवे काज सिद्धी । सह कुटम्ब आणंदे रहावे॥
धर्म ॥ २३ ॥ तीनो भाइने भणाया । फिर योग्य ठामें परणाया । ते धंदे लागा ने धन | Pal कमावे ॥ धर्म ॥ २४ ॥ पुण्यवंत संजोगे सुखी हुया । आर्त्त दुःख सहू दूर गया । करो
सुकृत 'अमोल' चेतावे ॥धर्म॥ २५ ॥७॥दुहा॥ काम साया दुःख वीसर्या । अने ताहू पापी
प्रसंग॥ धर्म कर्म सहू छोडीया । विषय तृष्नाके रंग ॥१॥नियम वृत सहू भांगीया। करे। - कंद मूल अहार ॥ निशी भोजन कू वणिज कर । धरे कू विश्ने प्यार ॥२॥ प्रत्येक वर्ष का | INM कुंवरजी। जदा जिनदास ॥ कोविद आध्यापक कने । बेठा करण अभ्यास ॥ ३ ॥
बुद्धि बल तल देखके। उपाध्याय हर्षाय॥ सीखे सिखावे चूंपधर। क्यों नहीं पाण्डत थाय॥
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४॥ थोडा काल माहें भण्या। नर नारी का क्ला सार॥धर्मसंजोग जिणपर वणे।तेसु-N णियों अधीकार ॥५॥७॥ढाल ३तीसरी॥ इण सरवरीयारी पाल उभी दोइ नागरी ॥ यह० ॥ इणही नगरी मांय नगर सेठ दीपतो।हो सुजाण। नगर सेठ दीपतो॥श्रीपत नामे शाहा । धन सर्व जापतो। हो सुजाण । धनेसर्व जीपतो॥ समणा पाशक वृतधार। जाणं प्रवचनको । होसु०।जाण०॥ हेय ज्ञय उपादेय। सद्वाद रचनको। होसु०। साद्वा०॥१॥ सामायिक प्रतिक्रमणधापोषदी वृतधरे। होसु० । पोष०॥प्रतिलाभ अणगार। धर्म उन्नती करे। होसूधर्म०॥ | साधर्मीको देदान उपकरण ज्ञानना । हासुः । उप० ॥ संतोपि चित उदार । न्यायी | | अभीमान ना । होसु० । न्याइ० ॥२॥ शिवा नामे तंसनार । प्यार धर्म पेघणो । हासु०-2 प्यार० ॥ धर्म चन्द तस पुत्र । नाम सम गुणा भणो । होसु० । नाम० ॥ पुसी एक रुप । दिव्य । सुगणी गुण आगली । हासु० । गुण० ॥ धर्मशास्त्रकोजाण । दया सील में रली ।। होसु० । दया० ॥३॥ अगवाणी जो भलो होय । तो घर भलो थावई। होस० । घर० ॥ पुण्यवंतने पुण्यवत । जोग मिल आदइ । होसु० । जोग० ॥ साधू संग म दान । करे ।
उत्सुक धरी । होसु० । को० ॥ पाले पलावे धर्म । लावो ले हिरी सिरी । हो-12 लज्जा NR० । ल वो० ॥ ४ ॥ तिण अवसर पुण्य जोग | धर्म जय ऋषिवरा । होसु० । धर्म० ॥
२ लक्ष्मी
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जि०म०
| चरण करण गुण धाम । णघा शिष्य परवरा । होसु० । घणा०॥ आया महेन्द्र पुर मांय। खण्ड ? स्थानक जाची करी । होसु० । स्थान० ॥ तिहां रह्या सहु संत। नगरमें फैली चरी ||
होसु०। नगर०॥ ५॥ भव्य सुणी हर्षाय । दरसण भणी आवीया । होस० । दर०॥ IN| सवेसख दाइ उपदेश । गुरुजी फरमावीया । होसु०। गुरु०॥सणी हा सहजन । विनं-1॥ नाती इमकरे। होस। विनं०॥ वयस्थैवरथइ महाराज। मानो इण आवसरे । होसु० । मा- 11 नो०॥६॥ हमपर कृपाकर । स्थिरवासे रीजीये । होसु० । स्थिर०॥ धर्मतणी होसीबृद्दी।।।। बचन म्हाने दीजीये। होसु० । बच०॥ अवसरजाणी ऋषिराज । कहेजाणी जसे । होसु० । कहे ॥ खुशी हुवा सह भव्यधर्म बृद्धिथसे। होसु०। धर्म०॥ ७॥ श्रीपतनिजघरमांही। कहे परिवारने । होसु० । कहे.॥ पहलां करी मुनीदर्श । करणों फिर आहारने। होसु० । कर०॥ सीखणोनित नवो ज्ञान । विनय भक्ती करी । होसु० । विन० ॥ क्षिण लाखीणी एवक्त ॥ आइ पुन्यसिरी ॥ होसु०। आइ॥ ८॥ इम सुण सेठ बचन । घरजन राजी भया ! ४ । होसु ० ॥ घर ॥ कहे धन्य २ हम भाग्य । आपसा धणी भया । हासु । आप . ॥ कुमार्ग घालण हार । सज्जन घरमे घणा । होसु ० । सज्ज ॥ पर उपकारी आप सम । त्तरण तारण गणा । होसु . । तर • ॥ ९ ॥सेठ तणो सहु कुटम्ब । नित्य उमंग ।
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धरी । हासु०।नित्य ॥ सीख धर्म का ज्ञान । विनय भक्तीकरी ।होसु० विन० ॥धूयासूगुणी ध्रुवधर्म ।लाइगयाभवथकी । होसुकालाइ ॥तेलविन्दू नीरमाय।तिमफेलि नकी। होसु०ति. ॥१०॥थोडा कालने माया शास्त्र जाण्या घणा । होसु०। शास्त्रातत्वार्थ नय पक्ष । भावसुक्ष्म । तणा । हासु भाव॥ एकीदनहँसीमाय शरमी कहे तात्त स्युं । होसु। शर० ॥ सुसंगतसुख देय। दाइ भव ज्ञात सु । होसु . । दोइ० ॥११॥ अबला अवतार परवसः। आधार रहे कंत नो । होसु । आ० ॥ में नही इच्छ रुप धन । इच्छ धर्म वंत नो । होमु० इच्छ० ॥ सेठ कहे अहो बाल । बात साची कही । होसु० । बात०॥ तुज इच्छा | सम जोगः। मिलास्यू मे सही। होसु ० । मिला ॥ १२ ॥ कु जोडो जग माहे । मिला || | वे लोभे करी। हो । मिला ॥ कसाइ थी ते अधिका । पूरो पुत्री अरी । होसु०पूरो ॥ बाइ रहे निश्चिन्त । जोडी मिलावस्युं । होसु०। जोडी० ॥ मुसंगत सुखदाय । 'अमोल' कहे भावस्यूं । होसु० । अमोल ॥ १३॥ ॥ दुहा॥ सेठ सुत धर्मचन्दते ॥ अने कुँ
वर जिनदास ॥ एकण अध्यापक कने । करे विद्या अभ्यास ॥१॥ वयबल बुद्वि सारखी । N| सीखे होडाहोड ॥ सूभोदय प्रीतीहुइ । दोइमिल्या अखाडे ॥ २ ॥ धर्मचंद रथ स्वारहो
आवे जिनदास गेह ॥ वेठाइ निज पास लस । शाळ में जावे तेह ॥३॥ साधू स्थानक
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जी०सु०
खण्ड
मारगे। आवे तिहां उभारेह ॥ धर्मचंद मुनी दरशने । नित्या जावे सस्नेह ॥ ४ ॥ उत ५ रासण मुखढांक के। पन्ही छोड तिण ठाय ॥ जिनदास इम देखके। अश्चर्य अधिको लाये ||
॥ ५॥ ॥ ढाल४ चैाथी ॥ कपूर होवे अति उजलारे ॥ यह० ॥ एकदा पूछे धर्मचंदने जी। जिनदास धर प्रेम ॥ मित्र रोज मुख ढांकनेजी । इण घरे जावो केम ॥ भविक जन । सत्संगत सुखदाय ॥ सत्संग मोटो धनकडोजी। दोनों भवे सोभाय ॥ भविक०॥ आंकडी ॥१॥ श्रीपतसुत कहे हमतणाजी धर्म गुरु इण स्थान॥ दर्शणे भव२ दुःख हरेजी। महा पुण्यथी मिले यह ज्ञान ॥०॥ २॥ जिनदास कहे मंत्री थइ जी । करो एतो उप५ कार॥ मुज देखाडो गुरु भणीजी। कहो तो चालू लार ॥भ०॥३॥ धर्मचंद कहे मुनी ।
स्थानकेजी । इच्छा होवे ते आय ॥अटकाव नहीं इहां किण तणोजी। तुम पुण्य प्रगटया
भाय॥भ०॥ ४ ॥ दोनो आया मुनी वर कनेजी । धर्मचन्द विधीसे वयाय । जिनदास देखी Ni जिम करीजी । वंदण अधिक उमाय ॥भ० ॥ ५॥ विचक्षण बुद्वीवंत गुणनिधिजी। लक्षण
| व्यंजन श्रेष्ट। पुण्यवंत जाणी धर्मचंदथीजी। प्रछे मनीवर जेष्ट भ०॥६॥एकूण छ भाइ तुम NI संगजी तेक साहन शाहा कुनार|जिनदास नामछ एहना जि ।घरमेहे मिथ्याचार ॥भ०॥७॥ 1Yपुण्य प्रगटया आज इणतणाजी । आप दरसण पायाआज ॥नाम गुण कर्म देखी करीजी।
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अश्चर्य पाया ऋषिराज ॥ भ०॥ ८॥ पर उपकारी तस तारवा जि । जाणी पुण्यवंत बुद्ध वंत ॥सरल सरस मधुरास थाजी । इणपर धर्म कहत ॥भ०॥ ९॥ लक्ष चौरासी ज्योंनी मे जी । दुर्लभ नरअवतार ॥ क्षेत्र आर्थ उत्तम कुलेजी । जन्न्या आयुष्य दीर्घ धारभ० |॥ १० ॥ इन्द्री पूर्ण धनवंत छोजी मिल्योनिग्रन्थ संजोग पहिवे धर्म जो नकरतो । पूरा| कर्म का भोग ॥ भ०॥ ११ ॥धर्म करते मानवीजी। नहीतो पशूथी नीपाट ॥ धर्मसगो भवर विषेजा । मेंटे दुःख आचाट ॥भ॥ १२ ॥वणीया की वणीवक्त छेजी स्वाधीन स-2 सक्त ॥ चिन्तमणी मिल्यो रांक नेजी। तिम मिले धर्म गुरू भक्त ॥ भ०॥ १३ ॥ धनकु IN टम्ब सहुकारमा जी । नलायो नलेजाय ॥ पूर्व करणा जिसा मिल्या जी। इहांकरेसा आ| गेपाय ॥भ०॥ १४ ॥ जण नाहीं कीनो गत भवेजी जिन परुप्यो धर्म। तेइणभवे अन्नधन्नीवनाजी । सहे दुःख बान्धे कर्म ॥ भ० ॥ १५ ॥ जेकरणी कर अवतर्याजी । उत्तम । कुलके मांय ॥ तेधर्मलाभ लेइ करीजी । आगे स्वर्ग मोक्ष जाय ॥ भ० ॥ १६ ॥ बालपणे धर्म नहीं ग्रहतो । वृद्धपणे सरमाय ॥ कोइक जो कधी आदरेतो । ज्ञान प्राप्त नथाय ॥भ० १७॥ धर्म ज्ञानी इण भवेजी । कूमार्गे नहीं जाय ॥ राजा पंच दंडेनहींजी। वल्लभ लाग सवाय ॥ भ० १८॥ पूर्णधर्म जो आदरतो । निश्चय मोक्ष पहोंचाय ॥ थोडो आराध्य ।
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जि०सु०
१ देव गुरु
धर्म
स्वर्ग सुखदेवैजी । आगे पण करे सहाय ॥ भ० ॥ १९ ॥ सुखेच्छू इम जाणनेजी । प्रथम | सीखो ज्ञान ॥ श्रावक साधू धर्मको जी । विवरा सहीत विज्ञान ॥ भ० ॥ २० ॥ श्रधो सत्यजिनवाणीजी । संकादी दोष त्याग ॥ श्रधा सार सम्यक्यत्व छे । उतारे मोहको छाग ॥ भ० ॥ २१ ॥ फिर शक्ती सम आचारोजी । वृतनियम हितलाय ॥ निरतीचारे पाल तां । आद्वार संधाय ॥ भ० ॥ २२ ॥ ज्यूंना कर्मक्षपाववाजी । यथाशक्त करो तप । मित्रता राखो सर्वथजी । आभ्यंतर यह जप ॥ भ० ॥ २३ ॥ येही सार संसारमेंजी । | लेवो लावो हितलाय ॥ भ० ॥ कहनेका गरजी हमेंजी । करणकी निजइच्छाय ॥ भ० ॥ २४ ॥ यहहितशिक्ष ऋषिवरुजी | दी दोनोंको समजाय ॥ अमोल, सत्संग विश्वमेजी । पूर्णपुण्ये मिलाय ॥ भ० ॥ २५ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ सुण उपदेश महाराज को । तनमन हुवोहुलास ॥ अपूर्व वस्तु कर चडी । हर्षी कहे जिनदास ॥ १ ॥ सत्य वाणी प्रभु आपकी । सुमित्रके प्रसाद ॥ निर्लोभी उपकारीया । सद्गुरु मिल्या तुम साय ॥ २ ॥ जेजेबचन प्रा कासया । तिणमां म्हारोहित ॥ और सज्जन सहु स्वारर्थी । आपछो साचा मित ॥ ३॥ अब तो महाराजः णमें । मुज शक्ती अनुसार ॥ कसरकछू राखूं नहीं । देवो समकित सार ॥ ४ ॥ तीनं तत्व मुनी रायजी । तास दीया धराय ॥ नमुकार आवश्यकदी ।
खण्ड १
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सीखे नित्य उमाय ॥५॥७॥ ढाल ५ पांचमी ॥ मोटी या जगथिमाहें मोहणी ॥ यह ॥ | धर्म सदा जय कारणो। धर्मी नर हो पामे सत्कार ॥ पापी द्वेष करेतेहथी । ते धर्मी ने । | होवे सुखकार ॥ धर्म ॥१॥ मिश्श करी नीशाल को। नित्य सीखेहो मुनीवर कने ज्ञान॥ वाचन पूछन पुनरा वृतन । उपयोगसे हो करे पुण्यवान ॥धर्म ॥२॥ तत्वं क्रिया द्रव्य नेयांगमा अनुवादज हो निःपा प्रमाण ॥ इत्यादी थोडा कालमें। घणो सीख्या हो फेल्यो विज्ञान ॥ धर्म ॥३॥ज्यों ज्यों भीजे कामली । त्यों त्यों हो बजन भारी होय ॥ वारीमें , | विन्दूतेल को । तिम पसर्या हो बुद्धी गुण दोय ॥ धर्म ॥४॥ एकदा मुनी वखाणमें ।।। वांचे हो षट द्रव्य अधिकार॥ प्रश्न उठाइ बीचमें । पूछेहो जिनदास ते वार ॥धर्म ॥५॥ तेहथी सुक्ष्म भावते । बादरपणे हो प्रगमें सभा तांय ॥ सभा सह आश्चर्य हुइ । सब जोवे हो बालक किणराय ॥ धर्म ॥६॥ धन्य इनका मा वापने । जिन कूरखे हो उपनाए NT रतन ॥ इण वय एहावा गीतार्थी । यह आगे हो घणा करसी जतन ॥ धर्म॥७॥ धर्म | देशना पूर्ण हयां । सह श्रावक हो गया आगार ॥ पीछे से जिनदासजी । घर चाल्या हो | घर सामायिद पार ॥धर्म॥ ८॥ बहु श्रावक मारग विषे। उभा होइ हो देवे सत्कार॥ श्रीपत-N शाह ने बने विपे। कोइ बोलको हो संदेहतेवार ॥ धर्म ॥९॥ जाता देख जिनदासने |
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.स
खण्ड १
आया हो तस सन्मुख चाल ॥ सत्कारी लेगया दुकानपे । सुखासन हो बेठा ते काल || ॥ धर्म ॥१०॥ इतरे कोइ कार्य भणी। आया हो तिहां आवड कुँवार ॥ सेठ कहे। पाछे आवजो । पुरसत नहीं हो हमने इणवार ॥ धर्म ॥११॥ भाइ साहेब यह आवीया। धर्म चरचा हो करसां इण साथ ॥ सस्कार देख जिनदास को। इर्षाइ हो बृध वन्धूघीसे हाथ ॥ धर्म ॥१२॥ इणने तो प्रछे सह । इणथी हो हुवो मुज अपमान ॥ मुह बी न्धाने चाले लग्यो । बावो होइ हो मांगसी कधी धान ॥धर्म ॥१३॥ इम बड बड तो मनमें। ते आयो होसोहन शाहा पास॥ कहे वरजो जिनदास ने। तेपडियों हो साधूनी फा स ॥ धर्म ॥ १४॥ भणनोतो छोडी दीयो । सहु लोक ज हो लागा तस लार ॥ साधू होती थोडा दिन में । लजासी हो तुम कुल परिवार ॥ धर्म ॥१५॥ सोहन शाह कहे चुपरहे । तेहतो के हो मोटो पुण्यवंत । खोटो काम करे नहीं । हूं जाणू हो साहू । गर्भथी तंत ॥ धर्म ॥१६॥ तिणरा पुण्य पसायथी । एह संपत हो विलसो छो पूत ॥ तिण पहिला दिशा आपणी । तुम जाणो हो किस्यो थो घरपूत ॥ धर्म ॥ १७॥ इम | | वयण सुण तात का। खिश्शाणो हो हुवो मन मांय ॥ कहे इम सीस चडाय के। बिगाड। स्योहो थोडा दिने ताय ॥ धर्म ॥१८॥ जावडतो गयो घरविषे। तिण बेला हो आया ।
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जिनदास ॥ तात तणे चरणे नम्या । बुचकारी हो शाह वेठाया पास ॥ धर्म ॥ १९ ॥ 2 मीठे बचने पूछीयो। किहांथी हो आया कहोसाच॥आज काल भणोछो किस्यो। किण मारग |
में रह्या छो राच॥धर्म ॥२०॥जिनदास कहे कर जोड के। तातजी हो आप पुण्य पसाय ॥ | सद्गुरु मिलीया मुज भणी । इण पुरमेंहो रह्या स्थिर यासआय ॥धर्म ॥ २१ ॥ अनु-12 N ग्रह करी मुज ऊपरे । दरसायोहो इण जगको स्वरुप ॥ आत्म पुद्गल ओलख्या । मोह-|| मायाहो छे यह अन्धकूप ॥ धर्म ॥ २२ ॥ धर्म मार्ग जाण्या थकां । इण भवमी उज्वालेकूल ॥ अनीतीपंथ जावे नहीं । संपराखेहो विनयधर्मको मूल ॥धर्म॥ २३ ॥ देवसीद्ध ग-IN ती आगेदेबे । इम जाणीहो धर्म आदरो तात ॥ और कला सहकारमी । तेपणहा साख्या ।
तुम जात ॥ धर्म ॥ २४ ॥ धर्म नीती विनय थकी।सोहन शाह हो वणा हुया सूशाल ॥2 INऋषी अमोलख' धर्म प्रिय । पूरी हुइ हो एपंचमी ढाल ॥ धर्म ॥२५॥॥ दुहा ॥ शाह
हर्षी कहे सुतने । अहो पुण्यवंत सूजाण ॥ सुखे जावो मुनीवरकने। सीखोसूणो बाखाण. ॥ १॥तो इत्तावर्ष में । स्थानक न जोयोनेण ॥ हिवेलाज मुजआवेइ । मस्करी करसीसेण- 4 ॥ २ ॥तूंनित्य सुणे बखाणजे । मुजने कहीजे आय ॥ थारा कह्या प्रमाण में । धर्म करस्यूं | | घरमाय ॥ ३ ॥ इमसुणा जिनदास जी । पाम्याहर्ष अपार ॥ सहपरिवार धर्मी हुवे । तो
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हुवे घणा उपकार ॥ ४ ॥ हिवे वेफिकर नित्यप्रते । लेवो धर्म कोलाभ ॥ अवसर उचित || खण्ड १ कहे तातने । तेसुणधर उत्साह ॥ ५॥ ॥ ढाल ६ छट्टी ॥ रेलाला वीछाया महारो । | दाजणा ॥ यह ॥ रेलाला फेला परसंस्या जिनदासकी । याता धर्म तणे पसाय रे लाला
॥ लघुवय पण गुण आगलो । तेहथी अगवानी रहवायरे लाला ॥१॥विन प्यारे प्यारो । Kधर्मी छे ॥ आं० ॥ पापीविन खरे खारो होयरे लाला॥ इमसुण धर्म समाचारो । तो
उभय भव सुख जोयरे लाला ॥विन०॥ २ ॥ मित्र धर्मचंद सरीखा । दिन२ चडते प्रेमरे लाला ॥ श्रीपत शाहा देखी करी । कांइ मनमें पामे क्षेमरेलाला ॥ विन० ॥ ३॥ एक*दा श्रीपत धर्मचंदजी । सुगुणीने तेहनीमातरे लाला ॥ धर्म चरचा करतांथकां । निकली . | जिनदास की बात रे लाला ॥ विन०॥ ४ ॥ सेठ पूछे धर्मचंदथी । जिनदास किणरा | पूतरे लाला ॥ लघुवय धर्म रंगे रंग्यो । कियो जाण पणो अद्भूतरे लाला ॥ विन०॥ ५॥जोडीसागे सुगणी तणी । जोमिले जातने पांतरे लाला ॥तोठामः वीजो नजोववो । बाइ पुण्य थी जम्यो ए तांतरे लाला ॥ विन०॥६॥ धर्मचंद हर्षी कहे । वेहे सोहन । शाह कँवारे लाला ॥ जाती कुल उत्तम घणो । वली घरमें घणो परिवाररे लाला ॥ विन० ॥ ७॥ धर्मवंता ने पुण्यवंता ।रुप गुणवंत इशा और रे लाला ॥ जोतां देशविदेश
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में। नहीं मिलसी बीजी ढोर रे लाला ॥ विन ॥ ८ ॥ सुगणी मुण हर्षित हुई । सहु का हुवा एक मनरे लाला ॥ विन० ॥ ९ ॥ शिघ्र बुलाइ मुनीम को । कहे जावो सोहन शाह घररे लाला || योग्यबात सहू करी तिहां । लघु पुत्र जिनदास संगरे लाला ॥ विन० ॥ १० ॥ सगपण करो सुगुणी तणो । शिघ्र करो ए काजरे लाला ॥ मुनीमजी सुण खुश हुवा । तन सिणगार सज्याज रे लाला ॥ विन ॥ ११ ॥ घणा जणा संग परि बर्या । आया सोहन शाह घररे लाला || मोटा नर आता देखके | शाहा उठ्या हर्ष भररे लाला ॥ विन० ॥ १२ ॥ सत्कार सन्मान देइने । उच्चासने वेठायरे लाला ॥ नम्रतासे आवा तणो | पूछे कारण उमायरे लाला ॥ विन० ॥ १३ ॥ मुनीम कहे शाहा जी सूणो । नगर सेठ श्रीपत सोहायरे लाला । तस पुत्री सुलक्षणी । सुगुणी गुण सवायरे लाला ॥ विन० ॥ १४ ॥ आप पुत्र जिनदासजी । तस संग करणो विवाहारे लाला || आप कहो तिम करस्यां सही । रीत भांत औछाहरे लाला ॥ विन० ॥ १५ ॥ सुण सोहन शाह हर्षीयो । चिंते ५ धन्य २ पुण्यवंतरे लाला ॥ समंद होवे मोटे घरे । होंसी | जगत् में महंतरे लाला ॥विन ० ॥ १६ ॥ नरमी कहे मुनीम से । शाहाजी में तो गरीबरे लाला॥ श्रीपत शाहा मोटा घणा । किम रहसे रीत रसीबरे लाला ॥ विन० ॥ १७॥ मुनीम कहे सुणो शाहाजी ।
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जी० सु०
१ चांदी
किस्यो धनको करवो गर्व रेलाला | मनुष्य सुपात्र चाहीये। ज्यों सुख संप रहे सर्व रे लाला ॥नि॥ १८॥ सुभ घडी सगपण कियो । खुशी हुयो परिवार रे लाला || वटी बधाइ मिष्टान की । सहू कीयो कुलाचार रे लाला ॥ विन ॥ १९ ॥ शुभ महोते देखी करी । स्थापन किया लगन रे लाला || दोनो घरे मोहछव मड्यो । लाग्या मंगल बाजा बजन रे लाला ॥विन ॥ २० ॥ जग रीती सहू साचवी | खरच्यो घणो धन माल रे लाला ॥ भोजन व
सज्जन भणी । दे संतोष्या किया खुशाल रे लाला ||विन ॥ २१ ॥ दीधो बहुलो दा यजो । ही। रेण सुवर्ण दासी दासरे लाला ॥ वस्त्र चौपद आदि घणा । देइ पूरी आस रे लाला ॥ विन ॥ २२ ॥ परसंस्थे सहू मानवी । जोडी जुगती मिली येह रे लाला || धर्म कर्म में शाणा घणा । रहसी अखंड सनेह रे लाला ॥ विन || २३ || सुगणीलेइ जिनदासजी । आया आपणे गेह रेलाला || धर्मण दम्पती मिल्या । इछित फलीया जेहरे लाला ॥ नि ॥ २४ ॥ पूर्व पुण्य पसाय थी । मिलियो रुडो समन्दरे लाला || ढाल छट्टी अमोलख कही । धर्मे सदा आणंदरे लाला ॥विन ॥ २५ ॥ ० ॥ दुहा ॥णी
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प
रे । देखे दृष्ट पसार || जैनीपणो दीसे नही । सहू विप्रित आवार ॥ १ ॥ परंडे चूले घडी पर | चंदरवा न देखाय ॥ जलस्थान गरणो नहीं | कंदमूल रंधाय || २ || आटा दाल दे -
खण्ड
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ख्या नही । पूंज्या न चूले राख ॥ घट्टी मांडी रातका । तीथीने लाया शाख ॥ ३ ॥ यनाही त्रस जीव की । राते भोजन खाय ॥ उठी तुर्त धंदे लगे । नवकार नहीं सुणा - यू ॥ ४ ॥ मिथ्यात्वी भारी कर्मी । हेसहु इण घर मांय ॥ ऐसे अधर्मी स्थानके । मुजसे किम रहवाय ॥ ५ ॥ ● ॥ ढाल७ सातमी ॥ बलती तो देखी द्वारका ॥ यह० ॥ सदन देखी अधर्मिको जी । सुगुणी हुइहै उदास । आरती आणे अति घणीरे । मनमाहीं क रेविमासजी ॥ १ ॥ अधर्म नसुहावे ॥ ० ॥ पहिलाई मे तातनेजी । को थो लज्जा छोड ॥ मिथ्यात्व को दीजोमती । पण आखिर लागी ते खोडजी ॥ अ० ॥ २ ॥ रे ! मुज कर्म अभागीया जी । पडीखड्डामें आय ॥ जन्म डूबावण या जगा । म्हारो आचार रहे किराहाय जी ॥ अ० ॥ ३ ॥ हयहय कर्म अभागीयारे । में पूर्व कियाकठोर ॥ धर्मी कुल पामी करीजी | मिली मुजको कूठोडजी ॥ अ० ॥ ४ ॥ हिंशा करी अलिक भरव्यारे । चोरी करी भांग्यो सील || ममता करी क्रोधेचडी । मान माया लोभमें लीलरे ॥ अ० ॥ ५ ॥ प्रेम द्वेष राख्यो मनेरे । क्लेशे लगाइ लाय || चुगली करी आलदियाहुसेरेः । निंदा सुण हर्षायरे ॥ अ० ॥ ६ रत्यारस्य माया -मोशोजी । मान्यों मिथ्या मत ॥ इत्यादी पापे इआइ । अब किम रहसी भुज सतरे ॥ अ० ॥ ७ ॥ अश्चर्य आवे अती घणोजी । नि
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खण्ड
जरे में देखी बात ॥ ते झूटी किम नीकली । इणमें किम दोषी तात जी ॥ अ० ॥ ८॥ जी० सु० || नित जातीहूँ स्थानके जी । सीखती धर्म को ज्ञान ॥ तिहां आवता जिनदास जी। यह
हूंता चतुर सुजाण जी ॥ अ० ॥ ९ ॥ अगवाणी वेठीकरी जी । करता प्रश्न जवाब ॥
यत्नाथी हालता चालता । तिण घरमें किसा सबाबजी ॥ अ० ॥ १०॥ धमी देखी I मुजतातजी हो। दीनी मने इणघर ॥ माठा कर्म ए माहेरारे । करणा किश्यो फाकरजी
॥ अ॥ ११ ॥ भक्ति पतीकी साची हूंतीजी । के सहू कपटे कीध ॥साचीहूवे तोऐसा .घर। । धर्मी रहेकिण विधजी ।अ०॥ १२ ॥ जिणरा पुत्र शाणा इसाजी। तेघर किमरहे अजाण ॥ ठगाणीहूं अब किम करुंरे । इणपरमें खानपानजी ॥अ०॥ १३ ॥ खाटा अन्नखाया थकाजी । मनपण खाटो होय ॥ पाणी जिसीवाणी कही। मेंजाणा नकरु द्रोहरे॥ अ०॥ १४ ॥खानका सागन मुजभणीजी। निपजे ने यमा विन ॥ अणगलपाणी पीवूनहीं । किम रहणो हावे घरइनरे ॥ अ०॥ १५ ॥ संसारी सगपण कारणेजा । धर्म । खड्यो नहींजाये ॥ अनंतवार सगपण हुयो । पण धर्म दुर्लभ मिल्यो आय जी ॥ अ०॥ १६ ॥ मरणो तो निश्चय सही जी । पहले पीछे एकवार ॥ धर्म खंडी ने जीबणो । एतो मृत्यू तुल्य जमार जी ॥ अ०॥ १७ ॥ धर्म विना में न इच्छु |
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जी । पती तणो गृहबास || अधर्मी पशु थी बुरो । हूंतो खन्डू न जातां सास जी ॥ अ० ॥ ॥ १८ ॥ खास्यूं मुज पीयर तणो जी । जेलाइ संग अहार || पीवस्यूं पाणी मंगाय ने मुज धर्मेण दासी लाररे ॥ अ० ॥ १९ ॥ समझाइ इहां करावस्यूं जी । धीरपे सहू बंदोवस्त ॥ नही तो रहस्यूं पीयरे । इम मनसूबो करी परससतरे ॥ अ० ॥ २० ॥ बेठी हाथ खेंची कराजी । ढाल सातमी माय ॥ अमाल ऋषी कहे धर्मथी । भाइ चिंतित कार्य थायरे || अ० || २१ || || दुहा० ॥ सामू जेठाणी मिली | करे जिमण मनवार || सुगणी तो माने नही । सहू थाक्या ते वार ॥ १ ॥ दासी पास मंगाइ यो । पीयर थी खान पान || ते वावरी तिहां रही । धरती आर्त ध्यान || २ || सासू सुसरा चिंता करे । मोटा घरकी बाल || आपने यहां सुहावे नही । तिनथी करे यह ख्याल ॥ ३ ॥ दोपहरे सासू साथले | दानी शाणी जार | मीठासे पूछे बहूथकी। कहो मनमें स्यूं विचार ॥ ४ ॥ बाइ तूं श्रिमंत की । गरीब हमारो घर | उम्मर : तुज किम निकालसी । जो करसी इण पर ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ८ आठमी ॥ सुणो चंदाजी सीमंधर परमात्म पासे जाव जो ॥ यह ॥ सुणो सासूजी में नहीं जाण्या तुम घरे इसो अधर्म छे ॥ तुम जै नी जी मिथ्यात्वी का किम करो यह कर्म ले || आं ॥ हुं सामें बोलण नहीं जोगी । प
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जी० सु०
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आइ फर्म के रोगी । तिण थी कहूं हित चित छोगी । थे किम हुया कू कर्म भा गी ॥ सुणो ॥ १ ॥ लक्ष चौरासी मांहे भ्रमता । उंच नीच जाते दमता । पुण्ये जन्म मिल्या गमता । हिवे सुख उपाय क्यों नहीं रमता ॥ सुणो ॥ २ ॥ आर्य क्षेत्र उतम कुल आया ॥ महा पुण्ये जैन धर्म पाया । फिर क्यों डूवावो मिथ्या काया । ए
किम मचाया ॥ सुणा ॥ ३ ॥ अणगल पाणी पीवासही। कंदमूल यह रंदा रही। चंदरता की जतना नहीं । वली रात्री भोजन रह्याखइ ॥ सुणो ॥ ४ ॥ नित्य उठ घर धंदेलाणो । धर्म करणी से दूरभागो | नवकार कधी मुखथी नवागो । तो पडीक्कमणोतो रह्यो आगो ॥ सुणो ॥ ५ ॥ जेामुजने घर राख्यां चावा । तामें कहूंसो छिटकावो । तिणसे दाइ भव सुख पावो ॥ वली घर तन इणथी साभावो ॥ सुणो ॥ ६ ॥ जेआण छाण्यो पाणीपीवे । मच्छ पोरादी मरेजीवः । बालादी रोगथी ते रीवे । परभव लेवे नर्क सीवे ॥ सुणो ॥ ७ ॥ कंदमूल मांस जिस्यो दाख्यो । अभक्ष जैनागमे भाख्यो । भक्षक ने अधोगती न्हाख्यो । जैनी हुइ ने कुण चाख्यो ॥ सुणो ॥ ८ ॥ अंधो जीमण रात तणो । त्रस जीवांरो भक्ष बणो । कुष्टादी रोगे होवे मरणो । आगे नर्क गती ए पचणो ॥ सुणो ॥ ९ ॥ राते रांध| गोने लीपणो । विलोवणो झाडू पीसणो । इण से घात होवे त्रस तणो । विषारीजीव
खण्ड १
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थी होवे मरणो ॥ सुणो ॥ १० ॥ तेल दूध घी पाणी दही। उघाडा रझा जीव पडे सही। । ते वस्तु होवे विषमही
भव दुःख हाही ॥ सुणो ॥ ११ ॥ आटा दाल * जो जोवे नहीं । बलीतो विन देख्या बले जही । लट जाला कुंथवा प्राण दहीं। मशाण | तुल्यते चूल कही ॥ सुणो ॥ १२ ॥ चूले चंद्रवो न बंधावे । नीचे भोजन निपजावे । विसमरादी पडे आवे । ते खाया रोग मरण थावे ॥ सुणो ॥ १६ ॥ इम परेंडे घटी पर जा । यो । उखल पर वस्त्र तणो । तो नहोवे स्वपर हाणो । वली लोक करे घर बखाणो ॥सुगो ॥ १४ ॥ मांकण भरी छावे भीतां । खाट पीलंग उष्णोदक देता । ते महाजन महा| जम जेता । हिंशारीका जाय जन्म रीता ॥ सुणो ॥ १५ ॥ अथणा पाक घणादिन राखे।
लडे फुलण आया बहिर न्हाखे । त्रसनिगोद घातकरे भाखे । भोगविया दुःख रोग चाखे॥ | नुणो ॥१६॥ ज्यूंबां लीखांने जेमारे। इंडाफोढे कीडा जाले। गोबर संग्रही जंतूसंहारे। इण करें | दोइ भव खूबारे॥सुणा ॥१७॥ इत्यादि घणा अधर्म कामां। छोड्याथी सूख अभीरा| मा। दोइ भव पावे सुख ठामा । यह मानो तो में साता पामां॥सणो ॥ १८ ॥ वली ए |क, सामायिक नित करणी। तिण थी समज सो धर्म तरणी । सामायिक मोक्ष नीसर |णी । मान्या थी सख पासो जरणी ॥ सुणो ॥ १९ ॥ आपतो पहली शाणा घणा। ज
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।। रुर नही ज्याद केवा तणा । में टाबर मुख आगलना । ए आचर निज कुल सोभणा जी० सु०
खण्ड १ 12॥ सुणो ॥ २० ॥ मुगुणी सीख दी वीशालो। अधर्म पंथ दो पुण टालो। श्रावकाचार व
सु ढालो । अमोलख ऋषिकहे उजमा लो ॥ सुणो ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ इम सुण सु गुणी वयण को। सास घणीहर्षाय ॥ वलीहरी बहअर तणी। मुमती दीवी बताय ॥ १॥ कोडीको खर चो नहीं। नहीं टःख तन को होय ॥ gण भवे सख संपत मिले । पर भव सुख ते जोय ॥२॥ बहू पण राजी रहे । रुपक लोके देखाय ॥ यह काम में सु
ख थी करूं । इम चिन्ती कहे वाय ॥ ३ ॥ वाइ कहेणी थायरी । सहू म्हारे प्रमाण ॥ १ अबी
|सठ जी की सला लड । करूं वंदोवस्त होण॥४॥ सखे रहो चाहा सोलहो । तुजथी |म परसन्न ॥ इम विश्वासी सास गइ । आणद धरती मन ॥ ५॥ ॥ ढाल ९ नवामी ।
॥ कायल परवत बूंदलो रे लाल ॥ यह ० ॥ सासू समजी जाणने रे लाल । सुगुणी घN Nणी हर्षायहो । प्राणेश्वर॥ घरका मनुष्य सुल्लभ छ रे लाला । समजसी थोडा मांयहोप्रा. Aणेश्वर ॥ १ ॥ सूसंगते गुण नीपजे रे लाला । सुसंगत सुख दायहो प्रा० ॥ सूसंगत सु| धरे नहीरे लाल ॥ भारीकर्मी कहवाय हो प्रा० ॥ सू० ॥ २॥ प्राणपती इण घर रही | रे लाल । किम पाम्या जैन धर्म हो प्रा० ॥ साची करणीके कपट कियो रे लाल । यह है ।
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मुज मन भर्महो प्रा० ॥ सू० ॥ ३॥ साची श्रधा जो हुवेरे लाल । तो क्योनी सुधरे कुलहो प्रा० ॥ कपट क्रिया जो कररे लाल । तो किहां समाकित मूलहो प्रा० ॥ सू० ॥ ४॥ इम चिंतामें ते पडीरे लाल । शिशामें आया जिनदास हो प्रा०॥ सत्कार देही उभी । रहीरे लाल । देखी तिण ने उदास हो प्रा० ॥ सू० ॥ ५॥ पूछे कंथ मिठाससे रे लाला चितचिन्ता में देखाय हो। सोभाग्यवती ॥ कारण कांइ दाखवो रे लाल । जे उपज्यो मन । माय हो सोभा० ॥ सू० ॥६॥ सुगणी कहे सुणो साहीवा रे लाल। स्युं करूं बात प्रकाश हो प्रा० ॥ कपट करी मुजने ठगीरे लाल । घात की दे विश्वास हो प्रा० ॥ सू० ॥७॥ हूँनहीं जाणती तुम घरे रे लाल । एहवो छ अधर्म हो प्रा० ॥ परसंस्था सुण मोहीमें रे । | लाल । आज फूट्यो सहू भम हो प्रा०॥ मू० ॥ ८॥ श्रावक नाम धरावीयो रे ॥ वली
भया जाणकार हो प्रा० ॥ अनर्थ इशो घरके विषेरे लाल। नहीं आचार विचार हो प्रा० । |॥ सू ॥ ९॥ चीडावा सुगुणी भणी रेलाल । कहे इसो जिनदास हो॥सो॥ आचार घर | हलवाइकेरे लाल । विचार हम आवास हो सोभा० ॥ सू॥ १० ॥ खावो पहरो इच्छि | त सदारे लाल। भागवो नवला भोग हो सोभा०॥ येही विचार सुख दायनारे लाल । मि । | ल्यो तुम हम जाग हो सो०॥सू॥११॥ सुगुणी कहे ठीक नाथजीरे लाल। करी सुगुरुको संगहो ।
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जी० सु०
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प्रा० ॥ जाण अजाण इमथे किम हुवारे लाल । केको पीधी भंगहो प्रा० ॥ सु ॥ १२ ॥ अनंत मेरु मिश्री भखीरे लाल । पहर्या वस्त्र जग भारहो प्रा० ॥ त्रप्त नहीं हुयो जीवडारे | लाल । तोहिवे होवे किम पारहो प्रा० ॥ ॥ १३॥ किंपाक फल सम भोगछेरे लाल । देवलोके | भाग्या बहुवार हो प्रा० ॥ तो त्रप्ती इहां किम हुवेरे लाल । भोगी तुच्छ घिनकार हो प्रा० ॥ सू ॥ १४ ॥ इणही कारण धर्मी भइरे लाल । सीख्या धर्म को ज्ञानहो प्रा० ॥ उपरसे | साभ्या घणारे लाल । पण नहींगयो अभीमान होप्रा० ॥ सू ॥ १५ ॥ अनंतानंत पुण्यके उदय लाल । पाम्या धर्म की रेसहो प्रा० ॥ मींजी किम भौजी नहीरे लाल । अश्चर्य मुज ए विशेस हा प्रा० ॥ सू ॥ १६ ॥ समकित विन क्रिया सहूरे लाल । जैसे लीपण छार होप्रा० ॥ अनंत संसार इमहीं भम्यारे लाल । न आइ श्रधा सार होप्रा० ॥ सू०॥१७॥ अवसर ए उत्तम लहीरे लाल । मत डूवो काली धार हो प्रा० ॥ शक्ती मुजब करणी करीरे लाल | सुधारो अवतार हो प्रा० ॥ सू० ॥ १८ ॥ खटको राखो आगल तणोरे लाल । वली मुज देवो संतोष हो प्र० ॥ निज कुल धर्म समाचरोरे लाल । तन धन | का जो दोष हो प्रा० ॥ सु ॥ १९ ॥ में रुप देखी आपकोरे लाल । लागी नहीं कछू लारहो प्रा० ॥ गरज एक धर्म तणीरे लाल | देखी कीया भरतारहो प्रा० ॥ सू० ॥२०॥
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हिवे मनकी फरमावीयेरे लाल । जिम मिटे सर्व जंजालह । प्रा० ॥ ऋषी अमोलख एक हीरे लाल । द्रढ धर्मीकी नवमी ढाल हो प्रा० ॥ सू० ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ हर्षी क जिनदासजी | सत्य तुमारा वेण । इमही हूं जाणूं अछू । पण किम समजावू सेण ॥ १ ॥ घर अधर्मी ठेट थी । जाणे न लोक परलोक ॥ उपदेश में दीयो घणो । बात हुइ सहू फोक ॥ २ ॥ मुज शक्ती ए गुरु कने । कीधामे पञ्चखाण || पालू महारा आत्मथी । दोष नलागे जाण ॥ ३ ॥ सुगुणी कहे सासूजीने । में समजाया आज ॥ सुसराजीने पूछ के । करसी यन का काज ॥ ४ ॥ आप पण सुसराजी भणी । अवसरे दे उपदेश । समजावो मार्ग जैन को । जचावो धर्मकी रेश ॥ ५ ॥ इम संप हुवो दंपती विषे । धर्म चरचा बहु कीध । जाण पणो जोइ उभयते । आणंया इच्छा सिद्ध || ६ || सामायिक प्रतिक्रमणो । भेला करे नित्य नियम ॥ सीखे सीखावे आपसे । दिन २ चडता प्रेम ॥ ७ ॥ ढाल १० दशमी ॥ फाग । गरभे मती देख सुंदर काया ॥ यह० ॥ इण जीवने धर्म छे सुखदाइ ॥ इण० ॥ आं || दूजे दिन जिनदास अवसर देखी ॥ पिता जी चरण में नम्या आइ ॥ इण० ॥ १ ॥ सोहन शाह सन्मानी पूछे । आज बखाण किस्या सुण्याइ ॥ इण० ॥ २ ॥ कर जोडी जिनदास पयंपे । आज जैन रीती
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गुरु बताइ ॥ इण ॥३॥ सागार धर्म गृस्थ को दाख्यो । तेतो वृत छे वाराइ ॥इण०॥ जी० सु०
४ ॥ पहीले मृत धर्म दया मल । जेह सर्व मल में सराइ ॥ इण ॥ ५॥ तिणरी रीती भि खग्ड १४ ।। त्र २ दासी । ते सूती धारो पुज्य पीताइ । इण ॥ ६॥ जीव तणा दो भेद फरमाया ।।
स्थावर स्थिर अस त्रास पाइ॥ इण ॥ ७॥ स्थावर पांच की करो सरजादा । पृथवी । IA पाणी तेउ वाउ विणास्य इ ॥ इण ॥ ८॥ अनर्था दंडते सुगुणा वरजे। गरज उपरांत वा- IN
परे नाहीं ॥ इण ॥ ९॥ तिणसे पण अयोग्य काम वरजो। ते लेवो तात पान मांइ ॥ इण ॥ १० ॥ फोडी कर्म सन्चेत मट्टी भक्षण । छते मकान दूजो बणाइ ॥ इण ॥ ११ ॥ गडा वर्क खाचे कूवादी खोदावे। अट प्रहर अगनी सिलगाइ ॥ इण ॥१२॥ संचा चलावे मोटा पंखा लगावे। अनंत काय कंदमूल खाइ ॥ इण ॥ १३ ॥ इणकामें दोनो भाव | दुःखपावे । श्रावक नामने लजाइ ॥ इण ॥ १४॥ त्रसहने तस जैनी न जाणो । तेह ज-IN १४ | तना आगे सुणाइ ॥ इण ॥ १५॥ दीवा चूला ने पतली वस्तु। कधी न धरणा उघाडाइ | ॥ इण ॥ १६ ॥ राते रांघणो पीसणो लीपणो । विलोवणो झाडू बरजाइ ॥ इण ॥ १७ ॥ ॥अण गल पाणी पीणों न वापरणो। दिन देखी वस्तु न रांदे खाइ ॥ इण ॥ १८ ॥ सुली वस्तु तडके नही देणी । न वापरे दे एकान्त ठाइ । इण ॥ १९ ॥ इत्यदी आचार *
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सुखदा उभय भव । न मेनत न खरची पाइ ॥ इण ॥ २० ॥ यह सहू बन्दोवस्त करो अपने घर । तो कहा सुण्या को सार थाइ ॥ इण ॥ २१ ॥ सेठ सुणी हर्ष्या घणा मनमें ।। राते वाली सेठाणी चेताइ ॥ इण ॥ २२ ॥ सर्व बंदोबस्त कियो निजघरमें । धर्मी | दम्पती देख हर्षाइ ॥ इण || २३ || प्राते उठ प्रतिक्रमण करने । सुगुणी रसोडा माहे आ इ ॥ इण ॥ २४ ॥ चूलो वरतन छाणा लाकडी । यत्ना से पूंजी ने जमाइ ॥ इण ॥ २५ ॥ आटो दाल शाक रख्या देखीने | जीवाणी की यत्ता कराइ ॥ इण ॥ २६ ॥ इत्यादि कर जावे वखाण में । इम नित्य सुखे काल गमाइ ॥ इण ॥ २७ ॥ जिनदास राइ प्रती क मण करके । नमे मात पिता भाइ भोजाइ ॥ इण ॥ २८ ॥ फिर तात की लइ अनुज्ञा । नित्य प्रत जावे बखाण मांइ ॥ इण ॥ २९ ॥ इस सुखे २ कालं गुजारे। धर्मी धर्म बड्या सुख पाइ ॥ इण ॥ २० ॥ अमोलखऋषि ढाल कही यह दशमीं । प्रथम खन्ड पूर्ण था | इ ॥ इ ॥ ३१ ॥ प्रथम खन्ड सार - वसंतिलक छन्द || दया मूल धर्म सर्व समेयमे बखाण्यो । गृहस्थाचार धर्म प्रथम खन्डे जाण्यो | धारो सुणी सुज्ञा रोती ए सारी । उभ य भव सदा यहहोय जय कारी ॥ २ ॥ इति प्रथम स्कन्ध धर्म प्रबन्ध रुप समाप्त ॥
१ मत
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जी० सु०
॥ दोहा ॥ अनंतानंत ज्ञान धर । नि : केवल जिण श्वरूप ॥ अव्यावहा अखड जेह ।
खण्ड २ प्रणमु विश्व के भूप ॥ १॥ राग द्वेष दो बन्ध में। बन्ध्यो जीव अनाद ॥ ते छेदन दिन विध धर्म । अर्पे चित समाध ॥ २ ॥ ज्ञानी ज्ञान बले करी। जिते राग रु द्वेष॥ अनादी प्रवय अज्ञानी जन। वन्धन करे विशेष ॥३॥ जेह धारी जिनपन्थ ने। पतली करे कषा य ॥ सम भवे वरते सदा । तेही शिवगत पाय ॥ ४॥ ज्ञानी गुनी धर्मात्मा । सुगुणी - |ने जिनदास ॥ राग द्वेष पतला किया । तस गुण करूं प्रकास ॥ ५॥ उत्तम से उत्तम
मिले । मिले नीच से नीच ॥ नीर जावे सरीता विषे । कचरो फस रहे कीच ॥ ६ ॥स १ नदी । द्गणी दम्पती सदा । तन मन धने हुल्लास ॥ करे करावे साज दे। जैन धर्म अभ्यास ॥ ४/७॥ चार घडी प्रभात के। धणीधणी याणी ऊठ॥ धर्म चरचा अवश्य करे। फिरवृते वृत
छूट ॥ ८॥ त्रीकाल मुनीवर तणी । करे सेवा धर प्रेम ॥ संतोषे मात तात को । बधा | य धर्म दान नेम ॥९॥४॥ ढाल १ पहिली ॥ वीरा म्हारा गज थकी ऊतरो ॥ यहदेशी ॥ | धर्मी नर शोभा लहे । धर्मी सब को हित चाहावे जी ॥ बुरो किसको चिन्ते नहीं । | तेह धर्मी साचा कहवावे जी॥धर्मीनर शाभालहे॥७॥१॥तीनों भाइ भोजाइ ने। समजावा || | के काजेजी ॥ दोनो क्षप कीधी घणी । उपदेशादी साजेजी । धर्मी ॥ २ ॥प्रत्यक्ष परोक्ष
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प्रमाणथी। धर्म फलतास बतावे जी । अंतरायका जोगसे । दाय तास नहीं आवे जी ॥ धर्मी ॥ ३ ॥ जिम वर्षाद बर्ष्या थकां । जवाशो सूख जावेजी । तिम उपदेशे षट सठते । आर्त मनमें लावेजी ॥ धर्म ॥ ४ ॥ पयपान भूजंगन । विष रुप प्रगमावेजी ॥ तिम छेउ धर्म उपदेशसे । उलटोइ श्रधावेजी ॥ धर्मी ॥ ५॥ धर्म से दुःख प्रत्यक्षहै । दानदि । या धन जावेजी । तपसे तन दुर्बल हुवे । सीले संतान नथावेजी ॥ धर्मी ॥ ६ ॥ जबथीअपणाघर विषे । नानी बहुअर आइजी। तबथी सुख गयो घर तणो। मूंढे छींकी बन्धइजी॥ धर्म ॥ ७॥ जिनदास कहे नरमाइने । पूर्वे दानज दीधाजी । तेहथी इहां संपत लही । | कोइ बांधी नहीं लाया सीधा ॥ धर्मी ॥ ८॥ विभचारे कुल वृद्धा होवे । तो वैस्या बां. | | दी लाजाइजी ॥ निरोगो तपथी तन रहे । इम धर्म तणाफल हाइजी ॥ धर्मी ॥ ९ ॥ उत्तम वस्तुके वासणें । मूढा सघला बान्धेजी ॥ अज्ञाने उलटो श्रद्धता। ज्ञानी आत्म अर्थ |N साधेजी ॥ धर्मी ॥ १० ॥ जवाबनहीं आया थकां । चीड्या तीनों भाइजी ॥ कहे तूं। माल्यो लुगाइ को । बुढ्ढा बुढ्ढीमें बुद्ध नाहीं जी॥ धर्मी ॥११॥ इम अयोग्य बचन सुणी। जिनदास सुगुणी विचारेजी ॥ भारी का जीवए। उपदेश किणविध धारेजी॥धर्मी॥१२॥ जिनागमें जिनवर कह्यो । कर्म स्थिती हीण थावेजी। क्रोडसागर पर्म कम रहै। तब ।
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जी० सु०
जीव धर्म मग आवेजी ॥धर्मी ॥ १३॥ दोष नहीं कछु इनतणो । अंत्तराय उदय देखजी । । जिम पील्याका रोगसे । धोली वस्तु पीली पेखेजी ॥ धर्मी ॥ १४ ॥ जैसा भविस्य होवे खण्ड २ जेहना । तेहवी बुद्धी तस आवेजी ॥ करसी ते तिसो पावसी। आपणो कांइ जावेजी ॥ धर्मी ॥ १५ ॥ आजपछे यां छेउने । धर्म कार्य के मांहीं जी। सीखामण देणी नहीं जिम सम्प घरमें रहाइजी ॥ धर्मी ॥ १६ ॥ अनाचार घर के विषे। मावित्र होणे न देसीजी ॥ कहणी सो मावित्रने । तिणथी शोभा रहसी जी ॥ धर्मी ॥ १७॥ पुर्वोक्त रीते नित्य प्रते । यत्ना करे धर्मपाले जी ॥ ते छेउं खेटा करे । घरमे झगडा केइ घालेजी ॥ | धर्मी ॥ १८ ॥ मून धरी रहे उभयते । द्रबे भावे सुख मानेजी ॥ द्रबे यशःफेले लोकमें। | मावित्र गुण पेछाणे जी ॥ धर्मी ॥ १९॥ भावे सहे समभाव थी। समर्थ एकही गाली। | जी । ते अनंत वर्गणा कर्भ की। देवे क्षिणने वाली जी॥धर्मी ॥ २० ॥ धर्म ज्ञान पायां | तणो । सार यह सह झालो जी ॥ अमोल बीजा खन्डकी । कही यह पहीली ढालोजी॥ | धर्मी ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ जेठाणी तीनों तदा। गुणविन भरी अहंकार ॥ सत्कार सुख | सुगुणी तणो । देखी जले आपार ॥ १ ॥ कुचकेरणी करे घणी । सुगणी न धरे ध्यान ॥ नित्य नियम सदा साचवे । राखे तीनी को मान ॥ २ ॥ तीनों निज २ कंत का । राते
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फुके कान || देवर नारी धनवंत पा । फूल्या फिरे गुमान ॥ ३ ॥ बहु के हुकम सासू रहे | बेटाके में बाप ॥ आंपांने गिणें नहीं । सम ज्यो न भोला आप ॥ ४ ॥ थे
पहर दोडी करी । लावो धन कमाय ॥ में रात दिन घर के विषे । पच्या छां धंदा मांय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल२ दूसरी ॥ सुणों सिमंधर श्वामी ॥ यह ॥ थे सुणीयों साहिब शाणा । मानो जी कहणा म्हाना । म्हें सुख चावां छां थाणा हो ॥ १ ॥ इम नारी फूट पडावे ॥ आं० ॥ या जादू गिरनी देराणी । इण फेर्या सुख पे पाणी । वस कीना सेठ सेठाणी हों ॥ इम ॥ २ ॥ इण सबका मूढा बन्धाया । बली कांदा खाणा छोडाया ॥ ज्यूंना आचार गमाया हो ॥ इ ॥ ३ ॥ यह वणीया राजा राणी । हम दासी सम लेखाणी । कांइ मोल हमने आणी हो ॥ इम ॥ ४ ॥ यह देखे जग तमासा । सहू करे आपणां हाँसा । | में उंडा न्हाख नीसासा हो ॥ इम ॥५॥ यह काम करे कुछ नाहीं । नित ऊठ स्थानक में जाइ । सीधा भोजन जीमे आइ हो ॥ इम ॥ ६ ॥ वली करे मशकरी म्हणी | कहे अध र्मी ने अज्ञानी । हम घट में लाय लगाणी हो ॥ इम ॥ ७ ॥ इम नित दुःख सेवां अपारो । किण आगे करां उचारो। कहो कांइ बांक हमा रीही ॥ इम ॥ ८ ॥ यह दुःख | हमसे न खमावे । मर वा की मन में आवे । पण आप की प्रीती बचावे हो ॥ इम ॥ ९
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शि०सु
॥ प्राणश्वर साहेब प्यारा । में जोडायत बज्यां थांरा । एक तुमचा हमने आधारा हो । इम ॥ १० ॥ झट इणरो वंदोवस्त कीजे । जीम तुम हम तन नही छीजे । नित भोगसुख लावा लीजे हो ॥ इम ॥ ११ ॥ सूसराजी पासे जाइ । लेवो धन की पांती पडाइ॥
अब शरम राखणी नाही हो ॥ इम ॥ १२॥ जदी जागा लीजे। तिण मांडेवासो कीजे | फिर सदा मजा मे रीजेहो ॥ इम ॥ १३ ॥ थे करसो नित्य कमाइ। खरच थोडो सो थाइ । सह धन रहसे घरमांही हो ॥ इम ॥ १४ ॥ थोडा दिने श्रीमंत थास्यां। देवररी गुम | | राइ गमास्यां । लोकाने प्रत्यक्ष बता स्यां हो ॥ इम ॥ १५॥ देवर तो कमाइ न जाणे।। अब
खाइ पेहरी ने मजा माने । सहधन्न गमास्ये हाणे हो ।। इस ॥ १६ ॥ देराणी भरी ।। गुमराइ । कछ काम ते करसी नाही । नोकर सह धन खाजाइ हो ॥ इम ॥ १७॥ इण पर यह दुःखीया थासे । तब अकल ठिकाणे आसे । पीछा आंपाने मनासे हो ॥ इम ॥ १८॥ और माज घणी स्वमी। आंपा पास्य घणी आरामी । काण हटक नहीं नामी हो । १७ ॥ इम ॥ १९ ॥ में ऊनी रसोइ नीपास्यूं । नित कने बेट जिमास्यूं । वली ठन्डो पाणो | पास्य हो ॥ इम ॥ २० ॥ इम तीनी पती ने भरमाया । ए काम तीनांरे मन भाया ।। ढाल बीजी अमोलख गाया हो ॥ इम ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ प्राते उठ तीनों जणा ।
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सला कर आपस मांय ॥ पिता पास आइ कहे । सूणो तात चित लाय ॥ १॥ साठी! || बुद्ध न्हाठी कही । अक्कल नहीं तुम ठाम ॥ माथे चडायो जिनदास ने। करे नहीं कछ
काम ॥ २ ॥ नित जा बेटे मुह बांधने । पूजणी लेइ हाथ ॥ बाबो होसी थोडा दिने । । करी बाबा को साथ ॥ ३ ॥ के तो तस समजाय के । लगावो धंधे कोय ॥ नहीं तो
म्हाने जुदा करो। जिम सह को सुख होय ॥ ४ ॥ एतो वंदोवस्त किया । लज्जा रहसी Nतात ॥ नहीं तो फिर लोकां मांही । भांड होसो कहां वात ॥५॥ ७ ॥ ढाल ३ तीसरी॥
वीर सुणो मेरी वीनती ॥ यह ॥ सुणी वचन तीनों पूतका । सोहन शाह हो चिन्तेमन * माहे ॥ आभागी सुखमें दुःख चहे । पोता को हो नोवे नशीब नाहे ॥ १ ॥ संप सदा | सुखदाय है । संपथी हो संपत वणीरेय ॥ दुशमन दाव लागे नहीं । सजनमें हो ते शोभा
लेय ॥ सं० ॥२॥ समजावण भणी तीनी ने। धीरज दे हो कहे संप त्या सुख ॥ किस | का नशीबकी लक्ष्मी । कू संपथी हो पासो घणो दुःख ॥ संप ॥ ३ ॥ घणा जणा भेला | रह्या । घणा को हो तिणमें रहे भाग ॥ 'घण जीतारे लक्ष्मणा' । यह कहवत हो सुख । देवे घणी जाग ॥ संप० ॥ ४ ॥ त्रण घणाकी रासडी । बान्धे हो मोटो गजराज ॥ घणी कीड्यां मारे नागने । घणा मिलहो करे घणो काज ॥ संप० ॥५॥ द्रष्टांत कहूं
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जा० सु०
१८
ते सांभलो । एक वसतोहो पुर वसंतगाम ॥ कमलाकर शाहा तेहा में। धनवंता हो। जगमें सू नाम ॥ संप ॥ ६ ॥ तस महीला नाम सुन्दरी । तस अंगर्थी हो उपना पांच | खण्ड २ पूत ॥ रुप बुद्धि बले शोभता । पुण्यवंताहो अंगमें मजबूत ॥ संप ॥ ७ ॥ बल लाभ दे। खी एकएकको ।ईर्षा हो लावे मन माय ॥बात२ में लडी पडे। इम कूसंपहो बधवा लाग्यो । सवाय ॥ संप ॥ ८॥ पिता समजावे बहु विधे । सिखामण हो ते धरे नहीं कान ॥ था-IN क्या सजन कू संपथी । दिल धरता हो पांचों अभीमान ॥ संप ॥ ९॥ एक दिन कोइ कठीयारो । काष्ट भारीहो लायो सेठ के धाम ॥ मोल लेइ न्हाखी चोकमें । विदा कीधा । हो देइ तसदाम ॥ संप ॥ १० ॥ बुलाइ पांचू पूतने । कहे तुमछो हो पांचों प्राक्रम पूर ॥ नवयोबन मदमें भर्या । दुशमणने हो राखो छो दूर ॥ संप ॥ ११ ॥ एक कह्यो महारो करो । बन्धी भारीहो कोइ तोडो मचकाय ॥ तो प्राक्रम थांरो खरो। मोटो बेटो हो उठी तिहां आय ॥ संप ॥ १२ ॥ प्राक्रम कीयो अतीघणो एक लकडीहो भागी तब नाय ॥ बीजा पणतिमही कियो । इम पांचूहो हारी कहे वाय॥ १८ संप ॥ १३ ॥ तात कहे पांचू मिली । भागो हो इण भारी तांय ॥ पांचू मिल जोर कियो घणो । तस मेहनतहो निर्फल सहु जाय ॥ संप ॥ १४ ॥ कहे यहतो भागे नहीं । कीधा
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हो हम घणाउपाय ॥ तव सेठकहे छोडो एहने। एकेक लकडी हो गही तोडो भाय ॥संप॥ १५॥ एकेक लकडी तनुज गृही । तोडीन्हाखी हो तेहने तडतड ॥ जेज कछू लागीनहीं । तबसेठ कहे लेवो समज पकड ॥संप ॥ १६ ॥ भेली लकडी सहू रही। तो तेहने हो न-2 ही सक्या थें तोड ॥पाचूंमिल मेहनत करी । तेहथी थाणी हो भागी छे खोडे ॥ संप ॥१७
॥ इमथे समजी संपथी । रहेसोहो एकघरके माय ॥ दुशमण घणा जो कदी मिले । तोतु|| मने हो दुःख दे सके नाय ॥ संप ॥ १८ ॥ जुदारजो थे हुया। हरकोइहो किंचित काल मां
य॥ भांगी न्हाखसी तुम भणी।जिम एकेकहो लकडी तोडी सहाय॥संप ॥ १९ ॥ प्रत्य । |क्ष द्रष्ठांत देखके । तेसमज्याहो पांचूतत्काल ॥ कहे हम अब लडस्या नहीं। हिल मिलिने हो रहस्यां सह वहाल ॥ संप ॥ २० ॥ एद्रष्टांत सुणा करी । समज्यो हो थे चतुर सुजाण ॥ अमोल ढाल यहतीसरी सेठजी हो कह्या सुतने बखाण ॥संप॥२१॥9॥दुहा॥साहन शाहा कहे | दुराणी। तुम तीनो विद्वान॥ समज्यो इण द्रष्टांतथी। तज मिथ्या अभीमान॥१॥चुपचाप उठीलि। लाग्या निज २ काम ॥ राते कहे निज नारसे । संपसे रहो तमाम ॥२॥ तीनी ना
री रीशधर । कहे भाला तुम कंत ॥ देवर सुसरा कपटी घणा । तुमने नरमावंत ॥ ३ ॥ N| साठे अन्नवस्त्रतणे । आपण छेइ दास ॥ अपण मेहनत थी धउ। भागवे सुख विलास ॥
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जि० सु०४॥ लाज न आवे तुम भणी । जाणी पड्या दःख माय॥हमतो भली नहीं रहां । पहिली खण्ड २
| कहां समजाय ॥ ५॥ ढाल ४ चोथी॥ अरजी सुणीयों मोये कुमरजी ॥ यह० ॥ | प्राते तीनों पिता पास आइ। रीश करी कहे एम ॥ गुप चुप हम को जुदा कर देवो ।।।।
जो चाहो सह क्षेम ॥ भाइ जी, संपथकी सुख होय ॥ आं० ॥१॥ तब जिनदास | बखाण सांभली । आया पिताके पास ॥ पिता कहे आज सुण्योसो केवो ॥ बुद्धवंत ।
प्रकाश ॥ भा३० ॥२॥ जनपद पुरे पिशुन जय राजा । न्याय नीती गुण धाम ॥ भागी राणी थी उपना । सुर सिंह पुत्रसुनाम ॥ भाइ० ॥३॥ · संगत पडी बाल वरः थी। सेवे सात विशन ॥ सचीव परोहित सेठ सुत चउ। मंत्री रहे एक मन ॥भाइ॥४॥ श्लोक ॥ जुवा भक्ष मंसं सुरापान वैस्या । पापार्ध चोरी परदार सेवा । एतानी सप्तान कु विशन लोको । घोराती घोर नर्क गछंती ॥ १ ॥ ढाल ॥ एक दिन सहेल कारण काजे । आया गाम के बाहार ॥ पक्को खेत देखीमाका को । आपसे करे विचार ॥ भाइ०॥ ५॥ भुट्टा खावा चोर तणी परे । पडीया खत के मांय ॥ रख वालो देखी चित चि -12 न्ते । करणों काइ उपाय ॥ भाइ० ॥ ६ ॥ हूँ एकलो ए चार मिली ने । करसी घणो || नुकशान ॥ कोइक दाय उपाय करीने । पाहू यांरो मान ॥ भाइ० ॥ ७ ॥ इम विचारी
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साहस धारी । आया चारूं के पास ॥ आपस मांहे फूट पडावा । कर जोडी कहे तास ॥ भाइ० ॥ ८॥ धन्य भाग आज मुज खेत का । पधार्या राज कुँवार ॥ प्रधान पूत्र - अने परोहित जी। छो महारा सिरदार ॥ भाइ० ॥९॥ पण बाण्यो किम आयो इहां यह । चोरी करवा काम ॥ डोडा दूणा लेइ हमथी । घरमें मेल्या दाम ॥ भाइ० ॥ १०॥ तीनो कहे छे भलो पटेल ए। करो अपणो सत्कार ॥ न्याय कहे वाण्यो किम खावे । फोकट इणरो माल ॥ भाइ० ॥ ११ ॥ तीनो छिटकायो वाण्याने । कृषाण मारी मार ॥| मालाने एक स्थंभे तेहने । बान्धो द्रढ तेवार ॥ भाइ०॥ १२॥ फिर कर जोडी कहे राज कुंवरसे ।आप छो पृथवी नाथ ॥ आप तणो ए खेत हे सघलो । प्रधान आप के साथ ॥ भाइ० ॥ १३ ॥ पण भटजी तो मांगण हारा ॥ लेगया घणोज माल । इणने आप साथे । किम लाया । भली न इणरी चाल ॥ भाइ० ॥ १४ ॥ भोला राय सचीव पूत तब । हर्षी कहे सत्य वात ॥ आपण पे खुसी खेत को मालक । परोहित ने छिटकात ॥ भाइ० ॥ १५॥ कृषी विप्रने बन्ध्यो स्थंभे । ज्यों छूटण नहीं पाय ॥ फिर कर जोडी कहें कुंवरसे | आप श्वामी महा राय ॥ भाइ० ॥ १६ ॥ सचीव जी तेसील गामकी । दमडा | दिया चुकाय ॥ मुफत माल खावा किम आया । लीनो तस कर सहाय भाइ०॥१७॥ १ हाथ
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बी० युर
२०
राज पुत्र तब खुशी होय ने । कहे सच कहे पटेल || मंजी पुत्र को वान्थ्यो स्थभे । देखो को खेल || भाइ० ॥ १८ पाछल एकला रह्या राज सुत । कहे कृषी जोर लाय ॥ फूट राजा हो कर चोरी करतां । शरम जरा नहीं आय ॥ भाइ० ॥ ॥ १९ ॥ पकडी बान्ध्यो चौथे स्थं । करी तबही पुकार ॥ दोडो २ चोर पकडीया । लोक जम्या आ अपार || भाइ० २० || खबर हुइ चारों का तात ने । चारुं को कियो अपमान ॥ फिट २ हुवा बहू दुःख पाया । इर्षाका फल जाण ॥ भाइ० || २१ जो चारुं ते संपथी रहता | तो कुण देता दुःख । इम सुण संपकरो सहुजन । जो चाहीये छे सुख ॥ भाइ ॥ २२ ॥ इम सुणी तीनों भाइ चुपरही। लाग्या निज २ काम ॥ कहे अमोल यह ढाल चतुर्थी । उपदेश बडो गुण धाम || भाइ || २३ || ७ || दुहा ॥ राते तीनी कंतने । पूछे कीधो केम ॥ ते कहे सार न फूटमें । रहो हिल मिल धर प्रेम ॥ १ ॥ नारी कहे तुम नर हुइ । करीन जाणो बात ॥ प्राते हम जुदा हुवां । देखो हम करामात ॥ २ ॥ प्राते तीनो सासूपे । आइ हो विकाल ॥ भलो चाहो तो हम भणी । जुदा करो इण काल ॥ ३ ॥ सासू समजावे घणी । तेह नहीं माने लगार | सुगुणी सुण आइ तिहां । पूछे सासू तेवार ॥ ४ ॥ कियो सुण्या बाण में । सुगुणी अवसर जोय ॥ कथा कहे संप कारणे । सहू सुणे
खण्ड २
२०
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खुश होय ॥ ५॥ ॥ ढाल ५ पांचमी ॥ भूडीरे भूख अभागणी ॥ यह० ॥ नरभी मधुरसुगणी कहे । धन्य २ तुम अवतार मातजी ॥ धर्म कथा सुणवा तणो । आपके मन जे प्यार मातजी ॥१॥ संपथकी लक्ष्मी रहे॥०॥ संपथी कुल सोभाय मा०॥ इह भव पर भव सुखलहे । संप सदा सुखदाय मा० ॥ सं॥२॥ संप फल दरशाववा । दीया द्रष्टांत श्रेयकार मा० ॥ चित्रशाल पुरशाभतो । जितशत्रु सिरदार मा० ॥ सं ॥ ३ ॥ धनदत्त । सेठ तिहा रहे । पुफोतरा तस नार मा०॥ पुतरपन्दरह शोभता। बुद्धवंत विनय विचार मा० ।
॥ सं ॥ ४ ॥ परणाया योग्य कुलमें । सुत सुता बध्यो परीवार मा० ॥ कुटुम्ब हुयो घर सामटो । खरचे धन घटार मा०॥सं ॥ ५॥ अंतराय उदयकरी । लक्ष्मी न सदनेवि शेष मा० ॥ पण संप आपसमें घणो । हिल मिलरहे हमेश मा० ॥ सं ॥ ६ ॥ एकत्ररही उद्यम करे । मिल्यापर करे संतोष मा० ॥ तात हुकम सहू सिर धरे । करे कुटुरब को पोष मा० ॥ सं ॥ ७॥ संया समय नित्य सेठजी । भेलो कर परिवार सर्व मा०॥ उपदेश करे संप राखवा । कोई मत करजो गर्व मा०॥ सं ॥ ८॥ नरमाइ में गुण घणा
। सर्व जक्त वस थाय मा० ॥ दुशमण पण सज्जन हुवे । शोभा होय सवाय मा० ॥ सं ॥ N९ ॥घणा पुण्य प्रशादसे । घणा जन को मिलेजोग मा० ॥ घणा मिली थोडा हुवे। जा.
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जि० स०
२१
तस कर्म को रोग मा० ॥ १० ॥ कोयला घणा भेलाहुइ । लोहा को करदे तोयं मा ० ॥ तिम धणा रहे संप थी । तो दुशमण पाणी होय मा० ॥ सं ॥ ११ ॥ इत्यादी उप देश थी । हल करमी खुश थाय मा ० ॥ सूख संप देखी एक एकका । आपसमें सुख पाय मा० ॥ सं॥१२॥ एकदा धन खुटी यो सहू । कमाइ हुइ बंद मा० ॥ भूखे टलबले ते सहू । पण छूटे न समंद मा ० ॥ सं ॥ १३ ॥ जुदा जावण चावे नहीं । संपथी सेवे दुःख मा ० ॥ अनुराग देखी आपसमें । माने घणो ते सुख मा० ॥ सं ॥ १४ ॥ तेतले - taaraणी | पडी नहीं रहवा जोगमा ० ॥ विती में वृद्वी हुइ । चिन्ते यह कर्म रोग मा० ॥ सं॥१५॥ कारीगर लगाय के । बन्धावूं जो इण तांय मा० ॥ तो खरचण नाणो नहीं । कारये कांइ उपाय मा० ॥ सं० ॥ १६ ॥ हाथो हाथ मिली सहु । अंबी न्हाखां बान्ध मा० ॥ सेठ बुलाय सहू भणी । सहु दोड्य चित सांध मा० ॥ सं० ॥ १७ ॥ कर जोडी ऊभा सामने । कहे फरमावो काम मा० ॥ देखी आमण द्रुमणा । भूखे कुम लाया तमाम मा० ॥ सं० ॥ १८ ॥ भींत पडी बाडा तणी । खरचण नहीं है दाम मा० ॥ हाथोहाथ बान्धो सहू । विना दाम होवे काम मा० ॥ सं० ॥ १९ ॥ सर्व सुणी - शी हुवा । मृतिका काडण काज मा० ॥ कुशी कुदाला लाय ने । खोदे जागा मिल समा
1
खण्ड २
१ पाणी
२१
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मा० ॥ सं ॥ २० ॥ खादत भूइ ऊंडी तिहां । खननन बाजी कुदाल मा०॥ संप तिहां सुख संपजे । अमोलकही पंच ढाल मातजी ॥ संप ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ कर जोडी कहे सेठ से । इहां है कोइ चीज ॥ झणकार हूयो खोदतां । दीठां चमके बीज ॥ १॥ हर्षी जोवे सेठजी । धातू पत्र निकाल ॥ निधी प्रगटी द्रव्य की । हुवा घणा खुशाल ॥
२॥ वाहिर चरु ते काहाडीयो । नीचे दूजो देखाय ॥ इम दूजो तीजो काहाडके ।संतोNष मनमें लाय ॥ ३ ॥ श्लोक ॥ अतिःलोभो न कृतव्य । अतिः लोभ दुःख दायकं ॥ अ.
तिः लोभ प्रशादेन । बहू प्राणी मरणां गतः ॥ १॥ ॥ दुहा॥ अति लोभ नहीं काम । को । इम जाणी दीधूल ॥ पुण्य जोग इत्तो मिल्यो । हुया कर्म अनुकुल ॥ ४ ॥ मेल्यो । धन घर के विषे। कियो सुख खान पान ॥ द्रव्य तिहां सर्व संपजे । सुणो लगाइ कान । ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल ६ छट्टी ॥ दया धर्म पावे तो कोइ पुण्यवंत पावे ॥ यह ॥ संप-17 रख्या इछित सुख पावे | पुण्यवंत ने संप सुहावे जी ॥ रुठी लक्ष्मी संपी घर आवे । | नित्यानंद रहावे जी॥ संप ॥ १॥ तिणही नगरी माहे रहवे । स्वर्ग शाह धनवंतो
जी ॥ बहुल परिबारी रहवा काजे । मोटी जागा बांधतो जी ॥ संप ॥ २ ॥ बहु भो| मीयों ने बहु रंगे रंगीयो । मध्या बजार के मांही जी ॥ ते जागा धनदत्त
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जी० सु.
२२
| मन भाइ । लेवा की करी चहाइ जी ॥ संप ॥ ३ ॥ निरारंभी साता कारा ।। | एसी जो लागे हाथ जी ॥ खरच तणो तो फिकर न किंचित । सुख पावे सह साथजी खण्ड २
॥ संप ॥ ४ इम विचारी स्वर्ग शाह पासे । आइ बोले इमजी ॥ नवी जागा. बेंचो तो : मुज दो । कहो मोल इछो तिम जी ॥ संप ॥ ५॥ स्वर्ग शाहा हँसीने चिंते। ए दुःखी 21 यो निरधन जी ॥ बह मोली जागा किम लेवे । प्रछे है देखण मनजी ॥ संप ॥ ६ ॥ हँसी कहे हां शाहजी थे लेवो । तो देवू खुशी होयी ॥ धनदत्तजी कहे कीमत काह N| ये । अबी लादेवू विते सोयजी ॥ संप ॥ ७॥ हाँसी जाणी द्रव्य थोडो बतायो । धन
दर मान्या साचजी ॥ शाणा दाना मोटा नर तिहां । साक्षी राख्या पांचजी ॥ संप ॥ धन ८॥ शीघ्र जाइ द्रव्य लाया घरते । स्वर्ग शाह देख विलखायजी ॥ कहे में हाँसी में | हां पाडी । ए जागा किम देखायजी ॥ संप ॥ ९ ॥ साक्षी दार होइ सत्य पक्षी । कहे I बदल्यामें नहीं सारजी ॥ जगा इनकी इनको देवो। कह्या प्रमाणे दाम धारजी ॥ | संप ॥ १० ॥ स्वर्ग शाह पस्ताया मनमें । जगा दीवी धन लेयजी ॥ धन दत्त सहू २२ । कुटम्ब संगाते । सुखे आइ तिणमें रेयजी ॥ संप ॥ ११ ॥ धनथकी धन बधेजगत् में। धनका सगा घणा होयजी ॥ धनवंत को सहू जग यशः गावे। धन सम जगमें न कोयजी
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जी || संप || १२ || एक खूणा में कीयो ढग धनको । खरचण हुकम सहूने दीधोजी ॥ खावे खिलावे सुकृत्ये लगावे । संग्रह न खोटो लीधोजी ॥ संप ॥ १३ ॥ हणा घृणा नव नवा । सहूने सरीखा करावेजी | एक ठिकाणे भोजन निपजे । मिल भोगवे हर्षावेज || संप ॥ १४ ॥ मेघ धारा परे धन वावरे । लोभ न करे तिल मातजी || हाथ पोला को जग होवे गोलो । ए जग प्रत्यक्ष देखात जी ॥ संप ॥ १५ ॥ धन बान्धी नहीं लाया पर भवसे । जातां न साथ ले जाय जी || पूर्व पुण्य से इहां धन पाया । सुकृत्ये लग्यां आगे पाय जी ॥ संप ॥ १६ ॥ केइ लक्ष्मी को पुत्री पर पोषे । भूमे गाड नित्य बधायजी || तिणरा मालक दूसरा होवे । ते तज पर भव जायजी ॥ संप ॥ १७ ॥ कोइ लक्ष्मी प्रेमला परे विलसे । दान धर्मे खरचायजी ॥ ते पर भव साथ लेजावे । जिम सती कंत लारे थाय जी ॥ संप ॥ १८ ॥ इम उपदेश दे सेठ कुटुम्ब को । तिथी सहु लहे लाभजी ॥ दान दया में धन्न वावरे । धन्न करे घर उत्साभजी ॥ संप ॥ १९ ॥ सह हिंशक वैपार छोडीयो । व्यर्थ आडम्बर त्यागजी ॥ निर्थक खरच निकाल्यो घर थी । सहू शुभ कर्मों लागजी ॥ संप ॥ २० ॥ सहू पिता की आज्ञा पाले । तज मत्सर घर संपजी || हिवे परिक्षा सुणो एकों की । छटी ढाल अमोलक जंपजी ॥ संप
१ सम्प
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जि० सु० ॥ २१ ॥ * ॥ दुहा ॥ तिण नगरी माहे वसे । महा लोभी श्रीपाल ॥ अकृत्य कर धन खण्ड २
सचीयो। वार, कोटी माल ॥ १॥ लुख तुच्छ भोजन करी । काठा जीर्ण वस्त्र पहेर ॥ । महा कष्टे काल निर्गमे । एकदा चिन्ते ए पेर ॥ २ ॥ कष्टे धन में भेलो कियो । मुज
माँ खासी और ॥ दूजा लेवा पावे नहीं । इम रखू कोइ टोर ॥ ३ ॥ वनमें वट वृक्षके तले । गाड्यो ऊंडो धन जाय ॥ आयु खुटे अशुर भयो । अकाम निर्जरा पसाय ॥४॥ भागी आयो धन जिहां । देखी पायो सुख ॥ हिरे फिरे तिहां रहे । सुख तज सुखे सहे || दुःख ॥ ५॥ ॥ ढाल ७ सातमी ॥ न्यालदे की देशीमें ॥ एक दिन असुर ने लक्ष्मी जी कांइ । चाल्या जाय आकाश ॥ देखी घर धन दत्त को जी २ काइ । अशर करे प्रकाशा ॥ १॥ लक्ष्मी को चावे सहू जी ॥ ७ ॥ लक्ष्मी को चहावे सह जी कांद। |चाहावे तिहां नहीं जाय ॥ अण चहाइ जगा विषेजी २ काइ । पडे छे तूं किम आय / २३
॥ लक्ष्मी ॥ २॥ इण घर थारी परभा नहीं जी कांइ । ठेले ठोकर मांय ॥ पानी की परे .. | वावरेजी । किम तुज इहां रहाय ॥ लक्ष्मी ॥३॥ कमलो कहे इण घरे विषेजी काइ । १ लक्ष्मी
संप कुटुम्ब में सवाय । तेह देखी इहां रहीजी२ काइ। ते तुज देवू बताय॥ लक्ष्मी॥४॥अर्ध । | निशा ढालतांथ काजी काइ। सुरीआइ सेठ पास।पूछे सूता के जागो अछो जीरकांइ। सेठ दे उ
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|त्तरतास ॥ लक्ष्मी ॥५॥ सूतोपण जागू अछू में। कुण तुम आया किणकाज॥राते नारी
अन्य स्थानकेजी २ कांड। जातां धरछे लाज ॥ लक्ष्मी ॥ ६ ॥ साकहे हूंलक्ष्मी सुरीजी काइ । जोइ तुम घरहाल ॥ चेतावण आइ अझंजी २ कांइ। तुमघर मुजन संभाल ॥ लक्ष्मी ॥ ॥७॥ मुज कारण घणा भपती जी काइ । ज्यूंजे रणके माय ॥भाग दे सजन शैन्य को जी!
२ कांइ । राखण करे उपाय ॥ लक्ष्मी ॥ ८॥ सेठशाहा अकर्त्य करीजी काइ । महारा
भणी कमाय ॥ भूख प्यास सीत ताप ने जी २ काइ । गिणेन निश दिन धाय ॥ लक्ष्मी N॥ ९ ॥ राखे गठडी उल्चा विषेजी काइ । तीजोरी कोटडी माय । ताला पहेरा वन्दो बस्त - करी जी २ काइ । गाडे झं खोदाय ॥ लक्ष्मी ॥ १० ॥ सदा राखे मुज अगले जी कांइ।
घृत दीप ने धूप ॥ पूजा करे के इशाश्वती जी २ कोइ । दिपावली दिन भूप ॥ लक्ष्मी ११॥मुजने बुलावण कारणे जीकाइ। लीपे पोते गेह॥ वहृरंग रोशनी करेजी २ कांइ। ध्यान
धरे धर नेह ॥ लक्ष्मी ॥ १२ ॥ वैपारी मुज कारणेजी काइ । छोडी वृद्ध मा वाप ॥ तरु । Nणी मेली तरसती जी २ काइ । परदेश जावे आप ॥ लक्ष्मी ॥ १३ ॥ माल तणो संग्रह E करे जीकाइ । नगिणे पुण्यके पाप ॥ असंख्य अनंत जंत हणेजी २ काइ । लाज न देखे | कुल खाप ॥ लक्ष्मी ॥ १४ ॥ खेती वाडी करे घणा जी काइ । चीरे पृथवी पेट ॥ पत्र पु
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मप्य फल बेंच ताजी २ कांइ करे केइ अखेट ॥ लक्ष्मी ॥ १५ ॥ गुलामी करे गाल्यासहे जी | खण्ड २
काइ । उठावे बजन अपार ॥ गामागाम फिरे भटकताजी २ काइ । होइ लमी पे उदा १ शिकार र ॥ लक्ष्मी ॥ १६ ॥ केइ मारे अनाथने जी काइ । केइ मारे सज्जन । मुंडचीराइ केइ का रेजी २ काई । केइ होवे कृत्यघन ॥ लक्ष्मी ॥ १७ ॥ केइ तपसी तपतपेजी। काइ । केइ ज्ञानी गीत गाय ॥ मागता फिरे बजार में जी २ कोइ । ऊंच-IN नीच ने रीजाय ॥ लक्ष्मी ॥ १८ ॥ सुर सीपाइ मुज कारणे जी कांइ । रण-16
वे सीस ॥ नटवो नाचे डोरपेजी २ कांड। लेवण भणी वकसीस ॥ लक्ष्मी ॥ - १९ ॥ इत्यादी केइ विश्व में जी कांइ । लक्ष्मी को करे प्रयास ॥ ऐसा तो विरला होसी
जी २ कांइ । जो काटी त्रष्णा फास ॥ लक्ष्मी ॥२०॥ उनको पण में नहीं मिलूजी कांड। IM करतां क्रोड प्रकार ॥ विन प्रयत्ने तुम घरे जी २ कांइ। आइकियो प्रसार॥ लक्ष्मी॥२१IN
ठोकर में ठेलोमन जी कांइ । खरचण करो ना विचार ॥ बंदोवस्त किंचित नहीं जी २ कांइ। ले जाबे केइ गीवार ॥ लक्ष्मी ॥ २२ अपमान घणों सह्यो हमें जो काइ । आज तांइ तुज घेर ॥ हिवे मन भाग्यो म्हारो जी २ कांइ । राखी न रहूं कोई पेर ॥ लक्षी २३ ॥ अपमान स्थाने रेवतांजी कांइ । लाज आवे छे अपार ॥ चे ताव वा आइ तुम
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N भणी जी २ कांइ । कर जो कोई विचार ॥ लक्ष्मी ॥ २४ ॥ताइ काम करताथ कां जी -
कांइ । माथे न रहे आल । ऋपि अमोलख ए कही जी २ कांइ । दूजे खंड सात ढाल
॥ लक्ष्मी ॥ २५॥ ॥ दुहा ॥ सेट कहे दिन ऊगतां । ऊंडो खाडो खोदाय ॥ तिणमा | तुजने पूरस्यूँ । जिम तूं सुखथी रहाय ॥ १ ॥ खिशशाणी कमला हुइ । कहे सुण सेठ अजाण ॥ खड्डे पूरे मुज भणी । हे कचरो के पहाण ॥ २ ॥ नहीं रहूं क्रोड यत्नथी ।
१ फत्थर क्षिणेक तुज घर मांय ॥ सेठ कहे जावो सुखे । मुजने फिकर न कांय ॥ ३ ॥ सुभाग्ये संपत मिले । दू भाग्ये विरलाच ॥ो नरोला जो करे । सो आखिर पस्ताय ॥ ४ ॥ म्हारे गरज अन्न वस्त्र की। सो मिलाशां: सह साथ॥ संप धरी सुख से रहां। खरो भरोसो जग नाथ ॥ ५॥ ॥ ढाल ८ आठमी ॥ समाकित रत्नाचंतामणी ॥ यह ॥ इम बचन सुणी सेठ का । श्री सुरी रीसाइजी । किण घर जावू चिंतवे । जिहां मुज आदर थाइ जी ॥ इम ॥ १॥ प्रथम गइ । राज मेहलमें । देखे ज्ञान लगाइ जी ॥ अन्याय अकृत्य होवे घणा । लूट्या अपुत्र्या तांइ जी ॥ इम ॥ २ ॥ संग्राम में अनेका तणा । कट्टा हुया इण ठामें जी ॥ इहां रहणो जुगतो नहीं । लाग स्यूं खोटे कामे जी ॥ इम० ॥ ३॥ आगे गइ ब्राह्मण घरे । मृत्युक को धन दीठोजी॥ होमे हणे घणा प्राणी यां । खरचण
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जि० .
ने घणो चीठो जी ॥ इम ॥ ४ ॥ वाण्य घर कपट घणो। कूडा तोला ने मांपा जी खण्ड र कोडी माठे अनर्थ करे । इहां नहीं रवां आपां जी ॥ इम ॥ ५॥ कृषी घरे आरंभ ।
ला। मुज वापर नहीं जाणो जी। गहूं तणां करे कोदरा । एसंचे किम नाणो जी ॥ इन ।॥ ६ ॥ इम फिरी सह शहर में । सुख को ठाम नहीं जोयो जी ॥ - श्री सह । सदन मर्या । देवी मन नही मोयो जी ॥ इम ॥ ७॥ जैसो संए सुख धन दत्त घरे। धर्मी उदार प्रणामी जी ॥ तेसो तो अन्य घर नहीं । पाछी आइ तिण ठामाजी ॥ इम ९॥ आइ जेष्ट तनुज कने । कहे सूता के जागो जी ॥ सो कहे सूतो जागू अछं । सेठ जी को घर आगो जी ॥ इम ॥ १०॥ कमला कहे तुम पास में । आइ डूं सुख देवा जी। राखा तुम मुज रीत स्यूं। खुशी छ् हूं रहेवाजी ॥ इम ॥ ११ ॥ सेठ जी मुज राखे । | नहीं । तिण थी तुमने चेतावू जी ॥ लक्ष्मी या सह सुख हुवे । नहीं तो आगे जावू जी। | ॥ इन ॥ १२ ॥ ते कहे निकल ट्रहां थकी । बोलण को नहीं कामो जी ॥ सेठ जी | तुज निकाली दीवी । मुज ने नहीं तुज हायो ॥ इम ॥ १३ ॥ इम सुण गइ दूजा कने । ते कहे सेठ पे जावो जी ॥ मे कांइ जाणू नहीं । मुजने मती जगावो जी ॥इम।। १४ ॥ श्री कहे मुजे सेठ जी। काहाडे छे घर बारे जी ॥ मुज गया सहू दुःखीया हूसो ।
लक्ष्मी
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तुम राखो रेवू थारे जी ॥ इम ॥ १५ ॥ इम सुण क्रोधे धमधम्यो । कहे निकलतूं। वेगीरी । सेठ जी पास रही नहीं । तो महारे पास किम रहगीरी ॥ इम ॥ १६ ॥ तीजो कहे वाले मती । चौथे वाहिर कहाडी जी ॥ पांचमें गाली दी तेहने । छट्टे तेहने || ताडी ॥ इम ॥ १७ ॥ बेटे पोते पर पोतडे । मा बेटी बहू पोती जी ॥ मन देख्यो सघला तणो । सुरी सहू घर पहोंती जी ॥ इम ॥ १८ ॥ आदर किण दीधो नहीं । अपमान हुयो सहू ठामजी ॥ तव सुरी एकांत आइ ने । पस्ताइ विचारे आम जी IN इम ॥ १९॥ किहां जावू किहां रहूं । यह तो घर नहीं छूटे जी ॥ वेला पाडूं सेठ में । तब इनको मन टूटे जी ॥ इम ॥ २० ॥ इम विचारी सेठ पे | पाछी लक्ष्मी आइजी॥ ढाल आठमी अमोलखे । संप कह्यो सुखदाइ जी ॥ इम ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ कमला कहे अहो सेठ जी । जागो के सूता आप ॥ सेट कहे जागू अळू । कुण तुम काज कहो साप ॥ १ ॥ सा कहे हं लक्ष्मी अछ । सेठ कहे फिर एम ॥ रीसाइ गया हता। पाछा आया केम ॥ २ ॥ त्रीदशी कहे सेट जी । मे जावू किण पेर ॥ कहो धन संपत किण तणी । किनको हे यह घेर ॥ ३ ॥ सत्य वादी शाहाजी कहे । ऊडोकरी | विचार ॥ धनी हुइ सामग्री सौ । लक्ष्मी का सहू धार ॥ ४ ॥ निर्जरी
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जीः सु०
कहें तब कुण तजे । है सहू महारी वस्त ॥ निकलो महारा घर थकी ।खण्ड २ IN| जो चहावो परसस्त ॥ ५ ॥ ६ ॥ ढाल ९ नवमी ॥ सोमा सत्यवंती १ भलो
॥ यह०॥ इम सुणी सेठजी वाणी । ऊल्या आलास ताणीहो ॥ संपेह सुखदाइ ॥ ७ ॥ |॥ मोटा पडसालमें आया । हाक मारी सहू को बुलायाहो ॥ संघहै सुखदाइ ॥ १ ॥
णी सेठजी को सादो । शिव सहतज्यो परमादो हो ॥ संप ॥ एकेक ने ते जगावे। चलो 14 सेठ साहेब बुलावहो ॥ संप ॥ २ ॥ केइ ढक्या ने केइ नागा। निज वस्त्र लेड भागा हो IN ॥ संप ॥ केइ कडीया वालझ लीधा । सेठ पासे आया सीधाहो ॥ संप ॥ ३॥ सहु कर
जोडी बतलावे । कांइ सेठजी हुकाम फरमावे हो ॥ संप ॥ सेठकहे सुणो भाइ । यालक्ष्मी कहेछे रीसाइ हो ॥ संप ॥ ४ ॥ घर संपत सहू महारी । इणने छोडी जावो तुम वारीहो ॥ संप । सहकहे छकन जो था । लोई काम हमारो हो ॥संप ॥ ५।। सेठ क। ह गहणा सारा । उतारी न्हाख दो याराहा ॥ संप ॥ इम सुण बचन तत्काल । सहू सहु। गहणा दाया डाल हो ॥ संप ॥ ६ ॥ दबादव दूर न्हारव्या । भागा टूटा का फिकर न २६ राख्या हो ॥ संप ॥ सब लक्ष्मी पर डाले। हाथ छातीये घाव घाले हो ॥ संप ॥७॥ घ| णो आणद मनमें माने । आज आपां हुवा भगवाने हो ॥ संप ॥ घणा दिनथी बजन |||
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ली छूता । इनमें रहतो आपणो मन गुंतो ॥ संप ॥ ८ ॥ आजतो हलका थइया । स कर मनरा गइयाहो ॥ संप ॥ तीनश्वस्त्र सहूपास राख्या । वीजा वस्त्रगहणा न्हाख्या हो ॥ संप ॥ ९ ॥ तमाशो लक्ष्मी जोइ । अतीअश्चर्यं मनमें होइहो ॥ संप ॥ धनकोंसहूजन चहावे । माहों माहें सज्जन भंडावे हो ॥ संप ॥ १०॥ मा बेटी ने बहू सासू । बापबेटा लडे सगासुं हो || संप | जुदाहोवेने दरबारे जावे । मात तात जात गुरु लजावे हो ॥ प ॥ १९ ॥ शस्त्र विष आगी से मरेमारे । धनप्राणसे अधीको धारो ॥ संप ॥ इहां येही अश्चर्य मोटो । सेटहुकुमसे त्याग दीया टोटोहो | संप ॥ १२ ॥ फिरसेटजी कहेसहू तां । सहू चालो म्हारी लारांइहो | संप | सहूधनदन्त लारे थइया । घर खुल्ल छो डी बाहिर गइयाहो | संप ॥ १३ ॥ देखे नगर की सोभा । सहूका मनरह्या लोभा हो । सं प॥नवी रचना जोता जावे । पण किंचित सोग न लावेहो || संप ॥ १४॥ सहू ग्रामके वाहिर आता । तब दिनकर तेज दीखाता हो | संप | सेठ देखी सघलका मूंडा । मनफिकर| माहे पेठा ऊंडाहो ॥ संप ॥ १५ ॥ हिवणा पहर दिन आसे । सहू जणा भूखे घबरासे हो |||प || मांगसी खाबा ताइ । तब किहांथी देस्यूंहूं लाइहो ॥ संप ॥ १६ ॥ इम सोच करता जये । इतरे जलभर नालो आवेहो || संप || तेदेखी सेटजी विचारे । इहां मूंज ऊगीछे
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जि०सु०
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आपरेहो ॥ संप ॥ १७ ॥ रस्सी बट इणारी कोजे । जाइ बजारमें बेंच दीजे हो ॥संप ॥ खण्ड : तत दाम थी खाद्य बस्त लाइ । सहू बीमासां भोजन निपाइ हो ॥ संप ॥ १८ ॥ चार मोटा ने पाल वेठाला । और सघला ने इम जणाया हो ॥ संप ॥ मूंज घांस यह | तोडी लावो । सहू भाग्या घरी उमावो हो ॥ संप ॥ १९ ॥ बड वृक्ष तले ढग कीधो । | तब बताइ वटवा विधो हो । संप ॥ हाथो हाथ ते कामे लागा। सेठ जी का दुःख । भागा हा ॥ संप ॥ २० ॥ वे आग अश्चर्य कहाणी । संपथकी फले पुण्य वानी हो ॥ संप ॥ वीजे खन्डे ढाल नव भाखी । कहे अमोल संप लेवो राखी हो ॥ संप ॥ ७ ॥ दुहा ॥ असुर थकी लक्ष्ली कह । देख्या भाइ ख्याल ॥ संप इसो में अन्य घर । जो यो नहीं कोई काल ॥ १ ॥ हिवे यह घर किण ने देऊं । फिकर पड्यो अपार ॥ यक्ष कहे हूंता हव । जास्यूं मुज आगार ॥ २ ॥ आयो तस वट ऊपरे । देखी अश्चर्य पाय ।। धन दर सा परिवारल । इहा किम वेठा आय ॥ ३॥ किस्यो काम ए कर रह्या । कांइहै मन में विचार ॥ रखे लक्ष्मी चुगली करी । मुज ने करे खुबार ॥ ४ ॥ मनुष्य जात| में ठेटथी । हावे घणी करामात ॥ प्रगट हुइ चौकश करूं । तब मुज मन स्थिर आत |॥ ५॥ ७ ॥ ढाल १० दशमी ॥ रघु पति जीत्याजी ॥ यह० ॥ रूप करी मानव तणो
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जी । आयो सेठ सन्मुख ॥ किम यह कार्य आदर्या । किस्यो पड्यो छे थामें दुःख ॥ | १ ॥ संपे सुख पाया जी गई। लक्ष्मी पाया फेर ॥ संपे ॥ ७ ॥ सेठ कहे भाइ स्यूं K करां जी । जो लागे हमने भूत ॥ भूख को भूत निकल्यो मुखे । जिभ्या तोतली सुख
के सूत ॥ संपे ॥ २ ॥ वचन सुणी इम सेठका जी ।। २ कंप्यो देव ॥ डरतो कर जोडी कहे । अपराध स्यों भूत को केव ॥ संपे ॥ ३॥ राम बुद्धि वाणीया जी । मुद्रा | तेहनी जोय ॥ जाण्यो यहकोइ नृत छेजी । डर्यो आपणारी सोय ॥ संपे॥ ४ ॥कहे सेठ
जी करां किस्पो जी। लक्ष्मी गइ छे रीसाय ॥ काहाड्या घर के वारणे । हम सर्व आया। | इण ठाय ॥संपे ५॥ भूतने इणथी वांदस्यां जी । करस्या न्हाणो काम ॥ भूत कर जोडीने । कहे। मत बान्धो मज को श्वाम ॥ संपे॥ ६ ॥ कमाइ महाराहाथकी जी। बारे कोड ।। दीनार ॥ इण वड नीचे गाडी हमे । ते लेवो आप स्विकार ॥ संपे ॥ ७ ॥ सेठ कहे किहां राखां हमे जी । रहवाने नहीं ठोड ॥ लक्ष्मी फिर करसी इस्यो तो। किंहा जास्य | घर छोड ॥ संप ॥८॥ भूत कहे लक्ष्मी भणी जी० मेंमनावू लाय॥सेठ कहे इच्छा तुम तणी । म्हारेतो कुछ नहीं चहाय ।। संपे ॥९॥ शिघ्र जाइ कमला कने कहे । क्यों लगाया मुज लार ॥ इन को में किस्यो वीगा डियो । सह लेठा महारे द्वार ॥ संपे ॥ १० ॥ के
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| जावो तेह भणीं । नहीं तो कंरू इन्द्रपे पुकार || व्यर्थ सताया धर्मी भणी । जे रह्या सहू संप धार ॥ संपे ॥ ११ ॥ इम सुणी देवी कहे । तूं पहली छेडी मुज तांय ॥ खाडो खोदे और कूं तो । पडे आपही जाय || संपे ॥ १२ ॥ संप परिक्षा कारणे में । कीधा एता उपाय ॥ चालो आंपां दोनों मिली । धनदत्त ने लावां मनाय ॥ संपे ॥ १३ ॥ दोनों आया सेठ जी कने । कहे चालो आप के घेर ॥ गुन्हो माफ करो माहेरो में इम नहीं करस्यूँ फेर ॥ संपे ॥ १४ ॥ व्यंत्र अग्रह करीने कहे । धन ले जावो आपने साथ ॥ सेट कहे बजन घणो । भूत उठायो निज माथ || संपो ॥ १५ ॥ सहू परिवारे परव । देव देवी करे जय कार | मध्य बजार थी चालीया । सहू पाया अब अपार ॥ संपे ॥ १६ ॥ निज घरे आइ रह्या । तिहां लोक घणा मिल्या आय | पोता की बीतक वारता दीवी सेठ जी सहुने सुणाय ॥ संपे ॥ १७ ॥ ते सुणी सघला जणा । संप कीधो आपस माय ॥ सेठ पुण्यने कीर्ती । विस्तरी मुल्क के मांय ॥ संपे ॥ १८ ॥ ए कदा सतगुरु सा गुण । सेठ दीक्षाली सपरिवार || करणी कर स्वर्गे गया। आगे पामसी सुख अपार ॥ संपे ॥ १९ ॥ सुगुणी कह्यो द्रष्टांत सुण । सासु जेठाणी हर्षाय ॥ तीनीजणी कहे आजी | हमे राखत्वां सम्प सवाय || संपे ॥ २० ॥ सहू रहे आणंद मेंजी ।
खण्ड २
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I दूजे खंड दश ढाल ॥ अमोल संप सदा राखीये । पामो सुख संपत विशाल ॥ संपे ॥ २॥ १
॥6द्वितय खन्ड-सार ॥ कुंडलिया छंद । जब लग योत पुण्य है। तब लग संपत जाण ॥ संपत से लक्ष्मी रहे । शंका दिल मत आण ॥ संका०॥ दान पुण्य सकत्य की. जे। जिणस्युं बधे फिर पुण्य । माया सो कभी नहीं छीजे ॥ तिलोक ऋषि कहे कूप |
जल । उलचां होत सवाण॥जब० ॥इति द्वितीय स्कन्ध संप प्रबन्ध रुप समाप्तं ॥ ॐ ॐ M॥ दुहा ॥ निजानन्द नन्द नित्य । निज प्रदेश प्रतिष्ट ॥ पर परचय प्रमुक्त शिव । नमू # तेही निज इष्ट ॥ १॥ इष्ट सिद्ध करे इष्टए । इष्ट फल दातार ॥ इष्ट कथन इष्ट प्राणी
को । सुणो प्रमाद निवार ॥ २ ॥ सम सम्वेग निर्वेग ने । करुणा श्रधा पांच ॥ लक्षण समकिती जीवका । पर दुःखे निज दे आंच ॥३॥ जिनदास सुगुणी उभय । सम्यकत्व Hदोनो व्रत धर सार ॥ संप राखण निज घर विषे । किया अनेक उपचार ॥४॥ ज्वर युक्त जिम नर भणी । पये पान विष थाय ॥ तिम छेइ इर्वे भर्या । पर गुण नहीं सुहाय ॥ ५॥ घरजन स्व परजन सभी । करे दम्पतिका वखाण ॥ छेउ सुणी रीसे जले । लाग्या जाणे । वाण ॥ ६॥ एक दिन एकंत छेउं मिली । इसो करे विचार ॥ अपमान होवे दोइ तणां । इसो करो ऊपचार ॥ ७ ॥ हाँसी कर नारी कहे । थें फोकट करो बात ॥ पण
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अक्सर आया था। देखो न्हाणी करा मात ॥ ८ ॥ मनमेंला उपर खुशी | छिद्र जोता छेउं रेय ॥ लुगाइ लाय लगावणी | सुण जो चित धर तेय ॥ ९ ॥ ७ ॥ ढाल १ पहली ॥ आगा आम पधारो पुज्य ॥ यह० ॥ धर्मी तेहीज जाणो भाइ । अश्वव में संवर निपाइ ॥ आं ॥ ति अवसर तिहां अरीजय केरे । रीपुजय नाम कुँवारो ॥ अशुभोदय थी वेद नी प्रगती | कीधा बहू उपचारो ॥ धर्मी ॥ १ ॥ रोग उप संतो नहीं देखी । दाना शाणा दो चारो || राजा आगे विचारी बोले । उजलणी करो इण वारो ॥ धर्मी ॥ २ ॥ राय मानता की उजलगीरी । पुत्र ने साता जो थासे । एक दिन गाम में धूंबो न करस्यां | सहू बाहिर भवन निपासे ॥ धर्मी ॥ ३ ॥ वायसे भारे डाल ज्यों भांजे । तिम साता ने जोगे || ततक्षिण बेदना गड़ कुंवरकी । तबही भय निरोगे ॥ धर्मी ॥ ४ ॥ सांजे नगर में डूंडी पीटाई । सहूजन कल गाम बारे || अहार निपाइ वस्तु ले जाइ । जीम जो सहू परिवारे ॥ धर्मी ॥ ५ जो कोइ ग्राम में वो करसी । ते आज्ञा भंग दंड पासे ॥ इम सुण गडबड नची गाज में सहू लागा प्रयासे ॥ धर्मी ॥ ६ ॥ सोहन शाह का तीनो - पुत्र मिल | कहे तात मे इण पेरे ॥ काले सहू सगा सोइ नोथा । जिमांशां आपणे घेरे ॥ धर्मी ॥ ७ ॥ जिन दास कर जोडी बोले । पहवी सला नहीं कीजे ॥ विन कारण आरंभ
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खण्ड ३
१९ कागला
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निपजाइ । अनर्था दंड न लीजे ॥धर्मी ॥ ८ ॥ ग्राम बाहिर खेत मही में दवा त्रस जीव । घणा रेखे ॥ कीडी उदाइ मकडी मच्छर । अग्नी जोग मृत्यू लेवे ॥ धर्मी ॥ ९॥ घांस
झाड ढूंठादिक तिहां । अग्नी से अल जावे ॥ वाय जोग उपद्रव हुवे कदी । ए मुज | 12 दाय न आवे ॥ धर्मी ॥ १० ॥ सेठ कहे साची कहे भाइ । एहवो अनर्थ नहीं करस्यूं ।
जो अपणे जीमाणा होती तो । घरे कधी नोतर स्यूं । धर्मी ॥ ११ ॥ इम सुणी ती नों परजलीया । अपणों काइ नहीं चाले ॥ सेठ सेठाणी सुगणी और । जिनदास के हुकमें हाले ॥ धर्मी ॥ १२ निज २ स्थाने सहू जा सूता सुगुणी । ने स्वपनो आयो । प्रेनोरसुख हो तब ही पतीने । यथा तथ्य चेतायो ॥ धर्मी ॥ १३ जाणे आपण गया । प्रदेशे । सुख संपत घणी पाया ॥ पीछे सहू इहां निरधन थइया । फिरता आपणे घर आया ॥ धर्मी ॥१४॥ अग्रगी ओछय अपणे घरे । जेठाणीथी मेंदो पीसायो ॥ ते थाकी , मे ठोकर मारी । यो काइ स्वपनो आयो ॥ धर्मी ॥ १५ प्रितम कहे जंजाल हूं तो ।
कांइ । व्यर्थ काल न गमावो ॥ समायिक प्रतिक्रमण किजो । गाम के वाहिर जावो । K॥ धनी ॥ १६ ॥ दिन कर ऊगो ग्राम जन सहु । ले सराजाम परिवारो। वाहिर आइ | तेधारी ठाइ । खले इच्छा चारो ॥ धर्मी ॥ १७ सोहन शाह निज पुत्र बधू संग । ग्राम
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जी० स०
खण्ड ३
किया
के वाहिर आया ॥ सुख करी फासुक जागा में। माल उपकरण ठाया ॥ धर्मी ॥ १८ ॥ सुगणी तत्क्षिण गाडीसे उतरी । पूंजणी लेइ हाथो ॥ भोजन निपजावण जागा पूंजी । लस थावर टली घातो ॥ धर्मी ॥ १९ ॥ यत्ना थी पाणी छाणी ने । आटो दाल सब | जोया ॥ छाणा लकडी पूंज जमाया। ओर यत्न सह चोयो ॥ धर्मी ॥ २० ॥ जेठाण्या
धंदामें लागी । आप ने फुरसत जाणी ॥ चिन्ते घडी में रसोइ थासी । हूं स्यूं करूं - कमाणी ॥ धर्मी ॥ २१ एकांत जा करूं सामायिक । धर्म उपकारण लेइ ॥ झाड नीचे
समता धर वेठी । नित्य नियम करेइ ॥धर्मी॥२२॥ धर्मी जन अवसर पामी ने । धर्म | तणो लाभ लेवे ॥ तृतीय खन्डकी प्रथम ढाल ए। ऋषि अमोलक केवे ॥ धर्मी ॥ | २३ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ धर्म जय ऋपि तिणस में । चिन्ते मुनी संघात ॥ लोक गया गाम वाहिरे । आपण आहार किम पात ॥१॥ चालो ग्राम के वाहिरे । करशा कुछ उपदेश ॥ अहार पाणी कर आवस्या । चाल्या संत यत्नेश ॥ २ ॥ उद्याने यक्ष मंदिरे। विराज्या धर्म ध्याय ॥ भव्य गण जो हर्षीया । आवी वंद्या ऋषि पाय ॥३॥ जिनदास आदि घ
णा । वेठा समायिक ठाय ॥ परोपकारी मुनीवर । धर्मोप देश फरमाय ॥ ४ ॥ | श्लोक ॥ अनित्यानी शरीराणी। वैभवं नैव शाश्वतं । नित्यं समाहितो मृत्यूं । कृतव्यं धर्मः
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संग्रहः ॥ १ ॥ ॐ ॥ दुहा || सरीर न रहे सदा सारखो । वैभव पण विरलाय ॥ नित काल आवे ढूंकडो । धर्म कियां सुख पाय ॥ प ॥ ७ ॥ ढाल २ दूसरी ॥ उग्रसेन की लली ॥ यह॥ सुणो शाणा महारा भाइ । पाणी में लाय लगावे लुगाइ ॥ ० ॥ तिण समे बड़ा भाइ की तीनो नार । कारण उपना कहे सुगुणी ने पुकार ॥ सुणो ॥ १ ॥ | सुगुणी को पाछो नहीं मिल्यो जब ॥ जोवे द्रष्ट पसारी किहां बेठा आप || सुणो ॥ २ ॥ एकांत तरू तले धर्म करती जोय । तीनी कंकाली तब असुरत होय || सुण ॥ | ॥ ३ ॥ एतो ठकराणी सम दूर बेठी जाय । ठाकर ज्यों देवरजी बखाणरे मांय ॥ सुणो ॥ ॥ ४ ॥ हम छेऊं नोकर ज्यूं काम करां सब । जूतारे गरज पडी कांइ मतलब ॥ सुणो ॥ ॥ ५ ॥ बड वडती तीनो तब उठी रोश लाय । सेठ तीनो भाइ देखी अश्चर्य पाय ॥ सुणो ॥ ६ ॥ शरमाइ कहे रहो लोक लज्जा धार । तमाशो न करो जन हँससी अपार ॥ सुणो ॥ ७ ॥ ते कहे वे सेठ सेठाणी करे धर्म ध्यान । म्हाने कांइ मोल लाया करां इतो काम ॥ सुणो ॥ ८ ॥ बड २ ती चाली तीनू तव तीनो भाइ । रसोइ करण बेठा चुप चाप आइ ॥ सुणो ॥ ९ ॥ एकान्ते विचारे तीनो करे इस उपाय | दे राणी ने क्रोध आवे तब मजा थाय ॥ सुणो ॥ १० ॥ तीनों आइ सुगुणी पास कहेवा लागी ।
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नि० सु० एम । बाइ तूंतो बोले नहीं करे नित्य नेम ॥ सुणो ॥ ११ ॥ हमेजा सरोवर पर करस्यां । खण्ड ३
अंगोल । सुगणी कहे माला फेरी बोलस्यूंहूं बोल ॥सुणो ॥ १२ ॥ इतरे यत्ना थी करो आपस में बात । इम कही मनमें ते धर्म ध्यान ध्भात ॥ सुणो ॥ १३ ॥ क्रोध उपजावा
तीनो करे संकेत । बडी कहे बात कर्या कलेह होसी एत ॥ सुणो ॥ १४ ॥ सुगणी कहे ।। IN यतना थी सुखे करो बात । बात मांहे कलेहको कारण न दिखात ॥ सुणो ॥ १५॥
बड़ी कहे आज बाइ सुपनो आयो मुज । आंपा चारी जुदा हुवा धन बांटी गुज ॥सुणो॥ १६ ॥ देवरजीने तो बाइ कमांतां न आय । धन खोइ थोडा दिन भिख्यारी ए थाय।
॥ सुणो ॥ १७ ॥ हम धर व्याव मंडयो तेडया सहू साथ । देवर देराणी विन बोला। | यांइ आत ॥ सुणो ॥ १८॥ गरीब जाणीने मट्टी वरतन मांय । बच्यो कुच्यो अन्न याने |दियो जीमाय ॥ सुणो॥ १९ ॥ देखे सुगुणी के सामे नहीं आइ रीस । दूजी कहे अब । म्हारी कई बीतीस ॥सुणो॥२०॥ इमहीज मुज बाइ स्वपनआयो रात। फरक इतरोइ में तो न्हाख्यो उपर्यो भात ॥ सुणो ॥ २१ ॥ तिण ने ठीकरा मांही देवरजी लेय । देराणी * के साथ जील्या सुगला एय ॥ सुणो ॥ २२ ॥ तोइ पण सुगुणी ने रीस नहीं आय ॥
चीडाया सुगु गी ने तब तीजी बोली वाय ॥ सुणो ॥ २४ ॥ फाटा कपडा पेहर आया ।
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१ झ
म्हारे घर बार | दारिद्री दोन्या ने जाणी दीना ललकार || सुणो ॥ २५ ॥ ऐंठ बाडो न्हाख्यो में उकरडे जाय || भूखा मरता दोइ पडया तिणपर आय ॥ सुणो ॥ २६ ॥ चूगी ने खाया सहू तिण माहेला कण । इणपरे बाइ मेंतो देख्यो स्वपण ॥ सुणो ॥ २७ ॥ तीनो सुगणी ने जोवे द्रष्ट लगाय । किंचित रीस तस आइ न जणाय ॥ सुणो ॥ २८ ॥ तीनी कहे राणी जी खमावां तुज । साची सहू बात कही राते जे सुज ॥ सुणो ॥ २९ ॥ सुगुणी कहे रीस तणों इण में किस्मो काम । स्वपन की बात झूटी जाणीजे तसाम || सु ॥ ३० ॥ अनंत भव भ्रमण में किया ऐसा कर्म । साची थांकी बात सहू किसी इण में शर्म ॥ सुणो ॥ ३१ ॥ इत्यादी ज्ञान देइ उपजायो संतोष । ज्ञान को तो सार थेइ लाणों नहीं रोश || सुण ॥ ३२ ॥ धन्य क्षमा वंत भणी कहे इम अमोल । ढाल बीजी यत्न करो क्षमारल तोल ॥ मुणो ॥ ३३ ॥ ७ ॥ दुहा | सुगुणी ने तीनों कहे । बाइ तू बोले नाय । थने पण आयो हसे । स्वपन ते देवो सुणाय ॥ १ ॥ सुगुणी तब चित चिंतवे | स्वपनो आयो मोय ॥ जो अबी प्रगट करूं । तो कलेह निश्चय होय ॥ २ ॥ ना | कहतां अलिके लगे । तब रही मून धार । तीनों कहे हम भोली छां । श्वपन दिया उचा र ॥ ३ ॥ मनमेली तूं कपटणी । कहे न मन की बात || सुगुणी कहे श्वपन क । कले
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खण्ड ३
जी० सु
ह करस्यो मात ॥ ४ ॥ तीनों कहे सम थायरी । जो हम करां कलेश ॥ सोगन तुज भर तारका । जो श्वपन ना कहेश ॥५॥ ढाल ३ तीसरी ॥ पुज्यजी पधारो हो नगरी ह
तणी ॥ यह० ॥ नारी जात कलेह कारणी । रंग माहें करे भंग हो भाइ ॥ जो इण थी। वचके रहे। उनका सुख अभंग हो भाइ ॥ नारी ॥ १ ॥ सुगणी सोगन सांभला । मनमाहे मुर जाणी हो भाई ॥ कहे वाइजी क्षमा राखजो । हूं कहू श्वपन की कहाणी जी बा इ॥ नारी ॥ २ ॥ हम दोनुं गया पर देशमें । धर्म पसाये सुख पायाजी बाइ ॥ हवेली मोटी मे रेवता । अगरणी औछब मंडाया जी बाई ॥ नारी ॥३॥ जीमे हम घर सहूजगा । दो पीसावण काम जी बाइ ॥जोता था जवयेमिली। अशक्त भूखी ताम हो बा. इ॥ नारी ॥ ४ ॥ दाम देइ पासण भणी । बेठाइ तुम तांइ जी बाइ ॥ पण घडी खींचो नहीं। मुजने रीस तव आइ जी बाइ ॥ नारी ॥ ५॥ ठोकर मारी अजाणमें। फिर पक्का
न जीमाया जी वाइ ॥ ऐलो श्वपन आज में लयो । तेसो तुमने सुणाया जी बाइ ॥ ना Aरी ॥ ६॥ इम तीनों केकाली सांभली । क्रोधे धम २ थाइ जी बाइ ॥ विफरी हुइ।
भूतणी जीसी । मोटे साद अरडाय हो भाइ ॥ नारी ॥ ७ ॥ मोटा घरकी होय के । घणी गइ अकडाइ हो बाइ ॥ ठोकर मारण हम भणी । घरमें तूंहीज आइ जी बाइ ॥
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नारी ॥ ८॥ सुगुणी हाथ जोडी कहे । क्षमा करो मुज मांइ जी वाइ ॥ सोगनदी तो । | स्वपनो कह्यो । कलह करणो नाइ जी बाइ ॥ नारी ॥९॥ तानों कहे वस चुप रहे । तुजने घणी गुमराइ री बाइ ॥ धर्मण बजे ढोंग करे घणा । सासु सुसराने भरमाइरी बाइ॥ नारी ॥ १० ॥ इन लडाइ सांभली । लोक घणा मिल्या आइ हो बाइ । सेठ अने तीनों |बंधवा । आया तिहां दोड्याइ हो भाइ ॥ नारी ॥ ११ ॥ सुगुणी मन शरमी घणी। झाड पीछे छिप बेठी हो भाइ ॥ तीनो कंकाली भडझी लाय ज्यू । बोलेझाला देइ सेंठी हो । भाइ ॥ नारी ॥ १२ ॥ सुलरा घणी समजावइ । तीनो बात नहीं माने हो भाइ॥ ठोकर मारण हारीने । भेली न रहां कहां थानेजी वाइ ॥ नारी ॥ १३॥ जिनदास तब आवीया । लडाइ देख शरमाया नी भाइ ॥ दोष जाणी निज नारीको । रोश घणो मन लाया - जी भाइ ॥ १४ ॥ डोकरो कहे घर चालने । करस्यं धन की पांती हो वाइ ॥ जुदा करस्यू तुम भणी । इम समजाइ बहू भांती जी भाइ ॥ नारी ॥ १५ ॥ जेहर हुयो सहजीम वो। श्वान भणी बच्यो डाली हो भाइ ॥ आया तवहीं निज घरे। तीनों प्रस |तिज्ञा झाली हो भाइ ॥ नारी ॥ १६ ॥ जुदा होवां तो जीम वो। इम कही दारे वै. सी हो भाइ ॥ सोगन खावे सब जणा । तो घर में देवा पैसी हो भाइ ॥ नारी ॥
युक्ता
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जि०म०
खण्ड ३
१७ ॥ सागन खाइ डोकरे । निज स्थान के जाइ सूता जी भाइ ॥ निध्यान घरे आया सेठ जी । चिन्ता कीचमें खूता जी भाइ ॥ नारी ॥ १८॥ धन धरती थी कहाडीयो । चारी पांत्या कीधी हो भाइ ॥ निजथे थोडो रख्यो। ए धन की जग विधी जी भाइ॥ नारी ॥१९॥ खुल्लो मेली धन सहु।प्रमाद के बस पहुंता जी भाइ॥ छेउ जणा खुशी हुवा।। सवारे होसां जुदा जी भाइ ॥ नारी ॥ २० ॥ इम कलेह करे कामणी । धरमी सम भाव, राखे जी भाइ। तीजे हुल्लास ढाल तीसरी। ऋषि अमोलख दाखे जी भाइ ॥नारी ॥२१॥७॥
दुहा॥ सयन स्थान जिनदास जी।ओलंभो सुगणीने देय॥जेहर फेलायो कुटम्ब में।जाण होइने । अथेय॥१॥सुगणी बीती वारता।सर्व दीवी संभलाय ॥सोगन दिया आप का। तब कह्या में स्व ।
पनाय ॥ २ ॥ पहिली कलह करन का। तीनो कीया पञ्चखाण ॥ उन कही में खीजीनही । |सुण तस खोटी वाण ॥ ३ ॥ जिण दिन थी हूं इण घरे । कीधो छे परवेश ॥ तिण दि न थी जोइ रही । नित्य प्रत्य होय कलेश ॥ ४॥ सासू सुसरा तेह थी। आति हुवा बे-: ३३ जार । हिवे सह खुशी रहे । इसो करो को विचार ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल ४ चौथी ॥ पंड
व पांचू वंदतां ॥ यह • ॥ जिनदास कहे सांभलो । आपां दोनों सवी ने दुःख दायजी Aओगण तो नहीं आपणो । पण कर्मोदय अंतराय ॥ १ ॥भाविक जन सांभलो । धर्मी सद
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व तणो सूख चहायजी ॥ आं ॥ आंपा जो इहां थी गया । तो खुशी होशी सह साथजी॥ अपणा पुण्य अपणे संगे । वली सहायक छे जग नाथ ॥ भवि ॥ २॥ प्रदेश में जाइरेवशां । करस्यां स्वधर्मी की सेवजी ॥ क्लेश सह मिट जावसी । तीनोंहे पिताने सुख दे ।। व ॥ भवि ॥ ३ ॥ गेहणा सहू उतारीया । गुप्त धन चौडे दीयो मेल जी ॥ तीन २ वस्त्र राखीया । जावण की सोधे गेल ॥ भवि ॥ ४ ॥ मुख्य दरवाजे मावित्र है। जावान । देसी आपण तांय जी ॥ खिडकी ने बान्धी डोरडी । उतर्या दोनो तास साय ॥ भवि ॥
५॥ समी राते चालीया । फिरता गली गूंची मांय जी ॥ आया ग्राम के वाहीरे । म *नमाने मार्ग जाय ॥ भवि ॥ ६ ॥ तम जोग सूजे नहीं । कँटा कंकर लागे पाय ।
जी ॥ अथडावे पत्थर थकी। खाडा में पडे टोंचाय ॥ भवि ॥ ७॥ वनचर केइ चरा - चरकरे । सिंहादी पासे होइ जाय जी ॥ जपता श्री नवकार ने । तेह थी उपसर्ग जरा
नथाय ॥ भवि ॥ ८॥ पाछे को डर मनविषे । रखे खबर पड्या कोइ आय जी ॥ पाछा N/ले जासी पकड के । रखे क्लेश में बृद्वी थाय ॥ भवी ॥ ९ ॥ फिकर थी थाक चडयो नही। अरुणोदय थयो ताम जी । गाउ घणा उल्लंघीया । हिवे कीजे नित्य नियम काम ॥ भवि ॥ १०॥ तह तलेदोनों बेठ के । सामायिक लीवी बान्धजी ॥ प्रति क्रमण राइ।
१ अधार
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खण्ड ३
३४
तणो । कयों चित पञ्चखान विध सानध ॥ भवि ॥ ११ ॥ सगो सम्बन्धी कोनहीं । जेह , जी० म० नथी जीमावे अहार जी ॥ कोडी खरचण संग नहीं । किम मिलसी भुक्त प्रकार ॥
भाव ॥ १२ ॥ सेजेइ निपजतो दिसे । आज अपणे चौथ भक्त तप जी ॥ इम चिंती १ उपवास उपवास पञ्चखीयो। तपे असुभ कर्म जावे खप ॥ भवि ॥ १३ ॥ मोटे रस्ते चालता। कोस दो कोस लेता विश्रामजी ॥ धर्म कथा करे प्रेम थी। सांजे खेडा में कियो मुकाम
भवि ॥ १४ ॥ समायिक प्रतिक्रमणो । करी धर्म ध्यान ध्यायजी ॥ संवर करी. सूता सुखे । जागी राइ प्रतिक्रमण ठाय ॥ भवि ॥ १५ ॥ छठे आवश्य के चिंतवे । आज| न दीस धान जोगजी ॥ छठ तप सहजेही नपाजे। एह रुडो मिल्यो छे जोग ॥ भवि ॥ |१६ ॥ बेलो करी आगे चल्या । क्षुद्याथी चाल्यो नहीं जायजी ॥ छांयां मे वीसामो ले|वता । राते रह्या गमडामें आय ॥ भवि ॥ १७ ॥ तीजे दिन अठम कियो । पण चलता-KIनी ऊठे पितजी ॥ भमल आवे वेठे तिहां । चाले शांत हुयां थी चित॥भवि॥ १८ ॥ सरीता शीतल छांयडी । निहाली लियो विश्राम जी ॥ चिंते हिवे अंगुलीबेडे । याद न रहे। प्रमेष्टी नाम ॥ भवो ॥ १९ ॥ स्मरण रखवा जापको । लिया कंकर बीणी तेवार जी॥ अष्टोतरसत पोते गृह्या । पतीने दीय दोपचास चार ॥ भवि ॥ २० ॥ थोडे अंतर ग्राम
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INमें सांजे आया चाल जी ॥ शंकट अंत सुख ऊपज । इम मनमें करतां ख्याल
भवि॥२१॥ प्रयाग नामे खेड में । आया रहवाने पूछे ठामजी ॥ सहू कहे मीठी माजी घरे । थे जाइ लेवो विश्राम ॥ भवि ॥२२॥ आया मीठी माजी घरे । कहे रात। |वण देशो जाग जी ॥ डोकरी देखी हर्षी कहे । बेटा भले पधार्या धन्य भाग ॥k भवि ॥ २३ ॥ यह सहू जागा तुम तणी । सुखे रहो इणमांय जी ॥ जन भक्ती संग चालसी भाइ । बीजो साथ नहीं थाय ॥ भवि ॥२४॥ओटला उपर दंपति । बेटा होइ । खुशाल जी ॥ धर्मथी सुखी होवे ते सुणो आगे । अमोल कही चौंथी ढाल ॥ भावे ॥ २५॥ दुहा ॥ थाक और तपस्या थकी । सुगुणी गइ घबराय ॥ सयनासन तिहां कीयो । प्रतिक्रमण वक्त आय ॥ १॥ जिनदास कहे सावध हूवो । प्रतिक्रमण नित्य । नेम । करो वक्त ए जाय है । सूता हिवणा केम ॥ २ ॥ सुगुणी कहे शक्ती नहीं । जीव । घणो घबराय ॥ पति कहे दुः ख सुख में । धर्म करणों एक साय ॥३॥ तो अर्ध राज। तणी परे । पाम सो सुख श्रेय कार ॥ सुगुणी कहे अर्ध राज कुण । फरमावो विस्तार ॥४॥ नित्य नियम हयां पछे । कहस्यूं रसिक ए बात ॥ सुगुणी शिघ्र नित नेम कर।। कथा सुणन उमगात ॥ ५॥ ॥ ढाल ५ मी॥ वेकर जोडी हो वंदू भाव स्यु।।यह०॥
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जि० सु०
३५
१ शुक्ल पक्ष
का चंद्र
२ नोकर
बेकर जोडी हो सुगुणी वीनवे । कहो अर्ध राज की बात | मीठी माजी हो आ बेठी कने । जिनदास दरशात ॥ १ ॥ सुणीयो शाणा हो आलस छोडने ॥ आं ॥ रहो सुख दुःख में एकसार ॥ तो सुख पाम सो हो अर्ध राजा परे । भोडा काल मझार ॥ सुणी ॥ | २ || कुस्थल पुरथों हो अतिही सुहा मणो । तिहां रहे श्रीधर सेठ ॥ धन घर बहू लोहो नारी रूपणी । पण नहीं खूल्यो तस पेट || सुणी ॥ ३ ॥ निश दिन चिन्ता हो सेठ ने अति घणी । कीधा बहूला उपाय ॥ वृद्ववय पाया हो ईम करतां थका । तब अंतराय विरलाय ॥ सुणी ॥ ४ गर्भ तस रहीयो हो सुखे वृद्धी हुवे । डोहला सारा पूरे शाह || ठाटे पाटे हो नव मांस वही गया । जन्म्या कुँवर ओछाह ॥ सुणी ॥ ५ ॥ वि वहार साचवीहो गुण जिम नीपनो । सुखदत्त नाम तस ठाय ॥ पांच ते धायथी हो सुखे मोटो हुवे । सुक्केंद्रे चंपक की लतांय ॥ सुणी ॥ ६ ॥ अति घणो प्यारो हो तात ने मात ने। पूरे सर्व तस चहाय ॥ शांजे सेठजीं हो नित्य घोडो सजी। हवा खवाने जाय ॥ सुणी | ॥७॥ सुखदत्तने नित्य हो पास बैठावइ । शेहर मांही फिराय ॥ घणा दिन ज हो इमवी त्या तदा । लाग्यो विश्नए सवाय || सुणी ॥ ८ ॥ कोइ कारण थी हो सेठ जावे नहीं । तो सुखदत्त रोवंत ॥ एकलो जावेहो कर्म कर ने संगे । तुरी खेलावे हर्षत ॥ सुणी ॥ ९
खण्ड ३
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१ घोडा
२ चांदी
| ॥ कला बेठीहो हय फेरंण तणी । हूयो जब हूंशीयार। अशुभ उदय थी हो तात मृत्यू लही । लेणायत लागी लार ॥ सुणी ॥ १० ॥ लिल्लाम कीधो हो घर बाखर सहू । हूयो। माता को वियोग ॥ रह्यो धन लूट्यो हो मूनीम गुमास्ते । तो पण विश्वके योग ॥ सुणी ॥ ११ ॥ अश्व सजीनेहो वक्तपर नीकल्यो । लोक हँसे ताल बजाय ॥ पाछो आयो हो ले णदार लेण । घोडो तेही लेजाय ॥ सुणी ॥ १२ ॥ राते सूतो हो घुड शाले आयने || चिन्ते चित मझार ॥ तुरंग फेर्या विनहो मुज सरे नहीं । करणो कांइ विचार ॥ सुणी | ॥ १३ ॥ पासे हूंती हो हीरण की मूंदडी । प्राते बेंची बजार || रस्सी कुदाली हो मोले । लाइयो । लेइगयो बन मझार ॥ सुणी ॥ १४ ॥ तातके लाड थीहो विद्या ना भण्यो । ति |णथी भयो कठीयार ॥ नित्य ते काष्ट की हो भारी बान्धके । लावे सिरपर धार ॥ सुणी ॥ १५ ॥ आधे रुपीये हो बेंचे तेहने । पावलो खोरा के खाय ॥ पावलो लेइने हो आयोधोबी घरे । वस्त्र भाडे ठेराय ॥ सुणी ॥ १६ ॥ आनो एकज हो देइ भाडा को । सज्यो रुडो पोशाक || एक घंटाकी हो मुद्दत कर चल्यो । साथे भट तस राख ॥ सुणी ॥ १७ ॥ सरापे आइ हो गहणा भाडे लिया । एक आनो तस देय || पावज आनो हो दीधा मालीनें । फुल छोगा सज लेय ॥ सुणी ॥ १८ ॥ पइसा माहें हो पान बीडो लियो ।
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आया राय घुड शाल ॥ आनो देइ हो अश्व भाडे लीयो । साथे थयो अश्व पाल ।
खण्ड ३ जि० सु० ।। सुणी ॥ १९ ॥ अक्कड धर ने हो वेठो अश्वपर । सहू साज सजाय ॥ पूर्वं पेरे हो
आया बजार में। सहू जोवे नीघा लगाय॥ सुणी ॥२०॥ एकुण २ हो अर्ध राजा जिसा ।। रूप सिणगार सोहंत ॥ सुख दत्त नामज हो सहू भूली गया । अर्ध राज थपंत ॥ । सुणी ॥ २१ ॥ बाल पणा थी हो एहीज काम में । भयो घणो हुशार ॥ नचावे कुदा ।
वे हो थडी करावइ । लोक माह्या अपार ॥ सुणी ॥ २२ ॥ घडी भर फिरके हो माल धणी भणी । भोलावी ने दियो माल ॥ सुख थी सूतो हो आइ निज घरे । नित्य प्रत करे इम ख्याल ॥ सुणी ॥ २३ ॥ अश्व फेरण की हो जोइ चतुराइ ने । घणा मालक तु । खार ॥ अग्राह करीने हो आपे नित्य प्रते । नित्य नवौतुरी श्रेय कार ॥ सुणी ॥ २४ ॥ कोई दे वस्त्रहो ग्रहणाकोइ दे।अतर पान दकोइलाय॥ नित्य नवी रीते हो निकल सांजका ।नी ३६ त्य नवी चाल चलाय॥सुणी॥२५॥ लोकसेंदा देखा होदाखे आंगुली। यह है तेहना तुखार है। ॥ वस्त्र ग्रहणा हो यहछे अमुक का । धणी सुण हर्षे अपार ।। सुणी ॥ २६ ॥ मोली लेइ हो आवे शांजका । देइ मूडे मांग्या दाम ॥ खेंच करीने हो लेजावे बहू जणा। धरी महीमा की हाम ॥ सुणी ॥२७॥ नित्य प्रते शांजे होइम बजार में । जमें नर नारी का ठाठ॥
IN/ १ घोडा
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तुरी तंतू गेहणा हो किनका लावइ । किस्यो करे आज पाठ ॥ सुणी ॥ २८ ॥ अश्व ख.. लाता हो । निकले जन बिचे । सह कहे आया अर्धराज ॥ लुली नमन करे हो ते पण A नमें जिहां । इम काल बीत्या घणाज ॥ सुणी ॥ २९ ॥ किम फलें वाणी हो सुणीयों
लोककी । कहे ऋषि अमोल ॥ खन्ड तीजा की हो ढाल ए पांचमी । सुख दुःख रह्या, | एक तोल ॥ सुणी ॥ ३० ॥ ॥ दुहा । एक दिन सुखदत्त ते । काष्ट काज बन मांय ॥ फिरतां मुनीवर पेखीया । वंद्या प्रमें पाय ॥ १ ॥ ध्यान पार ऋषि जी वदे। कुण तुम करो किस्यों काम ॥ स्वामी हूँ छु वाणीयों । कर्मोदय थयो आम ॥ २ ॥ मुनी कहे सु| ख कारणे । दाखू एक उपाय ॥ हरी लकडी नहीं काटणी । तिण पण मानी वाय ॥३॥ लोगन लेइ चालीयो । नमिल्यो सूखो काष्ट ॥ चंदण दीठो वावनो । मनमें करे विमास ॥ ४ ॥ आलो तो नहीं काययो । पडिया लिया उठाय ॥ दांतण जैसा मूठीया। पांच । सात बन्धाय ॥ ५॥ फिर आयो ते ग्राम में । एक मुठीयो वेंच दीध ॥ कांइक दमडा। लेयने ॥ व्यालू झट पट कीध ॥ ६ ॥ फिर सिणगार आमंत्रणा । कीधी तिण घर जाय॥ सज आव कंवार जी । जित्ते सुणो जे थाय ॥ ७॥ ॥ ढाल ६ष्टी ॥ मिजवानी । की देशी ॥ पुण्य प्रगट्या बुद्ध चौखी आवे । आवे उसो जोग भिलाये हो राज ॥ Uns
HAMIRampaik
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३७
तिण अवसर लख्खी विगजारो । वो तो उतर्यो ग्राम ने बारो हो राज || सांज समय | आयो नगर जोवाने । तब ऊभा दीठा मनुष्य अपारो हो राज || पुण्य ॥ १ ॥ वृद्ध पुरुष | थी पूछे नरमाइ । कहो साची वात ए भाइ हो लाल || किम मिल ऊभा इत्ता नर नारी | दोनो वाजू टट्टी बन्धाइ हो राज || पुण्य ॥ २ ॥ सो कहे अबी आसी अर्ध राजा । अश्व खेलता सज साजा हो राज || मुजरो करण ने सहू ए ऊभा । जोवण छटा नवी आजा हो राज || पुण्य || ३ || विणजारो सुण अश्चर्य पायो । घणा जोया आखा रा| याहो राज || आधाराजा तो आजही सुणीया । देखण इत्ता नर मोहवाया हो राज || ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ तिण समय नळ कुँबर सा होइ । अर्ध राय अश्व नचाता हो राज || मध्या बजार हुइने निकल्या । सहू नर सीस नमाता हो राज || पुण्य ॥ ५ ॥ दोइकर | जोडी तेही नीचो नमे । मुजरो करे प्रण में हो राज || आया लख्खी विण जारा पासे । ते पण लुली नसे हो राज || पुण्य ॥ ३ ॥ नवो मनुष्य देखी पूछता । तुम कुण किहां रेवंता होराज ॥ किहां थी आया किहां जावो । किसो काज करता हो राज ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ देखी नर मांइ ते हर्षाइ । कहे श्वामी हूं विणजारो हो राज ॥ भद्दल पुर थकी हां आयो । कणीया पुर जावा विचारो हो राज || पुण्य ॥ ८ ॥
जि०सु०
खण्ड ३
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सुबुद्ध सुखदत्त ने तब आइ। सुणी कहे कणीया पुर राइ हो राज ॥ धर्मी काका महारे। लागे । तुम तिण पासे जाइ हो राज ॥ पुण्य ॥ ९॥ अडचण कुष्ट तणी तस सुणी में। अति दुःख मुजने थावे हो राज ॥ फुरसत नहीं मुज ने इहा क्षिण भर । मिलवा मन । वणो उपावे हो राज ॥ पुण्य ॥ १० ॥ औषधी हूं तो राखू पासे । जो कोइ मिल जावे। जोगो हो राज । आज मुभाग्ये थे आइ मिलीया । करो इत्तो काम थां जोगो हो राज ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ बावनो चंदन ए लेजावो । इन को दांतण करावो हो राज ॥ कांइ । घसीने अंग लगावो । सह रोग ने तुर्त गमावो हो राज ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ घणी २ सुख । शान्ती पूछ जो । लुली २ कीजो जवारो हो राज ॥ तात माँ पछे पल नहीं तस । इम किम मन उतार्यों हो राज ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ इहां मत पूछ जो महारी हकीगत ।।। नहीं तो दुःख थें पासो हो राज ॥ इणहीज वक्ते इणहीज जागे । मिलस्यूं थे जब आसो हो राज ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ इत्यादी सह सिखामण देइ । घोडो आगे चलायो हो । राज ॥ नायक गुण देखी हर्षाया। मोटा होइ नरम गुण सवायो हो राज ॥ पुण्य ॥ १५॥ इम चिंतब तो टांडा में आयो । मूव्यो मिश्रू थी मंडायो हो राज ॥ अम्बर का) डावा साहें राख्यो । कीधो जतन सवायो हो राज ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ वृषभ सजी ने
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खण्ड ३
तिहाथी चलीया । सह साथे हिल भिलिया हो राज ॥ सुखे २ मुकाम करता । कणिया जी० सु./पुर आइ उतरी या हो राज ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ बहू मोला भेटणां के मांहीं । चंदण ।
मूठीयो ठाइ हो राज ॥ आया नृप की कचेरी मांइ । नृपत नहीं दीठाइ हो राज ॥ पुण्य ॥ १८ ॥ प्रशन थी पूछयो विणजारे । ते कहे भूप दुःखीयारा हो राज ॥ कुष्टे । शरमावे बाहिर नहीं आवे । व्यर्थ हुवा उपचारा हो राज ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ नायक कहे ।। औषध में लायो । सचीव नरिंदपे लेजावे हो राज ॥ लुली २ ने मुजरो कीधो। भेठणो सामे ठावे हो राज ॥ पुण्य ॥ २० ॥ सत्कारी राजा बेठाया। ढाल छट्टी के मांही हो । | राज ॥ अमोल व ऋषि कहे भव्य जन । पुण्य थी वांछित थाइ हो राज ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ नायक नपने आगले । अर्धराज का गुण ॥ और कही उन कही। वरी। खुशी भयो नृप सुण ॥ १॥ दांतण चंदन को कयों। अंग लगायो लेप ॥ तत्क्षिण साता हुइ घणी । मिटीयो तन को चेप ॥ २ ॥ आणंद्या अति नरपति । सचीवा। भणी बुलाय ॥ पूछे कुण अर्ध राजवी: प्रिती राखे सवाय ॥३॥ मंत्री कहे जाणूं नहीं। नसुय्या नामन ठाम ॥ भूधर कहे प्रिति विना । कुण करे यह काम ॥४॥ मुज औषध वह कीमती । नित्य रखता निज पास । तुमतो छो सहू मतलबी । सजन भूल्या खास
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॥ ५॥ ॥ ढाल १ सतनी ।। श्री दिवार मीही प्रग सिर नासी तुम भणी In यह ॥ य प्रेम आदि आणी हे कइ पूछे नायक दया । अर्थ राजा को किस
पर १२ । नपक कहे से करने हो विमाने पर कोई ना २ जाती मातोकार ॥ २५ ॥१॥ को देश हो कोई
अ सहधी मिरे । ते लेजा। या तुम साथ ॥छाल क्षन पूछी जोहो वह पाएमा । बली अश्व ए
ओहाय ॥राय॥२॥ उस अश्व इहो कोई... बर्ग करी । बहू भू बज साज सजाय गायक मनीले काम हो माझको यो हॉस्थल तेहका र माल दीनो सह
वाय॥रायः॥३॥ शिरले त भाइ होलाइ चालमा नायक सडू नये ते तुरंग लोनो। लार ।। स्थल परत आया हो मोहबाया लिलण अर्थ राज ने चाल्या करी अश्व ।
की गरदीमाच ॥ इस माल लाला हो तिहां आया अर्थ राजा तड़ा। कांड नायक अश्व देखाय ॥राय ॥ ५॥ ऊमा पासे आइ हो नसाइ सिर नायक तदा । काइ लुली का शे प्रणाम ॥ साल ककी दावी हो वली गुण कियो औषधी तगो। तुरी सोपण लाग्यो तास ॥ ॥ ६॥ अबराय कहे माइहो नहीं चाहाई महारे एहानी । इहां सलम
Viगधा
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खण्ड ३
जि० स०ऐसा अनेक ॥ फेरण हारो मेंइहो कांइ बर्षे वारी आवे नही । नित्य लावू छू एकेका
राय ॥ ७ ॥अब कहो तुम किहां जासो हो प्रकाशो तब नायक कहे । जास्यूं भृगूकच्छ । ३९ महाराज ॥तिहां छे बन्धव म्हाराहो कांइ प्यारा मामाका डीकरा । राज से मिलजो त
हांज ॥ राय ॥ ८॥ए अश्व भेट में दीजोहो कांइ कीजो मुजरो प्रेम थी। पाछा मिल-2 जो इणही ठाम ॥ नायक हर्षित थाइ हो लेजाइ हय यत्ने करी। आयो भृगूकच्छ गाम । ॥ राग ॥ ९ ॥ मिलियो भूपथी जाइहो दर्शाइ प्रीती अर्थ राज की। दीयो अश्व भेट के माय ॥ देखी उत्तम तुरंगोहो बहू मोलाने भूषण भर्यो । दिलमें अति हर्षाय ॥१०॥ । सचीव बुलाइ पूछे हो कुण प्यारा यह अर्थ राजवी । ते कहे मुज औलख नाय ॥ अति
घणो शरमायो हो दबायो तिहां प्रधानने। फिर नायक ते फरमाय ॥ राय ॥ ११॥ हांसल माफ तुमारो हो सहू डालो माल जे राज में | लेवो टका थे इच्छ चार ॥ पाछ जातामिल जोहो । कहजो जुहार अर्थ राज को । वली भेट ले जाजो लार ॥ राय ॥ १२ ॥ मयंगल श्रेय भुटगार्यो हो । जरी झूल । रत्न की घूघरी । हेम होदो रत्न जडाब अर्ध राज को दीजोहो घणो प्रेम जणाजो माहेरो। फिर आजो इण ठाव ॥ राय ॥ १३ ॥ तेह गज गृही हर्षायो हो काइ फिर आयो कुस्थल पुरे । ऊभो तिहाइ रहाय ॥ तेन ।
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हाथी
ले तुरी नचाता हो मुलकात जन अधराजवी । फीले देख्यो नायक पास ॥ राय ॥ १४ Mनायक मुजारो करने हो कांइ हर्ष भावे कही सहू चरी । दंती भेज्यो आप काज ॥ अध राज तब बाल हा वण तोल पाडा एहवा । किसा करणा फिर घणाज ॥ राय ॥ १५॥ अब कहो किहां जावो हो । तव नायक कहे सिंहल द्विपे। छ । पारा पुर अभीराम। ॥ अर्थ राज कहे वहां का हो नृप मुज पिताका भित्र छ। तस देजो भेट ए नाम ॥ राय ॥ १६ ॥ विणजरो सीधाया हो कांइ आयो सिंहल द्विप मे। हाथी ते नृप भेट दीध ॥ रूप बुद्ध बल तांइ हो बखाणाइ घणी अर्ध राजकी। कांइ भूपत ध्यान में लीध
राय ॥ १७॥ प्रछे मंत्री तांइ हो यह कण अर्ध राजा की जीये। प्रधान कहे ओलखी नाय ॥ विन पेछाणे ऐसो हो कुण मेले मयंगल मोट को। बहु मोल गहणा पेहराय । ॥ राय ॥ १८॥ नायक पण घणी कीनी हो कांड परसंस्था अर्ध राज की ॥ कोहदीसे।
छ भाग्यवंत ॥ पद्मणी छे मुज कन्या हो कांड रूप कला गुण आगली। जो जोगी जोड N/मीलंत ॥राय ॥ १९ तो तेह ने परणाइ हो जमाइ करू घर माहेरे । वली अर्धराज।।
तस देय ॥ विणजारा ने बुलाइ हो कांइ पूछे वय रूप गुण कहो। जिम होवे निसंदेय । ॥राय ॥ २० ॥ नायक कहे वय बाले हो रसाले रूप सुहामणो । मोहन गारो राय ॥
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• सु०
२१ ॥
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नित नव वस्त्र गेणा हो हय सेणा लेइ नीकले । बहू जोवे तस मोहवाय ॥ राय ॥ खण्ड ३ | २१ ॥ एसो अश्वन चावे हो थक पावे अश्विन देवता । वली नमता घ--
णा तन मांय । बोली अमृत जैसी हो इम गुण अपार छ रायका । ए. क जीभे नहीं वरणाय ॥ राय ॥ २२ ॥ इत्यादी गुण सुणने हो मोहवायो/ सिंहल राज वी जोगी जोडी ए खुशाल ॥ परणावा मन थइयो हो कही अमोल तीजा खडकी। यह रूडी सातमी ढाल ॥ राय ॥ २३ ॥ ॥ दुहा ॥ आहो नायकजी तुम थकी । एक अछे मुज काम ॥ ते करसो तो तुम भणी । निलसी घणो इनाम ।। १॥ कोइक दाय उपाय कर । इहां लावो अर्ध राज ॥ कंन्या परणावु माहेरी । वलीदेवू ! शक्ते साज ॥ २ ॥ नायक कहे राजेश्वरू । एतो दुल्लभ काम । तिहां ते पण रायने ! व लभ घणा हे श्वास ॥३॥ तस तजी इहां आयो । कठिण घणो देखाय ॥ पण उपा य मुज शक्त सम । करस्यूअहो महा राय ॥ ४ ॥ इम कही कुछ मनुष्यले । कुस्थल घोडा पुर ते आय ॥ शांजे तिहा उभा अइ । मिलण भणी अर्ध राय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल ८N आठमी ॥ श्री जिन मुजने पार उतारो ॥ यह० ॥ देखोजी भाइ पुण्य फले अर्थ राजा-। रा । सहू की वाणी पडे है पारा ॥ देखो० ॥ आं॥ शांज समय ते अश्व नचाता ।
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अर्ध राय मध्य परिवारा || नायक पास आया देख हर्षाया । किया लुली २ ते जुहारा || देखो || १ | आदर देइ पूछे नायक से । किम है सिंहल सिरदारा ॥ गज भेट श्विकारी दीसे । कया कांइ समाचारा || देखो || २ || कर जोडी विण जारो बोले । तिहां अच्छे चेन चारा | आपको कुशल आहो निश चहावे । वली सुणो गुप्त विचारा || देखो ॥ ३ ॥ नृपकी कन्या हुइ वर जोगी । पद्मणी रूप अपारा | योग्य वर आपनेइ जाणी । घोलावे हे इणवारा || देखो ॥ ४ ॥ कोई उपाय करीने श्वामी । जरूर कीजे पधारा ॥ आयो हूं मे आस धरी ने । विनंती ये अव धारा ॥ देखो ॥ ५ ॥ कुँवर कहे मुज उपर भाइ । राय को प्रेम अपारा || ते सुणे तो कबू नहीं देवे । छूट्टी क्षिण ही लगारा ॥ देखो ॥ ६ ॥ पण तेतो मुज तात कां मंली। किम करूं हूं नाकरा || अवसर हुयो तो राते आस्यूं । थाणा डेरा मझारा ॥ देखो || 9 || नायक कहे श्वामी कोइक मिशकर । जरूर पधारो निशारा ॥ धन सैन्या को टोटो नहीं कछू । आप पुण्ये सज सारा ॥ | देखो ॥ ८ ॥ इम कही बिणजारो गयो डेरे । सुख दत्त आया आगारा ॥ भोजन करने युक्ती विचारी । चाल्या नायक द्वारा || देखो ॥ ९ ॥ तंबू देखी दोड लगाइ । पेठा डेरा मझारा ॥ नायक आदी पासे आइ । खमा २ करे सत्कारा ॥ देखो ॥ १० ॥ च
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म
रणो तो चालो इग वेला । नहीं फिर जोर नम्हारा ॥ चोकस कर नृप पीछा लेजासी।
खण्ड ३ लिन जान न देसी वारा ॥ देखो ॥ ११ ॥ नायक शिघ्र श्रेय अश्व मंगायो । तिण पर । हूया सवारा ॥ वायू वेग तेह ने दोडायो । साथ हुया परिवारा ॥ देखो ॥ १२ ॥ दि-N नोदय कोइ मोटा शहरमे। किया सहू उतारा ॥ गज घोडा रथ पायक खरीया । खरची द्रव्य अपारा॥ देखो ॥ १३ ॥ बह मोल वस्त्रा भूषण पहराया । सागेकीधा नल कुँवारा॥ सह परिवारे परवरी चाल्या । आगे मेल्या हलकारा ॥ देखो ॥ १४ ॥ सिंहस्थ सुण आणंद पाया। कराइ शैन्या तैयारा ॥ गावत बाजत सामें आया। नर नारी मि-18 ल्या अपारा ॥ देखो ॥ १५ ॥ रूप संपदा देख जमाइ की। हर्ष्या सहू नर नारा ॥ शुभ महूर्त शुभ शुकन लेइने । पेठा नगर मझारा ॥ देखो ॥ १६ ॥ मोटो मेहल । दियो उतरण को । किया वंदो वस्त सारा ॥ शुभ लग्ने कन्या परणाइ ॥ थाट पाट सिरदारा ॥ देवो ॥ १७॥ अर्थ राज और ऋद्वि घणी दीवी । कन्या दान मझारा॥ पंच इन्द्रीका सुव भोगावे । मिलीया चिंतत सारा ॥ देखो ॥ १८ ॥ एकदा शैन्य ले। गया कुस्थल पुर । मिलिया सहू परिवार ॥ सच्चा अर्ध राजा हूवा सुख दत्त । सुण पाया अश्चर्य सारा ॥ देखो ॥ १९ ॥ मरती वक्त सहू राज सिंहल नृप । दीधो हर्ष अ-d
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पारा ॥ धर्म पसाये सह सुख पाया । धर्म बधायो ते वारा ॥ देखो ॥ २० ॥ अवसरे । दिक्षाले स्वर्ग पहुंता । वरसे आगे शिवदारा ॥ ढाल आठमी तीजा खंडकी । अमोल करी उचारा ॥ देखो ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ जिनदास कहे सुगुणीने । इम सुख दुःखे: एक सार ॥ धर्म करणी करे जिका । ते पामे सुख सार ॥ १॥ मीठी माजी सुण कथा । हर्षायो घणो चित ॥ आहा धर्मी जोडलो । छो तुम पर्म पवित ॥ २ ॥ मधुर । यणे जिनदास तब । पूछे माजी से एम ॥ है जी शेहर कोइ ढूंकडो । जिहां पावां हम। सम ॥३॥ डोसी कहे तीन कोस पर । पोलास पुर भभिराम ॥ लोक सहू सुखीया पसे । धर्मी उदार प्रणाम ॥४॥इम सुणी शांती हड । निज २ स्थाने सोय ॥ निद्रा माइ तत् क्षिणे । हिवे पुण्य प्रगट होय ॥ ५॥ ॥ ढाल ९ नवमी ॥ जात्रिडा जाला निन्याणू करीयेरे॥यह०॥ धर्मी जन धर्म थकी सुख पावे जी।दुःख संकट सहू विर लावे ॥ धर्मी० ॥ ७० ॥ तिण अवसर अंतलिख मांइ जी । कवड यक्ष देवी संग | आकाश जाइ जी । समद्रष्टी धर्मी ने सुख दाइ ॥ धर्मी ॥ १ ॥ मीठी माजी का घर पर आपो जी। तब योन स्थंभी तिहां रहायो जी । तब असुर दिल घबरायो ॥ धर्मी ॥ २॥k उही नाण लगाइ देखे जी । धर्मी दंपती सूता पेखे जी । पडया संकटे तपेतन सेके ॥2
२ बीमा
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जी.सु.
गर्मी ॥ ३ ॥ पर सुख देवा घर छोडी आया जी । संग खरचण कवडी न लाया जी। खण्ट पष्टम तपे आज रहाया ॥ धर्मी ॥ ४ ॥ ऐसा नर ने साता उपजावे जी। तो बहू पुण्य ! ही थावे जी । इस धारी उपयोग लगावे ॥धर्मी॥५॥ दोसो सोले कंकर हरीया नी।। हू माल रत्ना तिहां धरीयाजी। यक्ष आगे मार्ग संचरीया ॥धर्मी॥६॥प्रतिक्रमण बेला आइ जी। तब दंपती जाग्रत थाइजीनित्य नियम करी समाइ॥धर्मी॥७॥ कंकर पल्ले बान्धीलीधा भी। प्रति क्रमण शुद्ध चित कीधाजी। पारी समायिक चलण चित दीधा ॥ धर्म ॥ माजीने जागा भोलाइ जी । पालास पूरके मार्गे जाइजी । ग्राम बाहिर बसिामा लीधा । इ॥ धर्मी ॥ ९ ॥ बुढी जागा झाडन आइजी । रत्न पड्यो दीठो तिण ठाइजी । ते चिं ते धर्मी भूल्याइ ॥ धर्मी ॥ १० ॥ लेइ रत्न ने भागी लारेजी । देखी ऊभीरही हेला मारंजी । ते सुणी चमक्या तिणवारे ॥ धर्मी ॥ ११ ॥ अरे मांजी क्यों भग आइ जी । ४२ काइ खोवा यो इणरो देखाइ जी । रखे चोरी सिर पर ठाइ ॥ धर्मी ॥१२॥ पण आपण । काइ न लीधो जी । इम चितने स्थिर तब कीधो जी । देखा होवे हे कांइ बीधो । धर्मी ॥ १३ ॥ इतरे डोसी नेडी आइ जी। पूछे तुम तिहां कांइ भूल्याइ जी । माल लेवो संभाली भाइ ॥ धर्मी ॥ १४ ॥ जिनदास के पास हमारे जी । भूलवा को नहीं
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छे लगारेजी । किम थे आया माजी लारे ॥ धर्मी ॥ १५ ॥ वृधिका तत्र रत्न बतायो जी । एमुज आंगण में पायोजी । तुम सूता हूंता ते ठायो ॥ धर्मी ॥ १६ ॥ सुगुणी कं कर गांठ संभ लीजी । सहू झग मग रत्न ने भालीजी । कहे पति भणी तात्काली ॥ धर्मी ॥ १७ ॥ धर्म पसाय जोवो श्वामी जी । हुया कंकर का रत्न नामीजी || पति जोवे अ श्चर्य पामी ॥ धर्म ॥ १८ ॥ दोले पन्दरे गिज्या ते साराजी । कहे मांजीसे रत्न यहाम्हारा जी । भुल थी रहीं गया था लारा ॥ धर्मी ॥ १९ ॥ तेदियारत्न तब माजी जो । दंपजी थषा अति राजी जी । अब कमी रही कछू नाजी ॥ धर्मी ॥ २० ॥ द्रव्य तिहां सर्व थावेजी ।" वली शहर ए नेडो आवेजी । अब क्यों ते तन ने सतावे । धर्मी ॥ २१ ॥ माजी अवभे | तिहां ठाडीजी। पूछे जिनदास मिलसी को गाडीजी । हमने देवे शेहर पहोंचाडी ॥ ध मी ॥ २२ ॥ धन देखी डोसा के जी । भाइ हम घर क्यों नहीं रेवेजी । चाहाने सो क्यों नहीं लेवे ॥ धर्मी ॥ २१ ॥ विंते पारणो करीने जास्यांजी । विडां तो इहां सुख पास्यां जी । माजी ने साता उपज्ञास्यां ॥ धर्मी ॥ २४ ॥ इम विचारी तत्क्षण फिरीया। जी। मोठी मांजी के घर उतरीया जी। अंतरका कलेजा ठरीया ॥ धर्मी ॥ २५ ॥ पारणा, को साज मंगायो जी । माजी दियो जो तस वायोजी । सुगणी तब अहार निपायो ||
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जि. सु.
जा
धर्मी ॥ २६ ॥ ढाल नौमी में सुख लीनोजी । सुखे अठम पारणो कीनोजी । सत्य स खण्ड ३ हायी अमोल सीनो ॥ धर्मी ॥ २७ ॥ ॐ ॥ दुहा ॥ नरम बीछोणे दंपति । सूता सुः ।। १ तेला | खे ते दोय ॥ डोसी प्रेम आइ कहे । घर की वीती रोय ॥ १॥ पहिली महारा घर विध
। धन कुटम्ब थो अपार ॥ पति पुत्र चउ बहु मरी । रही इकेली निराधार ॥ २N ॥ वृद्ध वये तन ए थवयो । होवे नहीं कुछ काम ॥ एसंपत सहू तुम तणी । मुज को हो विश्राम ॥३॥ जिनदास कहे मातजी । इण खेडा के मांय ॥ सूहावे नहीं मुजभणा । धर्म ध्यान नहीं थाय ॥ ४ ॥ तेह थीपुर पोलांसमें । रहां जोगस्थान जाय ॥ आप पण साथ चलो । सेवा करस्यूं आय ॥ ५॥ ७ ॥ ढाल १० दशमी ॥ नेणा निहाले । | हो राणी देवक जी ॥ यह० ॥ धर्म किया थी हो सुख पावे जीवडो जी । जगे एक
धर्म आधार ॥ धर्मथकी हो सह आसा फले जी । धर्म नर तन सिणगार ॥ धर्म ॥१॥ AN दूजे दिन ते धर्मी दंपती जी । गाडी भाडे जी कीध ॥ माजीने कहे चालो हम संगे जी।
करसा सेवा साविध ॥ धर्म ॥ २ ॥ बृधा कहे छे जी एह घर छोडने जी। मुज ने किहा ।। न सुहाय ॥ सार कीजो थे जोइ अवसरे जी । बोलावू तब तुमतांय ॥धर्म॥ ३॥ मान्या बचन ए निजदास जी तदा जी। देवे एक रत्न तिण तांय ॥ डोसी कहे इणने में भाइ
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किस्यो करूं जी । धन घणो मुज घर मांय । ॥ धर्म ॥ ४ ॥ जबर दस्ते ते देइ मांजी ने जी । चाल्या कर प्रणाम || आया पोलासपुर नगरी के विषे जी । रहवाने जोवेजा ठा ॥ धर्म ॥ ५ ॥ तिण अवसर तिण नगरी ने बिषे जी । धनेंद्र सेठ सिरदार ॥ अशुभ कर्मोदय दीवालो काहाडीयो जी । लिल्लाम होवे तस माल ॥ धर्म ॥ ६ ॥ हवेली पंच खन्डी मध्य बाजारमे जी । निरारंभी सारी ते देख || ऊभा रही ने मोल पूछे तदाजी | कामे ती कहे तस पेख || धर्म ॥ ७ ॥ वसु कोटी धन दे जो इहां राज ने जी । तिणने मकान ने माल || सहू संपत ए देवे सेठ की जी। जिनदास सुणी एह सवाल || धर्म ॥ ८ ॥ आठ रतन कहाड दीना सचीवने जी । लीनो पट्टो लिखाय ॥ अखूट द्रव्ये देख परदेशी सेठपे जी । अश्चर्य पाया सवाय ॥ धर्म ॥ ९ ॥ सर्व सामग्री | सहित सीधो मिल्यो जी । सुखदा मकान पुण्य जोग || जिम जावे कोइ पोताका घर विषे जी । तिम रह्या तिहां सुख भोग ॥ धर्म ॥ १० ॥ गादी तकीया लग्या या दुकान ये जी । तिहां विराज्या आय । मुनीम गुमस्ता रख्या पहिली तणाजी । साल करी ने
॥
वाय ॥ धर्म ॥ ११ ॥ फक्त पलट्यो एक नाम दुकान को जी । और सहू पुर्बळी पेर ॥ धर्म नीती संच काम चलावीयो जी । धनकी कमी नहीं घेर ॥ धर्म ॥ १२ ॥ चौकस
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जी० स०
४४
कराइ तिहां मुनाराज की जी । सहू साथ वंदन जाय ॥ देशना सुण फिर आइ भोजन के खण्ड ३ कियो जी । इम नित्य धर्म बढाय ॥ धर्म ॥ १३ ॥ चउदे प्रकार की दानकी जे वस्तु जी। सूजती रखे सदा गेह ॥ संत सती भणी उलट प्रणाम थी जी । वेहरावे अधिकार स्नेह ॥धर्म॥१४॥साज सा धर्मीने देइ करीजी। धर्म बृद्धी कराय। उन्नती करे ते जैन धरमा तणाजी । पोषे अनाथ के तांय ॥ धर्म ॥ १५ ॥धनवंतानेवली दानेश्वरीजी । दानेकीती फेलाय ॥मानीता हूया ग्राम ने राजमेजः । दिल उदार पसाय ॥ धर्म ॥ १६ ॥ पं. च इन्द्री सुख पुण्य थी भोगवेजी । एकदा सुख सेज मांय ॥ सुगणी सूती स्वन अबलोकीयोजी। उपनो पुण्यवंत आय ॥ धर्म ॥ ११ ॥ तीजे मांसे डोहलो उपनाजी IN कीजे धर्म ने दान ॥ सात में मासे रूढ़ी जक्त कीजी । अग्रणी ओछव मंडाण ॥ धर्म ॥ १८॥ चउविध अहार नित्य सा धर्मानजी । अनाथ भणी जीमाय ॥ दुःखीया पोषे तो ४४ कुटंबनेजी। दिन २ सूकृत्य बढाय ॥ धर्म ॥ १९ ॥ जे धर्म पसाय ते सुख पाइयाजीAN तेहने क्योंनी दीपाय ॥ उत्तम लक्षणे उत्तम वृतता जी । तेही जगमें पुजाय ॥ धर्म ॥ २० ॥ तीसरे खन्डे ढाल दशमी विष जी । धर्मी पाया आराम ॥ अमोलख ऋषि कह। सणो भवी जना जो । करे धर्म उन्नती काम ॥ धर्म ॥ २१॥ ७ ॥ तृतीय खन्ड सारांस
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छपय छंद ॥ सत्यवंत दूजा भणी सुखदे सुख पावे । धर्मवंत नर तणा दुःख संकट विर। लावे । तप जप ने सु पसाय देवता सानिध थावे । दान पुण्य पसाय अखंड कीर्ती फे । लावे । सत्य धर्म तप दान थी। प्रत्यक्ष सुख संपत लही। अमोल जिनदास सुगुणी चरी ज्ञान द्रष्ट देखो सही ॥ १ ॥ इति तृतीय स्कन्ध सत्य प्रवृन्ध रूप समाप्त ॥ ३ ॥
N॥ दुहा ॥ वर विमल वितराग बिभू । निराकार अबीकार ॥ शाश्वत स्थल शिव अचल ।
तास चरण नमस्कार ॥१॥ गुरू प्रकाशक ज्ञानका । भसक सत्या सत्य ॥ विनाशक । मिथ्या तिमर । दाता सत्य ने पथ्य ॥ २॥ आराधी गुरू वयण ने। तिरीया जीव संसार
जिनदास सुगुणी परे । दोनों भव जय कार ॥३॥ चउ विह धर्मते विषे । दान, कह्यो प्रधान ॥ अवसरे लाभ जे आदरे । तेह ने सुख सह स्थान ॥ ४ ॥ दान धर्म करतां थकां । जो देवे अंतराय ॥ ते छेउं प्राणी परे । सुख किहां नहीं पाय॥ ५ ॥ पुण्य की बान्धी लक्ष्मी । पुण्यवंत साथे जाय ॥ पापी पाप उदय करी । सुख किहां थी पाय ॥ ६॥ तेही महेंद्रपुर नगर में । सेठ सोहन शाह घेर ॥ छेउं सयन भवन विषे । निशा समय करे लेहर ॥ ७॥ शावासी देवे नारीने । तुम में बुद्व सवाय ॥ अवसर जोइ कल
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जिमकरी । जिम सहू मानी वाय ॥ ८॥ सुणी वयण निज कंथ का । नारी मन फूलाय ॥ खण्ड ?
हिवे यह सुखाया किम हुवे । सुणो ते चित लगाय ॥ ९ ॥ ॥ ढालं १ पहिली ॥ ४५ मुक्ती को मार्ग दोही लो ॥ यह ॥ पुण्या संयोगे लक्ष्मी मिले । पापी जोगे विर
लाय ॥ पस्तायां कांइ थाय । समता थी सुख पाय । पुण्य ॥ ७ ॥ छेउं जीवा को जुदा होण की । चट पटी मन मांय ॥ लागी नींद आवे नहीं । दोडी तात ढिग आय ॥
पुण्य ॥१॥जोइ जावे धन ने वांटता । तिम २ खुशीघणा पाय॥ निशा पूरी इम ते करी । I तब अरुणोदय थाय ॥ पुण्य ॥ २ ॥ संकेत कर छही मिली । आया सोहन शाह पास ॥ कहे लावो पांती हमतणी । देरे होसे विणास ॥ पुण्य ॥३॥ हिशाब पण देखाडीये । कियो सम विभाग ॥ आप पास कित्तो राखीयो । किणपर तुम अनुराग ॥ ४५ पुण्य ॥ ४ ॥ सेठ कहे उतावल न कीजीये । आवा देवो जिनदास ॥ बरोबर पांती करी रखी । लीजो थें। तपास ॥ पुण्य ॥ ५॥ तीनू कहे ते आलसी । अने फिकर न काय ॥ लाजन आवे इत्तो दिन चड्यो । अभी मानी आयो नांय ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ सेठ । कहे लावो जाय ने । तीनी बड २ ता जाय ॥ किमाड लागा देखी करी । मन रीस अती। लाय ॥ पुण्य ॥ ७॥ हलके बचन मारे हाक ते । पाछा न आयो जबाप ॥ देखो नींद
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निर्लज्ज की। सूत्तो वणी नबाव ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ पाट छिद्र जोवे तदा । मां कोइ नदे वाय ॥ वशिखुल्ली देखी लारली । वेमन मांही आय ॥ ९ ॥ उखाडी कींवाड मायें, गयां । जोवे सेजउपर ॥ भूषण वस्त्र नाणा धर्या । चिन्ते गया किणर ॥ पुण्य ॥ १० ॥ खिडकी ने जोइ डोरिबांधी। गया इहां थी उतर ॥ तीनों जणा खुशी हुवा | टाल्यो सर्व फीकर ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ धनभूषण सब लेय ने । आयापिता के पास ॥ कहे सेजे आप कटी गयो । संभालो ए धनरास ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ धस्की पूछे सेठ स्युं हुवो क्यों नही आयो नान्यो एथ ॥ ते कहे तेतो दोइ जणा । भागी गया केथ ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ इम सुण सेठाणी सेठजी । पड्या धरणीये मुरछाय ॥ जलविना जलचर पेर । तडफीम) र्या क्षिण मांय ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ छेउं जणा इम देखके । घबराया अपार । लास दोइ काहाडी वाहीरे । सहू गहणा उतार ॥ पुण्य ॥ १५॥ कोटडी मांहे न्हाकी करी । दीयो तालो लगाय ॥ लोक, देखावू रूदन करे । परिवार दोडी आय ॥ पुन्य ॥ १६ ॥ पूछे तीनों थी तदा । एका एक थ्यो किम ।। जिनदास पण दीसे नही। कर्यो किसो तुम इम ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ तीनो रोता इम कहे। जिनदास लाडीसाथ ॥ रातरा किहां निकली गया। पत्तो लाग्यो ने ही तास ॥ पुण्य ॥ १८॥ इमज णी डोकरा डोकरी। पडया मुरछा खाय ॥ क्षिणक मांय मरी गया । करां किस्यो उपाय ॥ पुण्य ॥
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खण्ड
जी. सु.
१९॥ कालकी वीती बातडी। जाण ताथा सौ काय॥धिकारी कहे तेहने। अब हंसो, किमरोय॥
पुण्य ॥२०॥ हाथका किया कर्मडा दोष। देवे किण ताय॥अबछेउंसुखिया भया। निज इच्छा। ४६ रहो भाय ॥पुण्य॥२१॥काहाड्या धर्मी जीवने।सदाकरी तिणयाखार ॥मावित्रने संतापीने
आखिर न्हाख्या मार ॥ पुण्य ॥ २२ ॥ खाया विना रेवे कदा। कह्या विन न रहवाय ॥ INपहिली ढाल चाथा खान्ड की। ऋषि अमोलख गाय ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ ॥ दुहा ॥ सN
जन पुरजन मिलकरी । मृत्यू कारज कीध ॥छे लाग्या इण गडबडे । देखो कर्म की विधा
१॥ सेठजी की ओरडी तण । बाहिर तालो लगाय ॥ वारी पिछली नहींजडी । लाग्या ।
जगरुढमांय ॥ २ ॥ गली मार्ग को चालतो । धन पडियो तिहां जोय ॥ राते आइ लेगया। 11 खबर पडी नहीं कोय ॥ ३ ॥ तीन बन्धव चित चिंतवे । धन घणो अपणे पास ॥ पां
ती को झगडा हुवो। तिणथी एक विमास ॥ ४ ॥ पहिले औसर मावित्र को । करां खूबा ठाट पाट ॥ कलंक उत्तारी आपणो । फिर धन लेस्या बांट ॥ ५॥ॐ ॥ ढाल२दूसरी॥ भूलो मन भमरा काइ भन्यो । यह० ॥ कर्म तणी गत बांकडी । बुद्ध कर्म जिसी आवे । ॥ सोच विचारी न करे । ते पाछे पस्तावे ॥ कर्म ॥ १॥ मिथ्या भिमाने फूलीया । तब तीनों भ्रात ॥ उदारो माल घणो लाइने । भाजन निप जात ॥ कर्म ॥२ ॥ जीमाया
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परिवार ने । लाहणी वली दीध ॥ दीधो जो सह लेगया । पर संरया कीध ॥ वर्म । ३ ॥ नगर सेठ रख्या घणा । धूया जमाइ अंतराय ॥ पण धर्म ज्ञाने करी । रह्या समता लाय ॥ कर्म॥४॥सोग थकी निवेत हाधन बेंचन काम ॥ उमाया तीनो आय ने। कोटडी खोली जाम ॥ वर्म ॥ ५॥ बारी खुली दीठी तदा । मन में (ड्यो वैम ॥ धन बस्त्र द्रष्टे ना पाया ।खोयो चिन्तीत खेम ॥ कर्म ॥ ६ ॥ धसको पडयो तब पेट में तन हुयो बलहीन ॥ ८ड्या धरणी भींत आसरे। मुख हया तस दीन ॥ वर्म ॥ ७॥ ने.IN णाथी नार वही रह्यो । किण थी कहो नहीं जाय ॥ हाथे विधा वर्म ते । दोष किण |परठाय ॥ कर्म ॥ ८॥ उदारो माल लाय ने दियो सगा ने । खवाय ॥ जब मुहता। |पुरी हुइ । ऊभा लेणायत आय ॥ कर्म ॥ ९ ॥ देवण को दमडी नहीं । नरमाइ नहीं अंग ॥ उलट लड्या लेणदार थी । कर्मे बुद्धि हुइ भंग ॥ कर्म ॥ १० ॥ अर्ज करी दरवार में । कामेती आय ॥ लिल्लाम करी हवेली ने । रह्यो धन छुडाय ॥ कर्म ॥ ११ ॥ लेणायत धन वांट के। ले गया निज स्थान ॥ निराधार छेउं भया । जोवो कर्म का। काम ॥ कर्म ॥ १२ ॥ जिहां २ जाइ ऊभा रहे । तिहां २ पावे धिक्कार ॥ यां धर्मी ने सताविया । न्हारख्या मा वाप मार ॥ कर्म ॥ १३ ॥ कोइ ऊभा राखे नहीं । कहे मत
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त्रिसु
४७
देखो मुख ॥ महा पातकी यह मानवी । संगे पाम सो दुःख || कर्म ॥ १४ ॥ रहवाने जागा नहीं । खाने को नहीं अन्न ॥ वस्त्र पण जीरण रह्या । अपकीर्ती थी खिन्न || कर्म ॥ १५ ॥ घबराया घृणा दुःख थी। सूजे न उपाय || दुःखी हुइ नरम पडचा || पण दया कीने आय ॥ कर्म ॥ १६ ॥ एक दिन छेड़ सला करे । भाइ इहां न रहवाय ॥ देश चोरी थी परदेश की । भीख भली कहवाय ॥ कर्म ॥ १७ ॥ परदेश चाल्या छेउं । वाटे मिलीया चोर ॥ वस्त्र लुंट नागा किया | मार मारी कठोर ॥ कर्म ॥ १८ ॥ पता थी तन ढांक के । आया गामडा मांया ॥ भीख मांगी भागा फटा । वस्त्र मंगी पहर्याय ॥ कर्म ॥ १९ ॥ नोकर रहे कि घरे । कर्म टिकण दे नाथ ॥ इम ग्रामानु ग्रामे फिरे । कदी मांग के खाय ॥ कर्म ॥ २० ॥ कर्म पलट्या पलटे स्हू । देश के परदेश || दूजी ढाल अमोलिक कहे । पुण्ये सुख विशेष || कर्म ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा ॥ इम फिरतां मही मंडले । पोलास पुरते आय ॥ शेहर मोटो देखी करी । छेउं जणां हर्षाय ॥ १ ॥ इण स्थान उपजीविका । सुखे होती देखाय ॥ भूखा छां दिन तनिका । आज तो लास्यां | कमाय ॥ २ ॥ नार्या कहे फिरवा तणी । हम में शक्ती नाय ॥ इम बातां करतां थका मध्य बजारे आय || ३ || हवेली जिनदास की । देखी कहे भरतार || तुम तीनों बेठो
रुण्ठ
2.9
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इहां । छांया छे सुखकार ॥ ४ ॥ कोइ काम कर ग्राम में। लास्या खान ने पान ॥ अठेइ । आ जीमस्यां । तुम मत छोड जो स्थान ॥ ५॥ इम कही तीनी गया । नायाँ चिन्ते । मन ॥ निवरी आंपा बेठी इहां । किरयो करां यतन्न ॥ ६॥ कोइ काम भोला वइ.
तो करी मेला अन्न ॥ हिवे सज्जन मेलो हुवे । ते सुणी जो सहू जन ॥ ७ ॥ ७ ॥ ढाल || तीसरी ॥ कुमार अभय बुद्धनो भंडारी ॥ यह ॥ पुण्यवंत की संगत सुख दाइ । बच
न पार पहोंचोव पुण्य वंत, कोइ वक्त भाइ ॥ ७ ॥ तिण अवसर तिणही हवेलीमे । अ गरणी औछब थाइ ॥ न्यात जिमावा मेंदो करवा । गहुंने पीसाइ ॥ पुण्य ॥ १॥ पीसण | हारीको जोग नहीं। तवादासी कहे आइ ॥ सुगणी गोखथी जोवे बजार । तीनों देखाइ॥ पुण्य ॥ २ ॥ दासीने भेजी पूछ इणन । देदाम जेचहाइ ॥ कम करसो पूछो जाइ तिणने ।
। तेसुण खुशी थाइ ॥ पुण्य ॥ ३॥ उपरला पोसण बेठाइ । भाज्या गहू तांइ॥ घही शी Hघ खिंचे नहीं तिणसे । थाकने निवलाइ ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ सुगणी ऊठ तिण पासे आइ। N जोवे घट्टी ताइ ॥ वार घणीने पास्यो थोडो । देखी रीसाइ ॥ पुण्. ॥ ५॥ ठोकर मारी
कह दबाकर। लसो दमडाइ ॥ काम अधरो मेली जावा । हे मनमां काइ ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ कर जोडी रमाइ तानी । कहे करो क्षम्याइ । तीन दिनाकी हम छां भूखा । सुगुणी।
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जीसु.
दया लाइ ॥ पुण्य ॥ ७॥ दासी पासे आहार मंगाइ । तिणने जी माइ॥ कहे कमी खण्ड । कुछ नहीं इण घर में । धापी जीमो वाइ ॥ पुण्य ॥ ८॥ हीडोले बेठी जा सुगुणी । चिन्ते मन माइ ॥ स्वपन प्रमाणे बात वणी पण । यह दुःखी कुण आइ ॥ पुण्य ॥९॥
बोली सूर्त जेठाणी सरखी । पण ते किम थाइ ॥ टोटो नहीं सासरा में किंचित । ए। LIदुःख किम पाइ ॥ पुण्य ॥ १० ॥ तीनी जीमती सुगुणी सामे । जोवे टुक लाइ ॥ बोली
चाली रूपने लटको । देराणी सो बाइ ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ छानी बातां करती देखी। सुगणी पास आइ ॥ मुज देखी किसी बात करो । कहो जे तुम मन मांइ ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ ते नरमीने नेणा नीर लाइ । इणपर दरसाइ ॥ भाग्यवती देराणी म्हाणी। होती तुम सांइ ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ फिर सुगुणी पूछे तिण सेती । ते किहां हिवणांइ ॥ तीनो ४८ कहे हम पापणी दुःख थी। गया प्रदेश मांइ ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ तेतो कोडी साथ न लेगया । हीणा भाग्य म्हाणाइ ॥ तिण पाछल सह धन गयो। ह्मणी यह दीशा थाइ ॥K पुण्य ॥ १५ तास वियोगे सासू सुसरा । मरगया धस्काइ ॥ इम सुणी सुगुणी के नेणा। पाणी वरषाइ ॥ पुण्य ॥ १६ ॥ तीनों नारी देख ए रचन ॥ निश्चय मन थाइ ॥ यह सेठाणी अपणी देराणी।वै मन इण मांइ ॥ पुण्य ॥ १७॥ सुगुणी तक्षिण पारे लागी।
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तीनी हाथ जोडया ॥ अहो वाई अपराध खेमो तुम । दुःख घणा दानाइ ॥ पुण्य ॥ | १८ ॥ तुमतो दोनों को भाग्यवंता । कमी कछू नाहीं ॥ पगले २ नवनिध थांके । स्वपन । फल्या ह्यांइ ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ सुगुणी कहे थांके प्रशादे । संपत यह पाइ ॥ सास सुसरा को विजोग सुणी मुज। अंतर चीराइ ॥ पुण्य ॥ २० ॥ होणहार हुयो जो होणो । अब, चिन्ता न कांइ ॥ढाल तीसरी कहे अमोलख । अब पुण्य फल्याइ॥ पुण्य॥२१॥७॥ दुहा ॥ । दासीरचना ए देखके । मनमें अश्चर्य लाय॥ दोड गइ जिनदास पे। कानमें बात चेताय ॥ | १ ॥ तीन नारी नवी आइ को । बाइजीने भरमाय ॥ कने बेठ रोवेचहूं । सुण जिनदास । तीहां आय ॥ २ ॥ देवर आया देखके । हर्षी आदरे बतलाय ॥ भोजायां ने ओलखा। पूछे भाइ किहांय ॥ ३ ॥ ते कहे गया बजारमें । उद्र पूर्ण के काज ॥ हमने नीचे बेठाय के । तीनों गया पुर मांय ॥ ४ ॥ जिनदास कहे इण अबसरे । गडबड करणी नाय ॥युक्त -मा स्यूं हूं सह । राखणी लोक लज्जाय ॥५॥७॥ ढाल ४ चौथी ॥जय २ जिन त्रिभुवन धणी ॥यह०॥ पुण्य थकी सुख पामीये। पुण्य ऊचो जीवने लाय ॥ संगत भली पुण्य थामिले। होवेसह भणी सहाय॥ पुण्य ॥१॥ तिण असर तीनों जणां। फिरीया ग्राम के माय ॥ काम कहां मिलीयो नहीं। रीता फिर तिहां आय॥पुण्य॥२॥ लुगायां दीठी नहीं। घबराया ते वार॥
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जि सु
४९
इत उत पूंछता फिरे। तब जिनदास पुकार ॥ पुण्य ॥ ३ ॥ लेगया पीछे बाडामे | कहे दे खाडूं नार । पहिला उतपत कहो थांयरी । ते सुण शरम्या अपार ॥ पुण्य ॥ ४ ॥ छेउ जिनदास का मुख भणी । देखे वारंवार ॥ दीसे लघु बन्धव सारीखे । पण ए श्रेष्टी सिरदार ॥ पुण्य ॥ ५ ॥ शरम्या घणा केवे नहीं । रह्या मन में मुरजाय ॥ नरमाइ कहे हम नार नि । शिघ्र देवो बताय ॥ पुण्य ॥ ६ ॥ पग प्रणमी जिनदास कहे । हूं जिनदास तुम भ्रात ॥ थोडा दिन में भूली गया । किहां मात ने तात ॥ पुण्य ॥ ७ ॥ नयनाभूत तीनों हू । कहे अवगुणी हम तीन ॥ तुमको दुःख दीयो घणो । तुम ठेट थी प्रवीन ॥ पुण्य ॥ ८ ॥ तुम वियोगे मात तात जी । मर्या तिणहीज वार ॥ धन सहू चोर हरी गया । इम हुआ लाचार ॥ पुण्य ॥ ९ ॥ वियोग जाणी मावित्र को । नेणा छूटो नीर ॥ उपाय कोया सुख कारणे । थया ते दुःख धीर ॥ पुण्य ॥ १० ॥ मात तात कृपा थकी । और आप पसाय ॥ ए ऋद्धि सुख पामीयो । भोजाइ जी घर मांय ॥ पुण्य ॥ ११ ॥ अबी ज्यादा बात करण को । भाइ अवसर नाय ॥ इहां से तीन कोस गामडो । तिहां मीठी माजी रहाय ॥ पुण्य ॥ १२ ॥ तिहां जाइ छेउं रहो । कागद दीजो मोय ॥ सामे आस्यूं ठाठ | पाटथी । जिम शोभा जग होय ॥ पुण्य ॥ १३ ॥ जीमाइ लपत किया । दीयो घणो
1
खण्ड ४
४९
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धन माल ॥ सकेटे ठवी गुप्त मारगे । दीया प्रागपुर पहोंचाय ॥ पुण्य ॥ १४ ॥ मीठी । मांजी के घरे गया।जिनदास नाम लीध ॥ मांजी घणी खुशी हुइ । आदर घणो दी। ॥ पुण्य ॥ १५ ॥ सुखे समाधे रही तिहां । कियो कासीद तैयार ॥ पत्र लिखी पठावी । यो । पोलासपुर तेवार ॥ पुण्य॥१६॥ पत्र पढी जिनदास जी । आर्त करी लोकाचार ॥ दान धर्म कियो घणो । शोक टल्यो ते वार ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ फिर कासीद पत्र आवीयो। खटला सहित तीनो भ्रात ॥ मिलण भणी आवे इहां । सहू सुणी हरकात ॥ पुण्य ॥ १८॥ सामे चाल्या ठाट पाट थी। जिम कुल कीर्ती होय ॥ तीनों जिनदास संकेत |जिम । आया अश्व रथे सोय ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ समागम शुभ महूर्ते । मिल्या वाह पसार ॥ तीनो को ठाट देखी करी।लोक हा अपार ॥ पुण्य ॥ २० ॥ शुभ महूर्ते आया ग्राम में । जिनदास के घेर । आणंद में रहे सहू । तजी इर्षा वैर ॥ पुण्य ॥ २१॥ सवा नव मांस बीतीया । सुगणी प्रसव्यो पूत ॥ आणंदमे बृद्धाहुइ । यह पुष्यका सूत ॥ पुण्य ॥ |२२ ॥ नाम धर्मोदय स्थापीयो । सुखे बृद्धीथाय ॥ चतुर्थ खन्ड ढाल चतुर्थी । ऋषि आश मोलख गाय ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ ७ ॥ दोहा ॥ शुक्ल शशीपरे कुँवरजी । हाथो हाथ वृद्ध-N थाय ॥ वर्स बर्षका जव हुया । विद्या भ्यास कराय ॥ १॥ संसारीक कला भया। कर
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अत्गुरु को संग ॥ सामायिका दी सीखीया । चडयो ज्ञानको रंग ॥ २ ॥ यौवन वय त भया । श्वधर्मी कुल मांय ॥ जोगी जोडी मिलाय के । ठाट करी परणाय ३ ॥ समर्थ जाणी कुँवरने । सोप्यो सहू रुजगार ॥ खंध धार धारण किया । आरंभ सचित निवार ॥ ४ ॥ सामायिक प्रतिक्रमणो । पौषधने उपवास । सधर्मी संग वृद्धी करे । जैन धर्म प्रकाश ॥ ५ ॥ ● ॥ ढाल ५ पांचमी ॥ आज आणंद घन जोगीश्वर आया ॥ यह० ॥ तिण काले मुनी धर्मजय ऋषि । चरण करण गुण धारीरेलो || अष्ट संपदा करके शो हे । छत्तीस गुण भंडारा रेलो ॥ तिण ॥ १ ॥ अप्रति बन्ध जिन पदे विचरता । घणा मुनी परवारी रे लो। उ गण शशी की परे सोहे । सम दम खम नम सारीरे लो || तिण ॥ २ ॥ समोसर्या पोलासपुर बारे । मनो रम्य बाग मझारेरे लो ॥ वन पालक जोइहरषायो । वंदे वारंबारेरे लो ॥ तिण ॥ ३ ॥ अनुज्ञालीवी जी वनपालककी फ्रासुख वस्तु जाचीरे लो ॥ तप संयमे निजात्म ध्यावे । रह्या ज्ञान ध्यान में राचीरे लो | ॥ ति ॥ ४ ॥ वन पालक तब करी सजाइ । नृप कचेरीये आइरे लो || मुनी आगम की दीनी बधाइ । सुण भूप सभा हर्षाइरे लो || पुण्य ॥ ५ ॥ चतुरंगी शैन्य सज कराइ । नगरमे खबर पठाइरे लो ॥ सुणी भव्य वृन्द अत्या नन्द पाइ । वंदण भणी सज
खण्ड ४
चंद्र ताराने
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थाइरे लो ॥ तिण ॥ ६ ॥ जिनदास जी ने पौषध शाळा माइ । आइ उत्तम वधाइरे लो। ॥ सुण दम्पती ने सहू हाई ।सज हुवा संघ सघलाइरे लो ॥ तिण ॥७॥ राजा प्रजा । अति आनन्दे । आया ग्राम के बारे रेलो । मुनीवर दीठा वाहण तजीया । पंच अभीगम धारेरे लो ॥ तिण ॥ ८॥ सचित वस्तु सहू दूरी मेली। अभीमान दर्श चिन्ह छोडे-IN रे लो ॥ मुख यत्नाये उत्तराखण कीनो । नम्र भाव कर जोडेरे लो ॥ तिण ॥ ९ ॥अदूर सामंत ते सन्मुख आइ । तिखुत्तो अंग नमाइरे लो॥ करांजली ग्रही करीवंदणा। योगासने बेठाइरे लो ॥ तिण ॥ १० ॥ आगल आइ जिनदास वन्दे । मुनीवर तस ओलख्या
लो। नाम लइने तास बुलाया । जिनदास जोइ हर्षाइरे लो ॥ तिण ॥११॥ अहो गुरुजी ज्ञानका दाता । रुडा दर्शन दीधाइरे लो ॥ घणा वर्षे मनोर्थ फलीया । अ.IN त्यानन्द उमाइरे लो ॥ तिण ॥ १२ ॥ अहो २ आज अनंद घन प्रगट्या । पतीत पावन कीधारे लो ॥ आप दरसणे श्वामी पाप पणास्या । हूया मनार्थ सिधारे लो॥ तिण ॥ १३॥ ॥ सुगुणी पण जोइ पटांतर । अत्यंत आनन्द पाइरलो ॥ थयायोग स्थाने सहू बेठा । कथा सुणन उमंगाइरे लो ॥ तिण ॥ १४ ॥ राजा पूछे महाराजा सेती । यां सेठ में आ प पहलानोरे लो ॥ दानी धर्मी बहु गुण सागर । हम नयरे प्रगटाणारे लो ॥ तिण ॥
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५१
१५ ॥ कहे मुनीवर हमने धनवंत की । खुशामद कुछ नाहींरेलो || धर्मी सहू को वह भ लागे । तोसाधूको केणो कांइरेलो ॥ तिण ॥ १६ ॥ इनको जन्म हुयो अधर्मी के | पण लघूवय के मांइरेलो । सत्संगते जाण पणो कर्यो । मांजी में धर्म रुच्याइलो || ति ॥ १७ ॥ कन्या परण्या यह द्रढ धर्मी की । धर्मी किया बाप माइलो ॥ पर सुख देवण आप संकट सह्यो । तो सुख क्यों नहीं पाइरेलो ॥ तीण ॥ १८ ॥ सुखी होइ घणा ने सुखी कीना । धर्मी ध्यान का लाभ घणालीधारे लो ॥ इण कारण नाम लेइ में बोलया । नर जन्म सफल इण विघारेलो ॥ तिण ॥ १९ ॥ संक्षेप चरित्र सुणी जिनदासको || घणा जणा हर्षायारेलो || भेद भाव जाणी पुण्यंवत का । घणा जणा सरसायारे लो ॥ ति ॥ २० ॥ सम् भावेनिन्दा परसंस्था । तेनर समकिती जाणो रेलो ॥ पंचमीढ | लेकहे आमोलख । होवे गुणवंत बखाणो रेलो ॥ तिण ॥ २१ ॥ ७ ॥ दुहा || संजती ऋषि तिण समय । धरता निर्मळध्यान ॥ क्षपक श्रेणि पडिवर्जी । मार्यो मोह सुलतान || १ ॥ ज्ञानदर्श चारित्र ढक । तीनों दिया क्षपाय || आप्रतिहत पुर्णविमळ । केवल ज्ञान जद पाय ॥ २ ॥ धुंधवीं बाजी गगनमें । देवकरे जयकार ॥ रचना देखी सह सभा । पामी हर्ष अपार ॥ ३ ॥ केवली सुर नर वृंदमें | वंदे गुरुके पाय ॥ करग्राह तत्क्षिण गु
जि० सु
खण्ड ४
५१
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रु । पास लिया बेठाय ॥ ४ ॥ अनुज्ञादी उपदेश की। भव्य तारण जिनराय ॥ अहते सिद्ध को नमन कर । देशाना तब फरमाय ॥ ५॥ ॥ ढाल ६ ही ॥ विण जारा की चाल में । सुणो सबही हित चित लाइ । भाइ धर्म सदा सुख दाइ ॥ ७० ॥ त्रिति चौली राजू मांही । पुद्गल प्रवृत अनंत कीधाइ जी।अनंत पुण्य से नर देह पाइ॥ भाइ ॥ १ ॥ उदारीक तन का नामो। करो उदार इससे कामो जी । ज्यों जन्म मरण मिट जाइ ॥ भाइ ॥ २ ॥ यह निर्वाण दाता तन्नो । जो साधो स्थिर कर मन्नो जी। तो दुःख सर्व छूट जाइ ॥ भाइ ॥३॥ यह जोग पा "धर्म करे नाहीं । ते पशूसे खराब केवाइ जी । व्यर्थ जननी जन्म दुःखाइ ॥ भाइ॥ ४ ॥ पंच लब्धी पर्यंत जवि आवे । ते सम्यक दर्शन पावे जी। तब शुद्ध प्रवृती थाइ ॥ भाइ॥ ५॥ अष्ट कर्म तणा अनुभाग | समय २ घटे उदय आगे जी । तब 'क्षयोपशम' लब्धी कहवाइ ॥ भाइ ॥६॥ तब साता वेदनी प्रगटावे । धर्मानुराग जगावे जी । तेवि. शुद्ध लब्ध' जणाइ ॥ भाइ ॥ ७ ॥ जीवादी तत्व पहचाने । जे आचार्या दी बखान | जी । ते 'देशना लब्धी' थाइ ॥ भाइ ॥ ८॥ समय २ विशुद्धता होतां । उक्तष्ट कर्म । स्थिती खोतां जी । सह कर्मे 'प्रयोग लब्ध' पाइ ॥ भाइ ॥ ९॥ यह चार लब्धी
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जी० स०।।
दरशाइ । सो भव्या भव्या दोनो पाइ जी । पंचमी लब्धी भव्यज प्रवृताइ ॥ भाइ ॥ खण्ड ४ १० ॥ ते 'करण लब्धी' कहवावे । तस तीन प्रकारज थावे जी । अधः, अपूर्व, अनि
वृत. थाइ ॥ भाइ ॥ ११ ॥ एक एकसे विशुद्ध यह जाणो । तब होवे चौथो गुणस्थानो ५२जी । ते सम्यक्त्वी कहवाइ ॥ भाइ॥ १२॥ द्रबे सम्यक्त्व धारी । कुदेव-गुरु-धर्म वारी
जी । करे तत्व तणी सच्चाइ ॥ भाइ ।। १३ ॥ फिर वृत धारे ते बारे । जिम रूके आ-D श्रव द्वारे जी । करे शुद्ध पौषध समाइ ॥ भाइ ॥ १४ ॥ दान उलट भाव देवे । सीले वस इन्द्री लेवे जी । तप जप थी तन सुखाइ ॥ भाइ ॥ १५ ॥ मंत्री भाव सहू थी। राखे । दुर्गुणी पे दया द्रष्ट न्हाखे जी । होवे गुणही गुणका गृहाही ॥ भाइ ॥ १६ ॥ इम लख भावे गृह वास रह वे । ते सागरी धर्म को सेवे जी । फिर वैराग्य भाव जो ५२ आइ ॥ भाइ ॥ १७ ॥ त्रिविध आंरभ को त्यागे । क्षांत दांत शिव मार्ग लागे जी दरबेभावेते मढ थाइ॥ भाइ॥१८॥होड सिंह समाना सरा। क्षम दम उपशम में पूरा जी । धर्म शुक्ल यान ही भ्याइ ॥ भाइ ॥ १९ ॥ पंच प्रमाद क्षपावे । अपूर्व कर्ण गुस्थान पावे जी । होवे अवेदी अकषाइ॥ भाइ॥ २०॥ मोहणी सर्व क्षय करने । रहे सुक्ष्म क्रिया पर ने जी । तब ज्ञान होय अपडवाइ ॥ भाइ ॥ २१ ॥ इम जाणी
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भव्य जन जागो । मुक्ती के मार्गे लागो जी । ढाल छुट्टी अमोलख गाइ ॥ भाइ ॥ २२ ॥ छ ॥ दुहा || इत्यादी उपदेश सुण । भव्य गण हर्षाय ॥ सम्वेग मन ऊमग्यो । समक्ति वृत ले उमाय ॥ १ ॥ दुर्लभ यह अवसर लही । चिन्तवे तव जिनदास | जिन जीने पूछी हिवे । सन्देह करूं विणास ॥ २ ॥ इत्ता में कहे केवली । सुणिहों भव्य हित बात || अनादी कर्म प्रसंग से । सुख दुःख जीव पात ॥ ३ ॥ अज्ञाने मुढ भावथी | सह जे बन्धे जीव ॥ ते उदय आया थकां । बहूली पावे रीव ॥ ४ ॥ अंतराय पांच वरणवी । ते दीधी जिन होय ॥ तास गती किण पर हुवे । लीजो प्रत्यक्ष जोय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल ७ सातमी ॥ बिणजारा का गीतकी देशी ॥ सुणो शाणा हो ॥ वाणीया ग्राम मझार । राजपिशुन जयगुण निलो ॥ सुणो शाणाहो ॥ विवहारी तिहा अनेक । वैपारे ग्राम सहू तिलो ॥ सुणो शाणा हो ॥ १ ॥ सुणो० तिण नगरे धर्मवंत । सेठ वसुधर दीपतो । सुणो० ॥ सुणो० श्रमणो पासक तेह । ग्रस्था श्रम मन जीप तो । सुणो७ ॥ २ ॥ निग्रन्थ प्रवचन कौविद । न्याये धन उपराज तो । सुणो० ॥ सुणो० पाले पोते धर्म । अन्य भणी दे साज तो ॥ सुणो० ॥ ३ ॥ सुणो० एकदा खुटीयो माल । वेपारी मिल सहा करी । सुणो || अब के पोते चाल । माल लावां
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खन्ड ४
जिनआंपां सिग॥ सुणो० ॥ ४ ॥ सु-० वसुधर जसधर और । आठ जणा सह चाली- ५३ या ॥ सुणो ॥ सुणो० करी साकट तैयार ॥ भोजन भंड सज घालीया ॥ सुणो ॥ ५॥
सणों० जिहां २ होवे मुकाम । तिहां २ कार्य निवृत थाइ । सुणो ॥सुणो० वसुधर करे उपदेश । धर्म सत्य दाखे गेह गही ॥ सुणो ॥ ६ ॥ सुणो० सच्चा देव गुरु धर्म । तेहना। मन में उस गयो ॥ सुणो ॥ ७ ॥ सुणो० वीजा साथी छे जेह । टट्ठा में कहाडे उपदेश
॥ सणो भारी कर्म पसाय । स्यू जाणे धर्म रेशने ॥ सुणो ॥ ८॥ उलटा निंदे तेह । मेलो धर्म के एहनो ॥ सुणो ॥ सुणो० ॥ ज्यादा न पीवे नीर । जतन नहीं करे देहनो ॥ सुणो ॥ ॥ ९॥ सुणा० वसुधर जसोधर दोय । समता धर समजावइ । सुणो ॥1 सणो० ते कहे करो दूजी बात । यह हम दाय न आवइ ॥ सुणो ॥ १०॥ सुणो० तब ते धर रहे मून । दोनों धर्म चरचा करे । सुणो ॥ सुणो०सुखे २ मार्ग मांहे । यत्ना कर।
के संचारे ॥ सुणो ॥ ११ ॥ सुणो० एकदा एक वन माय । आठों ही यह भेला मिल १ वाटी करी सुणो ॥ सुणो० उदर पूर्ण ने काज । चान्द्रका दधी की घी भरी ॥ सुणो ॥ १२ ॥ Nसुणो० वासण धोया जेह । ते जल थाली मा धर्यो ॥ सुणो ॥ सुणो० जीमवा बेठ पहे-N/
ला मन सूबो वसुधर कर्यो । सुणो ॥ १३ ॥ सुणो० धन्य २ ते देश । जिहां २ मुनीवर
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वीचरे । सुणो ॥ सुणो० में हिवणा भाग्य हीन । इहां पवित्र मुज कुण करे ॥ सुणो ॥
१४ ॥ सुणो० जोग सह इहां एह । धोवण आहार निर्वय सह ॥ सुणो ॥ सुणो० पण । कर्म अंतराय मुनीवर ने किण विध दह ॥ सुणो ॥ १५ ॥ सुणो० इणही विचारके मांय
नेणा नीर वही चालीया ॥ सुणो ॥ सुणो इतरे भाग्य ने जोग । जिन कल्पी मुनी। भालीया ॥ सुणो ॥ १६ ॥ सुणो० ओगो मुहपती पात्र । वस्त्र खन्ड लजाढकी । सुणो सुणो० इर्या पंथ सोधंत । तिहां पधार्या पुण्य थकी । सुणो ॥ १७ ॥ सुणो० गरजारवे । जिम मयुर । नृत्य करे छे मही परे ॥ सुणो ॥ सुणो० तिम वसुधर ने ताम । हर्ष अति । मन संचरे ॥ सुणो ॥ १८ ॥ सुणो ॥ हर्ष का आंशू पूर । नेणा चौधार वहीरया ॥ मुणो ॥ सुणो० वंदेपचंग नमाय । मुनी पद निज मस्तक ठाय ॥ सुणो॥ १९ ॥ सुणो जसोधर पण तिण पेर । नमस्कार कर गह गही ॥ सुणो ॥ सुणो०धन्य २ यह घडी आज । मनसा पुरी वन मही ॥ तुणो ॥ २० ॥ सुणो० आमंत्रण कर आहार । लावे भोजन ढिम मुनी । सुणो ॥ सुणो० अमोल सातमी ढाल । गुणी थकी मिले गुणी ॥
सुणो ॥ २१॥ ॥ दुहा ॥ पापिष्ट छेउं तटकी करी । कहे तेहथी ललकार ॥ लावे कि, Nसा भिख्यारी ने । करवा भिष्टा चार ॥ १ ॥ इम सुणी मुनीवर फिर्या । दोनो हुवा उ
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जि० सु०
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| दास || आडा फिरी चरणे नमी । यत्नाए करे प्रकाश ॥ २ ॥ यह छेउं अज्ञानी जन । जाणे नहीं धर्म भेद ॥ दीन बंधव तिणरे कहे । हम ने मतदो खेद ॥ ३ ॥ महा पुण्यो दय रण विषे । कल्पवृक्ष फल्यो आय ॥ वेहरायविन आपने । जावा देस्या नाय ॥ ४ ॥ आप कल्प जैसो हुवे । तो वेहरीजो दयाल ॥ क्षिणेक सुस्ताइये सुनी स्थंभ्या ते काल|| ५ ॥ ७ ॥ ढाल ८ मी ॥ गोपचंद लडका ॥ यह ॥ जे धर्म रंगीला | लावो लेवे जी अवसर पाय के | आं ॥ जसोधर मुनीवर कने राखी । वसुधर सवार ॥ छेउ मंत्री पासे आइ । नरमी कर उचार हो ॥ जे ॥ १ ॥ अनंत पुण्य सजोगे भाइ । वनमें वण्यो सुजोग || अपूर्व अवसर मती गमावो । फसी कर्म के रोग हो ॥ जे ॥ २ ॥ उग्र तपस्वी महा वृतधारी । तनकी ममता टारी । वेपरवाइ निर्वद्य भिक्षा । लेवे यह अणगारी हो ॥ जे ॥ ६ ॥ सहजे निपनी अपणे रसोइ । थोडी भिक्षा दीजे ॥ इण भव पर भवे सुखीया हे से । उत्तम लावो लीजे हो ॥ जे ॥ ४ ॥ इम बहू विध तिणने समजाया । माने नही लगार ॥ भारी कर्मा जीवडास ते । किम निप जावे सार हो । जे ॥ ५ ॥ वमुधर कहे भाइ हम पांतीको । कहाडी दो तुम अहार ।। करस्या हम इच्छा प्रमाणे । किस्यो तुमस्यूं विवहार हो | जे || ६ || चौथो अंस लीधो तिणमें से । अने ते धोवण पाणी ॥
खन्ड ४
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आइ मुनीवर स्यूं करे विनंती । तारो हिरे गुरु ज्ञानी हो || जे ॥ ७ ॥ ग्रस्थ त छंद अनेक श्वामी । तिणपे निघान दीजे || आप तने यह कल्प प्रमाणे । अन्न जे धोवण | लीजे हो | जे ॥ ८ ॥ निर्दोष जाणी लीयो ऋषिश्वर । खपतो आहारने पाणी । प्रत | संसार उभय तब कीधो । शुद्ध चित वित पालाणी हो ॥ ॥ ९ ते छेउ मत्सर मन धरता । करता निंद्या केइ पेर || दोनों जणा काने नहीं धरता । जाणता उलटी मेहर जी ॥ जे ॥ १० ॥ रह्यो आहार ते जीम्या हर्ष घर । कियो तिहांथी प्रयाण || वेणा तट पुरे रह्या जुदा जइ । करे वैपार लाभ हाण जी ॥ जे ॥ ११ ॥ वसुधर जसोधर एकी स्थाने | नीती थी कर्यो वैपार ॥ संतोष राखी करें धर्म वृद्धी । कमाइ हुइ अपार हो || जे ||१२|| ते छेउं अंत्रायके जोगे । लायो द्रव्य गमायो । शरमातो बोले नहीं तिण से । वसुधर भेद ते पायोहो || जे ॥ १३ ॥ आदर देइ पास बुलाइ । संतोषी कहे एम ॥ धर्म आराधो तो सुख पावो ॥ करो शक्ते धर्म नेम हो ॥ जे ॥ १४ ॥ प्रत्यक्ष परिचय देखीने ते । काम निकालण काज || करे सहू वसुधर कहे जिम । सामायिकादी साज हो ॥ जे ॥ १५ ॥ माहे तीनो जणा कपटी । कर देखा देख धर्म ॥ लेण देण में अंतर राखे न दे अंतर मर्म हो ॥ जें ॥ १६ ॥ जसोबरने ते न सुहावे । कपट पे चपट लगावे ||
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खण्ड ४
५५
KISTRIBॐ
दगा करीन चारी जीव तव । नारी गोत्र उपावे जी ॥ जे ॥ १७॥ तिहां थी आयु । पूरो करीने । करणी तणे प्रमाणे । ऊंचा नीचा देव उपना । आयु हीन बृध स्थाने जी ॥ जे ॥ १८ ॥ पहिला चवीया तीनो प्राणी । महंद पुरीने मझार ॥ सोहन शाहके घरेअवतर्या । अंबाय उदय ते वार हो ॥ जे ॥ १९ ॥ धन गमायो तातका घर को। दुःखीया।। हया अपार ॥ पाछे से वसुदत्त जीव चव । हुवा जिनदास कुंवार हो ॥ जे ॥ २० ॥ तीनो कपट तणे प्रभावें । बाध्यो थो नारी गोत ॥ ते आवड भावड जावड की। नारी तीनी होत हो ॥ जे ॥ २१ ॥ जसाधर चव तेही पुर में । कन्या हुइ शाह घेर ॥ पूर्व प्रेने वर्या जिनदाल जी। दाने पाया सुख सार हो ॥ जे ॥ २२ इम जाणी अंतराय बांयो । दान दे लेको लावो ॥ ढाल वसु में कहे अमोलख । दोनो भव सुख पावो जी ॥ जे ॥ २३ ॥ ॥ दुहा ॥ जिनदासदि आठही । और सभा का सर्व ॥ सुण सुपदेशनो। प्रत्यक्षे । तज्यो अंतर से गर्व ॥१॥ जिनदास के मन विषे। बडा चमत्कार ॥ अंतर जा मी पूछया विन । मुज संदेह दियोटार ॥ २ ॥ बंदणा कर जिनजी भणी । कहे नम्र
कर जोड ॥ श्रध्या परतीत्या वयण में । फरसन की हुइ कोढ ॥ ३॥ ऋषिजी कहे देव । ५ वल्लभ । देर तणो नहीं काज ॥ भरोसो नहीं काल को । पार्योते करो आज ॥ ४ ॥
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सुण आणन्या कहे नमी । करी जक्त विवहार ॥ दिक्षांलं पाछो अइ । वंदी चाल्यो ते बार ॥ ५॥ ॥ ढाल ९ नवमी ॥ दया धर्म दिल माहे धारोरे ॥ यह ॥ धन्य २ तस अवतारो हो । करे निज परनो सारोहो ॥ ७ ॥ जिनदास का सजन सह जी । सुणीर मुनीवर का बखाण । बंदी आया निज घरे । वैरागे रंग्या प्राण ॥ धन्य ॥ १॥ तिण |वला जिनदासजी ए। बोलायो सहू परिवार ॥ सह आइ बेठा तिहां। हियडा मां हर्ष अपार ,
धन्य॥२॥ जिनदास कहे इण अवसरै । हूं ले स्यू संयम भार॥ना कोइ बोलो मती। कहो निजी हृदयका विचार ॥धन्य॥३॥ सुगणी कहे हूं मांगतीथी।आज्ञाआपके पास॥जोडीथी संयम ले *वस्यां । इम सुण ने हर्ष्या जिनदास ॥ धन्य ॥४॥ पूछे भाइ भोजाइथी । कहोतोदूं चही ।
येसो धन ॥ नही तो रहो इणही घरे । हूँ करदे, सर्व जतन ॥ धन्य ॥५॥भाइ भोजा-2 इ इम कहे । हम भोगव्या पूर्व कर्म ॥ इण अवसर नहीं चेतस्यां तो । किहां करस्यां फि र धर्म ॥ धन्य ॥ ६ ॥ भवांतरी सुणी हम जबथी । हुवो दिक्षा को विचार ॥ रहस्यां न । ही कोइ के कहे । हम लेस्यां संयम भार ॥ धन्य ॥ ७॥ सुण हा जिन दासजी। त। ब धर्मोदय से केय ॥ आज्ञा अर्षी सर्वको । यह लाभ अपूर्व लेय ॥ धर्म ॥ ८॥ नय नां । श्रुत कँवर कहे । खाली करवा पार्यों सहू घर ॥ महारे आधार हिवे कोण को । वली वा
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खण्ड ४
ळ छे माहारी उम्मार ॥ धर्म ॥ ९ ॥ सुगुणी अने जिन दासजी। तस काहया लाग्या विक जी: सृ०
श्वास ॥ अनादी की रीत येहीहै । कोइ रहे नहीं स्थिर वास ॥ धर्म ॥ १० ॥ आधार पर
बला पुण्य को । वली सत्य सील दया दान॥जाणहे तूं सहू बात थी। हिवे रह्या नहीं ना५६ दान ॥ धर्म ॥११॥ उत्कृष्ट भाव सहका जाणी। कर जोडी कहे एम॥ सुख उपजे जि। कान कीजीये । मुजथी ना कहवावे केम ॥ धर्म ॥ १२ ॥ अनुज्ञा पामी सहू जणाजी। नि प जाइ चहू आहार ॥ न्याती स्वधर्मी जिमाइके । फिर वेठा शभा मझार ॥ धर्म ॥ १३ ॥ ऊभा होइ जिनदासजी । सहूथी कहे धर प्रेम ॥ हम आठों संयम लेवां । धोदय पर धरजो खेम ॥ धर्म ॥ १४ ॥ जैसी कृपा हम पर रखी । तैसे इणने लेजो निभाय ॥ इम सुण आँख भरी सह तणी । अचंभे अती थाय ॥ धर्म ॥ १५ ॥ सहू कहे इण वातकी । आप चिन्ता न राखो लगार ॥ आप जैसा हे कुंवरजी। करसी झाकी संभार ॥ धर्म ॥ ५६
१६॥ धन्य २ सहू उच्चरे । तब दिक्षा औछव मंडाय ॥ कुंतीया वणकी दुकान थी जी।ओ। Pगा पात्रा मंगाय ॥ धर्म ॥ १७॥ सज्ज हुइ सेवकाए बडीजी । चाल्या सहू परिवार ॥
उध्यान पास आइया । वाहण तजीया तेवार ॥ धर्म ॥ १८ ॥ मुनीवर पासे आयके । वि।। |धी पुर्वक कियो नमस्कार ॥ इशाण कूण माहें रही । सहू तजीया सहू सिणगार ॥
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धर्म ॥ १९ ॥ पंच मुष्टी लोचन करी । लियो संत सती को भेष पेहर । मुनीर। सन्मुख ऊभा रद्या । कहे तारो हिवे करी मेहर ॥ धने ॥ २० आज्ञा लेह परिवार की। दीया सावध जोग पञ्चखाय ॥ आरज्यांजी सतीयां विषे । मुनी वेठा मुनी फक्ते आय ॥ धर्म ॥ २१ ॥ सह परिवार वंदणा करी । करी शक्ती प्रमाणे पच्चखाण ॥ गुण,
संभारी आर्त करता। आया निज ठिकाण ॥ धर्मी ॥ २२ ॥ धन्य २ जे छत्ती तजे जी 16 ढाल नवमी के मांय ॥ ऋषि अमोलख नित्य प्रते जी । प्रण में तेहना पाय ॥ धर्म
॥ दुहा ॥ विनय भक्त कर गुरुतणी । सीख्या सिक्षा दोय ॥ असेवना ग्रही ज्ञानकी । गृहना चारीत्र की होय ॥१॥ आठही क्षयोशम जिस्यो । पहीलां सीख्या ज्ञान ॥ पाछे कर्म क्षपाव वा । तप मांडयो प्रधान ॥ २ ॥ जैन शासन उन्नती करी । तारी घणा । भव्य जन ॥ सलेषणा अंत अवसरे । करी कियो अणसण ॥ ३॥ आयुष्य अंत जिनदा-1 स जी । पहोंता विजय विमाण ॥ सुगुणी नारी लिंग हरी । अचुत स्वर्गे अहेठाण ॥
॥ और सह करणी समां । पाम्या देव स्थान । थोडा भवन अंतरे । पामसी सह निर्वाण' N॥ ५॥ ७ ॥ ढाल १० दशमी ॥ धमो मंगल महीमा नीलो ॥ यह ॥ धर्म आराधो भवी
भाव स्यूं । धर्म सदा सुखदाय ॥ धर्मे दुःख दोहग टले । धर्मे शिव मुख पाय ॥ धर्म ॥
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खन्ड
१॥ धन्य २ संत जिनदासजी । धन्य सती सुगुणी सुजाण ॥ ॥ धन्य आवड भावड ।। जि० सु. ५७ जावड। धन्य तीना आर्जका जाण ॥ धर्म ॥ २ ॥ पूर्व पश्चात चेतने । सुधारे।
नर अवतार ॥ शिव पुर मार्ग संचरे । करे आत्म निस्तार ॥ धर्म ॥ ३॥ संतस तीका गुण कथा । सुणतां चित धर ठाम ।। श्रवण हृदय पवित्र हुवे । दोनों भव आराम ॥ धर्म ॥ ४ ॥ एतो कथा गत में कथी । अब सुणो इणरो सार ॥ गुण कथू बीणी करी।। ते लेवो सुगुणा धार ॥ धर्म ॥ ५॥ सोहन शाह सत्गुरु संगे। गभायो सहू दुःख ॥ ति।। म सहू सत् गुरु संग करो । तो पामो अविछल सुख ॥ धर्म ॥ ६ ॥ जिम श्रीपत सेठ । निज घरे । धर्मी ज्ञानी कियो परीवार ॥ तिम मुखीया सहू घर तण । सुधारो कुटुम्ब हित धार ॥धर्म॥७॥ जिनदास सुमित्रने संगे। धर्मी ज्ञाने हूवा परवीन ॥ तिम सत् संगत सहू करी । ज्ञान गुण बहावो दिन २॥ धर्म ॥ ८॥ सुगुणी जिम सहू बालिका ।
मत करो अधर्मी भरतार ॥ सुधारजो क्षमा नीती से । खसुर घर परिवार ॥ धर्म ॥९॥ || उपदेश और कृतव्य विषे । अनर्थ दंडकर दूर ॥ यत्ना करो सुगणी परे । संपथी क्लेशको
चूर ॥ धर्म ॥ १० ॥ संकट समय दम्पती । समता धरी तप्या तप ॥ तिम संकटे धर्म तप करो । तो जावे कूकर्म खप ॥ धर्म ॥ ११॥ वैर विसारी जिनदास जी । पाल्या |
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तायां परीवार ॥ तित वैर विरोधने उपसमी । रक्षा करो सब सार ॥ धर्म ॥ १२ ॥ पूर्व
भवे छेइ जीवडे । दी दान की अंतराय । तिम अंतराय कोइ मत करो। वणो जसोधर सा। Nउदार ध ॥ १३ ॥ आखीर अवसर देख के । देइ पुत्र ने घरवार ॥ सयंम लेइ शिव
सुख वर्या । तिम अवसर चेतो नर नार ॥ धर्म ॥ १४ ॥ इत्यादी सारांश यह ॥धारो श्रोता निज हित ॥ तोही सार सुणीयां तणो । बणो निजात्म मित ॥ धर्म ॥ १५॥ N भेटजो करो वक्ता भणी । तो करोकुछ त्याग ॥ ए भेट उभय ने सुखदाता । सुधारो
नर अवतार ॥ धर्म ॥ १६ ॥ श्रीतिलोक ऋषि जी रचित पाढथे । धर्म बुद्धी चरीत्र ॥ तिणथी कथा यह उद्धरी । रची वृद्धी होण पवित्र ॥ धर्म ॥ १७॥ इण विप्रति जो कथ्यो । तो गुरु ज्ञानीकी साख ॥ मि थ्या दुकृत उच्चरी । करुंहूँ आत्म को पाक ॥ धर्म ॥ १८ ॥
श्री महावीर स्वामी थकी । छप्पनमें पाट पुज्य ॥ श्री काहानजी ऋषि महाराजकी।स। सम्प्रदाय शुक्ल दूज ॥ धर्म ॥ १९ ॥ तास चतुर्थे पाट । धनजी ऋषी महाराज ॥ तास । शिष्य खुबा ऋषिजी । ज्ञान क्रिया की झाज॥ धर्म ॥ २० ॥ तस्यशिष्य श्री चेनाऋषि । मम गुरूजी कृपाल ॥ रत्न ऋषिजी मुज भणी । ज्ञान दीयोहो मयाल ॥ धर्म ॥ २१ ॥ संसारीतात तपश्वी गुणी । केवल ऋषिजी सहाचर ॥ विचरत आया इगत पुरी । नाशी
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जि.सु.
खड४
क सेट मझार ॥ धर्म ॥ २२ ॥ चतुर्मास आणंदमें । रह्या टॉव्या की जागा माय ॥धी र वर्ष चोवीस इकतीसे । विजय दशमी पूर्ण थाय ॥ धर्म ॥ २२ ॥ जिनदास सुगुणी च H/रित्रयह । दया कल्म वल्ली जाण । भणे सुणे सुणावइ । तासहोवे परम कल्याण ॥ धर्म : NI॥ २४ ॥ जय २ सदा जैन धर्म की । हीं श्रीं सुखदाय ॥ चतुर्थ खन्ड ढाल दश यह ।।।
आमोलख ऋषि गाय ॥ धर्म ॥ २५ ॥॥ चतुर्थं खन्ड सारांस । इन्द्र विजय ॥ दा N नसे इच्छिस ऋद्धि मिले । अरु दुःख दुर्भाग्य सौ भय विरलावे ॥ दुशमण को सज्जन का।
रे दानही । मान नरिन्द्र सुरिन्द्र सेपावे ॥ सर्व तरह उच्चलावे दानयो । संघमादी देइ । मोक्ष पठावे ॥ महिमा अमोल अथागहे दानकी । तेह स्वरूप यह ढाल दर्शावे ॥१॥ ग्रन्थसारांश । हरीगीत ॥ दया कल्प वल्ली तणी चारों शाखा चउ खन्डमें । धर्म सम्य सत्य दान बहू गुण । पत्र छांहा भू मन्डमें || सूकीर्ती कुसम महकाय अश्रित पाय फल। शिव पिन्डम ॥ अमोल नित्यानन्द अर्पे चरीत्र यह. जग चन्डमें
परम पुज्य श्री कहानजीऋषिजी महाराज के स्मप्रदाय के महंत मुनी श्री खुवाऋषि जी तस्य शिष्य आर्य मुनी श्री चेना ऋषिजी तस्य शिष्य बालब्रह्मचरि मुनी श्री अमोलख ऋषिजी रचित दया कल्प वल्ली जिनदास सुगुणी चरित समाप्तम् ॥
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पत्र
४६
४८
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पर बोली
ܚ ܐ ܐܬ
6
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१४
અહ
बैठी
हाँस्थल
निलस
परिवार
यहा
थवयो
हो
निज
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रमाइ
खेमो
मांय
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धर्मी
विघारे
उक्तष्ट
श्रमणो
शुद्ध
येषां
हांसल
मिलसी
परिवारा
यह
थियो
दो
जिन
वैममन
तणा
काम
नरमाइ
क्षमो
मांज
थी
भ्रमे विधारे
उत्कृष्ट
श्रमणो
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पत्र
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こ
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7
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१३
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३
५
११
टठ्ठा
बेठ
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शरमातो
बांधो
कोढ
खसुर
तित
इण
कल्म
सम्य
चन्द्रमे
इस सिवाय और भी पड़ छेद व चरण रेखा वगैरा की कही २ कर रही है सो सद सुधार के याना
शुद्ध
॥ सुणो ॥ पुजो
ठठ्ठा
बेठा
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उखा
दुनि गोपी होसे
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मतबान्धो
कोड
स्वसुर
तिम
इणमे
कल्प
सम्प
चन्दमे ॥ १ ॥
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________________ शुद्धी शुद्ध पत्न. इस 'जिनदास सुगुणी चरित्र' को नीचे मुजब शुद्ध करके यत्नासे पठन कीजीये ? पत्र पृष्ट ओली अशुद्धी शुद्धी पत्र पृष्ट ओली अशुद्धी चारत्र चरित्र 22 2 10 देखाय दवाये 1 1. तपी तप धन्न धर्म 1 2 7 रह घर धर शी হাহা वस वसे धर्म धरछे धरेछे णघाशिष्य घणाशिप्य रवां रेवां अखाडे अखोड ताडी ताडीजी प्रसाद पसाय लह्या लक्ष्या पूत योते पोते ढोर ठोर अश्वव आश्रव चिंतेप चिन्ते लाणो लागो एवी एहवी ज्याद ज्यादा सांभला सांभली अखड अखन्ड केकाली कंकाली हमारीही हमारो हो अरडाय अरडाइ बेट बेठ घणी धणी रवबर खबर सानध सान्ध समा समाज 14 दीय दिया #fts-treasurkar 9600006aahe. MUAMMOLAMAJAMUSTI noranar सूत : ALLA :