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रु । पास लिया बेठाय ॥ ४ ॥ अनुज्ञादी उपदेश की। भव्य तारण जिनराय ॥ अहते सिद्ध को नमन कर । देशाना तब फरमाय ॥ ५॥ ॥ ढाल ६ ही ॥ विण जारा की चाल में । सुणो सबही हित चित लाइ । भाइ धर्म सदा सुख दाइ ॥ ७० ॥ त्रिति चौली राजू मांही । पुद्गल प्रवृत अनंत कीधाइ जी।अनंत पुण्य से नर देह पाइ॥ भाइ ॥ १ ॥ उदारीक तन का नामो। करो उदार इससे कामो जी । ज्यों जन्म मरण मिट जाइ ॥ भाइ ॥ २ ॥ यह निर्वाण दाता तन्नो । जो साधो स्थिर कर मन्नो जी। तो दुःख सर्व छूट जाइ ॥ भाइ ॥३॥ यह जोग पा "धर्म करे नाहीं । ते पशूसे खराब केवाइ जी । व्यर्थ जननी जन्म दुःखाइ ॥ भाइ॥ ४ ॥ पंच लब्धी पर्यंत जवि आवे । ते सम्यक दर्शन पावे जी। तब शुद्ध प्रवृती थाइ ॥ भाइ॥ ५॥ अष्ट कर्म तणा अनुभाग | समय २ घटे उदय आगे जी । तब 'क्षयोपशम' लब्धी कहवाइ ॥ भाइ ॥६॥ तब साता वेदनी प्रगटावे । धर्मानुराग जगावे जी । तेवि. शुद्ध लब्ध' जणाइ ॥ भाइ ॥ ७ ॥ जीवादी तत्व पहचाने । जे आचार्या दी बखान | जी । ते 'देशना लब्धी' थाइ ॥ भाइ ॥ ८॥ समय २ विशुद्धता होतां । उक्तष्ट कर्म । स्थिती खोतां जी । सह कर्मे 'प्रयोग लब्ध' पाइ ॥ भाइ ॥ ९॥ यह चार लब्धी