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________________ खण्ड ३ तिहाथी चलीया । सह साथे हिल भिलिया हो राज ॥ सुखे २ मुकाम करता । कणिया जी० सु./पुर आइ उतरी या हो राज ॥ पुण्य ॥ १७ ॥ बहू मोला भेटणां के मांहीं । चंदण । मूठीयो ठाइ हो राज ॥ आया नृप की कचेरी मांइ । नृपत नहीं दीठाइ हो राज ॥ पुण्य ॥ १८ ॥ प्रशन थी पूछयो विणजारे । ते कहे भूप दुःखीयारा हो राज ॥ कुष्टे । शरमावे बाहिर नहीं आवे । व्यर्थ हुवा उपचारा हो राज ॥ पुण्य ॥ १९ ॥ नायक कहे ।। औषध में लायो । सचीव नरिंदपे लेजावे हो राज ॥ लुली २ ने मुजरो कीधो। भेठणो सामे ठावे हो राज ॥ पुण्य ॥ २० ॥ सत्कारी राजा बेठाया। ढाल छट्टी के मांही हो । | राज ॥ अमोल व ऋषि कहे भव्य जन । पुण्य थी वांछित थाइ हो राज ॥ पुण्य ॥ २१ ॥ ॥ दुहा ॥ नायक नपने आगले । अर्धराज का गुण ॥ और कही उन कही। वरी। खुशी भयो नृप सुण ॥ १॥ दांतण चंदन को कयों। अंग लगायो लेप ॥ तत्क्षिण साता हुइ घणी । मिटीयो तन को चेप ॥ २ ॥ आणंद्या अति नरपति । सचीवा। भणी बुलाय ॥ पूछे कुण अर्ध राजवी: प्रिती राखे सवाय ॥३॥ मंत्री कहे जाणूं नहीं। नसुय्या नामन ठाम ॥ भूधर कहे प्रिति विना । कुण करे यह काम ॥४॥ मुज औषध वह कीमती । नित्य रखता निज पास । तुमतो छो सहू मतलबी । सजन भूल्या खास
SR No.600300
Book TitleJindas Suguni Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNavalmalji Surajmalji Dhoka
Publication Year1911
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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