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स करना जिसका हूबहू दर्श इस "जिनदास श्रावक और सुगुणी श्राविका के चरीत्र" में किया गया है. इसलिये इस चरात्रको श्रवण, पठन, मनन, और यथा शक्त प्रवृतन सर्व धर्मार्थियों को अवश्यही करने योग्य जान, भारकस त्रिमलगिरी (दक्षिण हैद्राबाद. निवासी भाइजी बुद्धमलजी जवारमलजी के सुपुत्र भाइजी मानमलजी दूगड, नागोर (मारवाड) वाले और यादगीरी (दक्षिण हैद्राबाद) निवासी भाइजी नवलमलजी सुरजमलजी धोका इसकी १००० प्रत छपवा के श्री सिंघको अमुल्य अर्पण करते हैझान वृद्धी जैसे अत्युत्तम कार्य में जो महाशय बुद्धिका और धन का सदव्यय करते हैं वो धन्य वाद के पात्र हैं. जब से मुनीराज महाराज तपस्वीजी श्री केवल ऋषिजी, और बाल ब्रह्मचारी श्री अमोलख ऋषिजी (इस चरीत्र के रचिता) का इस हैद्राबाद शेहर मे आगम हुवा है, तब से यहां धर्म बृद्धी और ज्ञान बृद्धी के जो जो कार्य हुवे हैं, वो आम तरह से रोशन है. मुनी राज श्री के सद्वौध से लालाजी नेतराम जी राम नारायण जी आदि सद ग्रहस्थो की तरफ से आजतक बडे छोटे १३५०० पुस्त को सर्व सिंघको अमुल्य भेट दिये गये हैं, यह अनुकर्ण अन्य भी मुनीराजों व सद् गृहस्थों करके धर्म ज्ञान का प्रसार व पुनरोदार करेंगे तो धर्म रुप महा लाभ उपारजन कर दोनो लोकमे अखन्ड यशः सुख के भुक्ता बेनेंगे!
विज्ञेषु किं विशेष. श्री वीर संवत २४३७
ज्ञानवृद्धी का कांक्षी विक्रमार्क १६६७
रामलाल पन्नालाल कीमती. पोष शुक पूर्णीमा.
रामपूरा वाला, दक्षिण हैद्राबाद.