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________________ संग्रहः ॥ १ ॥ ॐ ॥ दुहा || सरीर न रहे सदा सारखो । वैभव पण विरलाय ॥ नित काल आवे ढूंकडो । धर्म कियां सुख पाय ॥ प ॥ ७ ॥ ढाल २ दूसरी ॥ उग्रसेन की लली ॥ यह॥ सुणो शाणा महारा भाइ । पाणी में लाय लगावे लुगाइ ॥ ० ॥ तिण समे बड़ा भाइ की तीनो नार । कारण उपना कहे सुगुणी ने पुकार ॥ सुणो ॥ १ ॥ | सुगुणी को पाछो नहीं मिल्यो जब ॥ जोवे द्रष्ट पसारी किहां बेठा आप || सुणो ॥ २ ॥ एकांत तरू तले धर्म करती जोय । तीनी कंकाली तब असुरत होय || सुण ॥ | ॥ ३ ॥ एतो ठकराणी सम दूर बेठी जाय । ठाकर ज्यों देवरजी बखाणरे मांय ॥ सुणो ॥ ॥ ४ ॥ हम छेऊं नोकर ज्यूं काम करां सब । जूतारे गरज पडी कांइ मतलब ॥ सुणो ॥ ॥ ५ ॥ बड वडती तीनो तब उठी रोश लाय । सेठ तीनो भाइ देखी अश्चर्य पाय ॥ सुणो ॥ ६ ॥ शरमाइ कहे रहो लोक लज्जा धार । तमाशो न करो जन हँससी अपार ॥ सुणो ॥ ७ ॥ ते कहे वे सेठ सेठाणी करे धर्म ध्यान । म्हाने कांइ मोल लाया करां इतो काम ॥ सुणो ॥ ८ ॥ बड २ ती चाली तीनू तव तीनो भाइ । रसोइ करण बेठा चुप चाप आइ ॥ सुणो ॥ ९ ॥ एकान्ते विचारे तीनो करे इस उपाय | दे राणी ने क्रोध आवे तब मजा थाय ॥ सुणो ॥ १० ॥ तीनों आइ सुगुणी पास कहेवा लागी ।
SR No.600300
Book TitleJindas Suguni Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNavalmalji Surajmalji Dhoka
Publication Year1911
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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