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________________ खण्ड जी. सु. १९॥ कालकी वीती बातडी। जाण ताथा सौ काय॥धिकारी कहे तेहने। अब हंसो, किमरोय॥ पुण्य ॥२०॥ हाथका किया कर्मडा दोष। देवे किण ताय॥अबछेउंसुखिया भया। निज इच्छा। ४६ रहो भाय ॥पुण्य॥२१॥काहाड्या धर्मी जीवने।सदाकरी तिणयाखार ॥मावित्रने संतापीने आखिर न्हाख्या मार ॥ पुण्य ॥ २२ ॥ खाया विना रेवे कदा। कह्या विन न रहवाय ॥ INपहिली ढाल चाथा खान्ड की। ऋषि अमोलख गाय ॥ पुण्य ॥ २३ ॥ ॥ दुहा ॥ सN जन पुरजन मिलकरी । मृत्यू कारज कीध ॥छे लाग्या इण गडबडे । देखो कर्म की विधा १॥ सेठजी की ओरडी तण । बाहिर तालो लगाय ॥ वारी पिछली नहींजडी । लाग्या । जगरुढमांय ॥ २ ॥ गली मार्ग को चालतो । धन पडियो तिहां जोय ॥ राते आइ लेगया। 11 खबर पडी नहीं कोय ॥ ३ ॥ तीन बन्धव चित चिंतवे । धन घणो अपणे पास ॥ पां ती को झगडा हुवो। तिणथी एक विमास ॥ ४ ॥ पहिले औसर मावित्र को । करां खूबा ठाट पाट ॥ कलंक उत्तारी आपणो । फिर धन लेस्या बांट ॥ ५॥ॐ ॥ ढाल२दूसरी॥ भूलो मन भमरा काइ भन्यो । यह० ॥ कर्म तणी गत बांकडी । बुद्ध कर्म जिसी आवे । ॥ सोच विचारी न करे । ते पाछे पस्तावे ॥ कर्म ॥ १॥ मिथ्या भिमाने फूलीया । तब तीनों भ्रात ॥ उदारो माल घणो लाइने । भाजन निप जात ॥ कर्म ॥२ ॥ जीमाया
SR No.600300
Book TitleJindas Suguni Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNavalmalji Surajmalji Dhoka
Publication Year1911
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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