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१ चांदी
किस्यो धनको करवो गर्व रेलाला | मनुष्य सुपात्र चाहीये। ज्यों सुख संप रहे सर्व रे लाला ॥नि॥ १८॥ सुभ घडी सगपण कियो । खुशी हुयो परिवार रे लाला || वटी बधाइ मिष्टान की । सहू कीयो कुलाचार रे लाला ॥ विन ॥ १९ ॥ शुभ महोते देखी करी । स्थापन किया लगन रे लाला || दोनो घरे मोहछव मड्यो । लाग्या मंगल बाजा बजन रे लाला ॥विन ॥ २० ॥ जग रीती सहू साचवी | खरच्यो घणो धन माल रे लाला ॥ भोजन व
सज्जन भणी । दे संतोष्या किया खुशाल रे लाला ||विन ॥ २१ ॥ दीधो बहुलो दा यजो । ही। रेण सुवर्ण दासी दासरे लाला ॥ वस्त्र चौपद आदि घणा । देइ पूरी आस रे लाला ॥ विन ॥ २२ ॥ परसंस्थे सहू मानवी । जोडी जुगती मिली येह रे लाला || धर्म कर्म में शाणा घणा । रहसी अखंड सनेह रे लाला ॥ विन || २३ || सुगणीलेइ जिनदासजी । आया आपणे गेह रेलाला || धर्मण दम्पती मिल्या । इछित फलीया जेहरे लाला ॥ नि ॥ २४ ॥ पूर्व पुण्य पसाय थी । मिलियो रुडो समन्दरे लाला || ढाल छट्टी अमोलख कही । धर्मे सदा आणंदरे लाला ॥विन ॥ २५ ॥ ० ॥ दुहा ॥णी
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रे । देखे दृष्ट पसार || जैनीपणो दीसे नही । सहू विप्रित आवार ॥ १ ॥ परंडे चूले घडी पर | चंदरवा न देखाय ॥ जलस्थान गरणो नहीं | कंदमूल रंधाय || २ || आटा दाल दे -
खण्ड