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________________ जि० सु०४॥ लाज न आवे तुम भणी । जाणी पड्या दःख माय॥हमतो भली नहीं रहां । पहिली खण्ड २ | कहां समजाय ॥ ५॥ ढाल ४ चोथी॥ अरजी सुणीयों मोये कुमरजी ॥ यह० ॥ | प्राते तीनों पिता पास आइ। रीश करी कहे एम ॥ गुप चुप हम को जुदा कर देवो ।।।। जो चाहो सह क्षेम ॥ भाइ जी, संपथकी सुख होय ॥ आं० ॥१॥ तब जिनदास | बखाण सांभली । आया पिताके पास ॥ पिता कहे आज सुण्योसो केवो ॥ बुद्धवंत । प्रकाश ॥ भा३० ॥२॥ जनपद पुरे पिशुन जय राजा । न्याय नीती गुण धाम ॥ भागी राणी थी उपना । सुर सिंह पुत्रसुनाम ॥ भाइ० ॥३॥ · संगत पडी बाल वरः थी। सेवे सात विशन ॥ सचीव परोहित सेठ सुत चउ। मंत्री रहे एक मन ॥भाइ॥४॥ श्लोक ॥ जुवा भक्ष मंसं सुरापान वैस्या । पापार्ध चोरी परदार सेवा । एतानी सप्तान कु विशन लोको । घोराती घोर नर्क गछंती ॥ १ ॥ ढाल ॥ एक दिन सहेल कारण काजे । आया गाम के बाहार ॥ पक्को खेत देखीमाका को । आपसे करे विचार ॥ भाइ०॥ ५॥ भुट्टा खावा चोर तणी परे । पडीया खत के मांय ॥ रख वालो देखी चित चि -12 न्ते । करणों काइ उपाय ॥ भाइ० ॥ ६ ॥ हूँ एकलो ए चार मिली ने । करसी घणो || नुकशान ॥ कोइक दाय उपाय करीने । पाहू यांरो मान ॥ भाइ० ॥ ७ ॥ इम विचारी
SR No.600300
Book TitleJindas Suguni Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNavalmalji Surajmalji Dhoka
Publication Year1911
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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