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गुरु बताइ ॥ इण ॥३॥ सागार धर्म गृस्थ को दाख्यो । तेतो वृत छे वाराइ ॥इण०॥ जी० सु०
४ ॥ पहीले मृत धर्म दया मल । जेह सर्व मल में सराइ ॥ इण ॥ ५॥ तिणरी रीती भि खग्ड १४ ।। त्र २ दासी । ते सूती धारो पुज्य पीताइ । इण ॥ ६॥ जीव तणा दो भेद फरमाया ।।
स्थावर स्थिर अस त्रास पाइ॥ इण ॥ ७॥ स्थावर पांच की करो सरजादा । पृथवी । IA पाणी तेउ वाउ विणास्य इ ॥ इण ॥ ८॥ अनर्था दंडते सुगुणा वरजे। गरज उपरांत वा- IN
परे नाहीं ॥ इण ॥ ९॥ तिणसे पण अयोग्य काम वरजो। ते लेवो तात पान मांइ ॥ इण ॥ १० ॥ फोडी कर्म सन्चेत मट्टी भक्षण । छते मकान दूजो बणाइ ॥ इण ॥ ११ ॥ गडा वर्क खाचे कूवादी खोदावे। अट प्रहर अगनी सिलगाइ ॥ इण ॥१२॥ संचा चलावे मोटा पंखा लगावे। अनंत काय कंदमूल खाइ ॥ इण ॥ १३ ॥ इणकामें दोनो भाव | दुःखपावे । श्रावक नामने लजाइ ॥ इण ॥ १४॥ त्रसहने तस जैनी न जाणो । तेह ज-IN १४ | तना आगे सुणाइ ॥ इण ॥ १५॥ दीवा चूला ने पतली वस्तु। कधी न धरणा उघाडाइ | ॥ इण ॥ १६ ॥ राते रांघणो पीसणो लीपणो । विलोवणो झाडू बरजाइ ॥ इण ॥ १७ ॥ ॥अण गल पाणी पीणों न वापरणो। दिन देखी वस्तु न रांदे खाइ ॥ इण ॥ १८ ॥ सुली वस्तु तडके नही देणी । न वापरे दे एकान्त ठाइ । इण ॥ १९ ॥ इत्यदी आचार *