Book Title: Jindas Suguni Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Navalmalji Surajmalji Dhoka

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ भव्य जन जागो । मुक्ती के मार्गे लागो जी । ढाल छुट्टी अमोलख गाइ ॥ भाइ ॥ २२ ॥ छ ॥ दुहा || इत्यादी उपदेश सुण । भव्य गण हर्षाय ॥ सम्वेग मन ऊमग्यो । समक्ति वृत ले उमाय ॥ १ ॥ दुर्लभ यह अवसर लही । चिन्तवे तव जिनदास | जिन जीने पूछी हिवे । सन्देह करूं विणास ॥ २ ॥ इत्ता में कहे केवली । सुणिहों भव्य हित बात || अनादी कर्म प्रसंग से । सुख दुःख जीव पात ॥ ३ ॥ अज्ञाने मुढ भावथी | सह जे बन्धे जीव ॥ ते उदय आया थकां । बहूली पावे रीव ॥ ४ ॥ अंतराय पांच वरणवी । ते दीधी जिन होय ॥ तास गती किण पर हुवे । लीजो प्रत्यक्ष जोय ॥ ५ ॥ ७ ॥ ढाल ७ सातमी ॥ बिणजारा का गीतकी देशी ॥ सुणो शाणा हो ॥ वाणीया ग्राम मझार । राजपिशुन जयगुण निलो ॥ सुणो शाणाहो ॥ विवहारी तिहा अनेक । वैपारे ग्राम सहू तिलो ॥ सुणो शाणा हो ॥ १ ॥ सुणो० तिण नगरे धर्मवंत । सेठ वसुधर दीपतो । सुणो० ॥ सुणो० श्रमणो पासक तेह । ग्रस्था श्रम मन जीप तो । सुणो७ ॥ २ ॥ निग्रन्थ प्रवचन कौविद । न्याये धन उपराज तो । सुणो० ॥ सुणो० पाले पोते धर्म । अन्य भणी दे साज तो ॥ सुणो० ॥ ३ ॥ सुणो० एकदा खुटीयो माल । वेपारी मिल सहा करी । सुणो || अब के पोते चाल । माल लावां

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122