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जी० सु.
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| मन भाइ । लेवा की करी चहाइ जी ॥ संप ॥ ३ ॥ निरारंभी साता कारा ।। | एसी जो लागे हाथ जी ॥ खरच तणो तो फिकर न किंचित । सुख पावे सह साथजी खण्ड २
॥ संप ॥ ४ इम विचारी स्वर्ग शाह पासे । आइ बोले इमजी ॥ नवी जागा. बेंचो तो : मुज दो । कहो मोल इछो तिम जी ॥ संप ॥ ५॥ स्वर्ग शाहा हँसीने चिंते। ए दुःखी 21 यो निरधन जी ॥ बह मोली जागा किम लेवे । प्रछे है देखण मनजी ॥ संप ॥ ६ ॥ हँसी कहे हां शाहजी थे लेवो । तो देवू खुशी होयी ॥ धनदत्तजी कहे कीमत काह N| ये । अबी लादेवू विते सोयजी ॥ संप ॥ ७॥ हाँसी जाणी द्रव्य थोडो बतायो । धन
दर मान्या साचजी ॥ शाणा दाना मोटा नर तिहां । साक्षी राख्या पांचजी ॥ संप ॥ धन ८॥ शीघ्र जाइ द्रव्य लाया घरते । स्वर्ग शाह देख विलखायजी ॥ कहे में हाँसी में | हां पाडी । ए जागा किम देखायजी ॥ संप ॥ ९ ॥ साक्षी दार होइ सत्य पक्षी । कहे I बदल्यामें नहीं सारजी ॥ जगा इनकी इनको देवो। कह्या प्रमाणे दाम धारजी ॥ | संप ॥ १० ॥ स्वर्ग शाह पस्ताया मनमें । जगा दीवी धन लेयजी ॥ धन दत्त सहू २२ । कुटम्ब संगाते । सुखे आइ तिणमें रेयजी ॥ संप ॥ ११ ॥ धनथकी धन बधेजगत् में। धनका सगा घणा होयजी ॥ धनवंत को सहू जग यशः गावे। धन सम जगमें न कोयजी