________________
खण्ड ४
ळ छे माहारी उम्मार ॥ धर्म ॥ ९ ॥ सुगुणी अने जिन दासजी। तस काहया लाग्या विक जी: सृ०
श्वास ॥ अनादी की रीत येहीहै । कोइ रहे नहीं स्थिर वास ॥ धर्म ॥ १० ॥ आधार पर
बला पुण्य को । वली सत्य सील दया दान॥जाणहे तूं सहू बात थी। हिवे रह्या नहीं ना५६ दान ॥ धर्म ॥११॥ उत्कृष्ट भाव सहका जाणी। कर जोडी कहे एम॥ सुख उपजे जि। कान कीजीये । मुजथी ना कहवावे केम ॥ धर्म ॥ १२ ॥ अनुज्ञा पामी सहू जणाजी। नि प जाइ चहू आहार ॥ न्याती स्वधर्मी जिमाइके । फिर वेठा शभा मझार ॥ धर्म ॥ १३ ॥ ऊभा होइ जिनदासजी । सहूथी कहे धर प्रेम ॥ हम आठों संयम लेवां । धोदय पर धरजो खेम ॥ धर्म ॥ १४ ॥ जैसी कृपा हम पर रखी । तैसे इणने लेजो निभाय ॥ इम सुण आँख भरी सह तणी । अचंभे अती थाय ॥ धर्म ॥ १५ ॥ सहू कहे इण वातकी । आप चिन्ता न राखो लगार ॥ आप जैसा हे कुंवरजी। करसी झाकी संभार ॥ धर्म ॥ ५६
१६॥ धन्य २ सहू उच्चरे । तब दिक्षा औछव मंडाय ॥ कुंतीया वणकी दुकान थी जी।ओ। Pगा पात्रा मंगाय ॥ धर्म ॥ १७॥ सज्ज हुइ सेवकाए बडीजी । चाल्या सहू परिवार ॥
उध्यान पास आइया । वाहण तजीया तेवार ॥ धर्म ॥ १८ ॥ मुनीवर पासे आयके । वि।। |धी पुर्वक कियो नमस्कार ॥ इशाण कूण माहें रही । सहू तजीया सहू सिणगार ॥